जब महामारी फैली है तो बीमा कंपनियां अपने हाथ खड़े नहीं कर सकती : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

6 Aug 2020 5:16 PM GMT

  • जब महामारी फैली है तो बीमा कंपनियां अपने हाथ खड़े नहीं कर सकती : सुप्रीम कोर्ट

    केंद्र ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आयुष्मान भारत योजना या केंद्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) के तहत जो दर निर्धारित की गई है, उसे निजी अस्पतालों में COVID-19 के इलाज के खर्च का मानदंड माना जा सकता है।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिका वक़ील सचिन जैन ने दायर की, जिसमें देश भर में कोरोना के मरीज़ों के निजी और कॉर्पोरेट अस्पतालों में इलाज पर होने वाले खर्च का ज़िक्र किया गया था। अदालत ने इस बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय के हलफ़नामे पर भी ग़ौर किया।

    पीठ ने कहा कि केंद्र का जवाब संतोषप्रद है और खर्च का हद तय करने की ज़िम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों पर छोड़ देनी चाहिए। कोर्ट ने केंद्र से कहा कि वह बीमा कंपनियों को लोगों के बकाया राशि का भुगतान शीघ्रता से करने को कहे।

    निजी स्वास्थ्य प्रदाताओं की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वक़ील हरीश साल्वे ने COVID-19 के इलाज पर आने वाले खर्च की हद तय करने का विरोध किया और कहा कि इससे निजी अस्पतालों के हितों को नुक़सान पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि मुनाफ़ाख़ोरी की चिंता उस समय समझी जा सकती है, जब भीड़भाड़ हो और लोगों को निजी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए बाध्य किया जाता हो।

    साल्वे ने कहा : कल दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के 15,000 में से 12,000 बेड ख़ाली थे।

    वरिष्ठ वक़ील मुकुल रोहतगी ने भी कहा कि इसी तरह बीमा कंपनियों को भी क़ीमत की हद तय करने को नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा, "को-मोरबिडिटी के मामले में क़ीमत की हद तय करने को लागू नहीं किया जा सकता।

    सुप्रीम कोर्ट ने 14 जुलाई को केंद्र सरकार को कहा था कि वह COVID-19 के इलाज पर होने वाले खर्च को विनियमित करने के लिए दिशा निर्देश तय करे।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इन अस्पतालों में इलाज पर होने वाले खर्च को निर्धारित किया जाना चाहिए। हालांकि उन्होंने कहा कि यह तय करने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों पर छोड़ देनी चाहिए।

    कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई दो सप्ताह के बाद करेगा, क्योंकि निजी अस्पतालों ने सरकार के हलफ़नामे पर जवाब देने के लिए समय मांगा है।

    वक़ील और याचिकाकर्ता सचिन जैन ने अपनी याचिका में कहा कि सभी एककों के विनियमन की ज़रूरत है क्योंकि सरकार ने इन्हें मनमानी करने की छूट दे रखी है कि ये जितना चाहें मरीज़ से वसूल सकते हैं।

    उन्होंने कहा,

    "ऐसे निजी अस्पताल जो सिर्फ़ COVID-19 अस्पताल के रूप में काम कर रहे हैं उन्हें कितना वसूलना चाहिए इस बारे में कुछ भी तय नहीं है। मरीज़ों से 10 से 12 लाख रुपए वसूले जा रहे हैं। सरकार ने उनको मनमानी राशि वसूलने की छूट दे रखी है।"

    याचिका में कहा गया कि देश भर के निजी और कॉर्पोरेट अस्पतालों में COVID-19 के इलाज पर होने वाले खर्च को विनियमित करने के मुद्दे पर तत्काल सुनवाई की ज़रूरत है, क्योंकि कई निजी अस्पताल इस वायरस से ग्रस्त मरीज़ों का शोषण कर रहे हैं और राष्ट्रीय संकट के इस समय में गाढ़ी कमाई कर रहे हैं।

    याचिका में यह भी कहा गया कि ऐसे कई रिपोर्ट हैं जिसमें कोविड के मरीज़ों के बिलों को बढ़ाया गया है और इसके फलस्वरूप बीमा कंपनियों ने भुगतान रोक दिया है।

    याचिका में कहा गया कि निजी अस्पताल जिस तरह से बिल को जान बूझकर बढ़ा रहे हैं बीमा उद्योग के लिए यह चिंता का कारण बन सकता है और फिर उन आम लोगों को क्या होगा जिनके पास न तो ज़्यादा पैसा है और न ही बीमा कवर। यह भारी चिंता की बात है कि देश में भारी संख्या में लोगों के पास कोई बीमा कवर नहीं है और सरकार के किसी स्वास्थ्य योजना का लाभ भी उन्हें नहीं मिल सकता।

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