"शांतिपूर्ण प्रदर्शन का यह कौन-सा तरीका था, जिसमें वह तलवार हाथ में लिए फोटो खिंचवा रहा था? ": गुवाहाटी हाईकोर्ट द्वारा UAPA के तहत दर्ज मामले में दो अभियुक्तों की जमानत याचिका खारिज

LiveLaw News Network

9 Feb 2021 12:39 PM GMT

  • शांतिपूर्ण प्रदर्शन का यह कौन-सा तरीका था, जिसमें वह तलवार हाथ में लिए फोटो खिंचवा रहा था? : गुवाहाटी हाईकोर्ट द्वारा UAPA के तहत दर्ज मामले में दो अभियुक्तों की जमानत याचिका खारिज

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते 09 दिसंबर 2019 को चबुआ शहर में रेलवे ट्रैक और राष्ट्रीय राजमार्ग पर आर्थिक नाकाबंदी और राष्ट्रीय राजमार्ग पर आपूर्ति बाधित करने के आरोप में और पत्थर फेंककर सरकारी अधिकारियों की हत्या करने के प्रयास के आरोप में दो आरोपियों के खिलाफ दर्ज मामले में जमानत याचिका को खारिज कर दी।

    न्यायमूर्ति कल्याण राय सुराणा और न्यायमूर्ति अजीत बोर्थाकुर की खंडपीठ ने कहा कि,

    "रिकॉर्ड और इकट्ठा किए गए सबूतों को प्रथम दृष्टया (Prima Facie) में देखने पर अपीलकर्ताओं की दोषीता और आरोप पत्र में अधिक पूरी तरह से उल्लिखित कथित अपराधों के कमीशन में उसकी भागीदारी का खुलासा होता है।"

    न्यायालय के समक्ष मामला

    अपीलकर्ताओं / अभियुक्तों ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 की धारा 21 के तहत एक अपील दायर की, जो असम के एनआईए (NIA) के विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित 08 जुलाई 2020 के आदेश के खिलाफ निर्देशित थी। इस आदेश में अपीलकर्ताओं को जमानत देने की प्रार्थना खारिज कर दी गई थी।

    दोनों आरोपियों के खिलाफ धारा IPC की धारा 120 बी, धारा 147, धारा 148, धारा 148, धारा 149 ए, धारा 153 ए, धारा 153 बी, धारा 336, धारा 356, धारा 326, धारा 307 और यूएपी(UAP) अधिनियम 1967 की धारा 15 (1) (ए) के साथ धारा 16 के तहत अपराध के लिए आरोप लगाए गए हैं।

    [नोट: धारा 16, अधिनियम 1967 के अध्याय ४ के अंतर्गत आता है। UA (P) अधिनियम के इस दंडात्मक खंड के विषय क्षेत्रों को "आतंकवादी अधिनियम (Terrorist act)" की सजा से संबंधित है। जबकि इस अधिनियम की धारा 15 परिभाषित करती है कि "आतंकवादी अधिनियम" क्या है।]

    मामले के तथ्य

    अभियोजन के मामले के अनुसार, 09 दिसंबर 2019 को शाम लगभग 7.00 बजे, चबुआ शहर में नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में लगभग 6,000 लोगों का जमावड़ा था।

    कथित रूप से अखिल गोगोई की अगुवाई में भीड़ का नेतृत्व किया गया था और इसने रेलवे ट्रैक को अपने आर्थिक नाकाबंदी के हिस्से के रूप में अवरुद्ध कर दिया और नाकाबंदी को हटाने के लिए जिला प्रशासन का प्रयास बेकार हो गया।

    यह भी कहा गया कि भीड़ के नेता और कुछ अन्य लोगों ने पुलिस के खिलाफ आपराधिक साजिश रची और उन लोगों ने मुखबिर और उनकी पार्टी पर पत्थर फेंके। इसके परिणामस्वरूप एक पत्थर पुलिस उप-निरीक्षक के मुंह पर लगा।

    न्यायालय का अवलोकन

    शुरूआत में, आरोपियों के खिलाफ दायर चार्जशीट को ध्यान से देखाने पर पाया गया कि प्रदर्शनकारियों द्वारा रेल, राजमार्ग और आंतरिक सड़क नाकाबंदी के कारण टायर (यानी ज्वलनशील पदार्थों का उपयोग) को जलाया गया और सड़क पर खड़े वाहनों को नुकसान पहुंचाया गया। निर्दोष जनता को आतंकित करने के लिए तिनसुकिया जिले में मुख्य भूमिका निभाने वाले अपीलकर्ताओं द्वारा उनको भड़काया गया।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "न्यायालय ने यह मानने के लिए विवश किया है कि प्रथम दृष्टया में देखने पर किए गए कृत्यों पर अधिनियम 1967 की धारा 15 के उपधारा (1) के खंड (ए) के तहत मामला बनता है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "अपीलकर्ताओं द्वारा उकसाए जाने पर, जैसे कि टायर जलाकर हिंसक विरोध प्रदर्शन के कारण रेल, राजमार्ग और आंतरिक सड़क नाकाबंदी हुई थी। यह महत्वपूर्ण कानून और व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखने का सवाल है, क्योंकि यह राज्य के लिए पूरी तरह से सुरक्षा की धमकी दी थी।"

    महत्वपूर्ण रूप से कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि,

    "अपीलकर्ताओं के वकील ने यह समझाने का कोई प्रयास नहीं किया कि अपीलकर्ता नंबर 1 द्वारा किस तरह का शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है, जब वह विरोध प्रदर्शन कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए एक बड़ी भीड़ के सामने तलवार हाथ में लेकर फोटो खिंचवा रहा था। हिंसा के इस्तेमाल से अपीलकर्ता की अगुवाई वाली भीड़ ने अहिंसक विरोध की नेक अवधारणा को किनारे कर दिया था, जिसे महात्मा गांधी के सत्याग्रह की अवधारणा के रूप में जाना जाता है और सरकार के तंत्र को पंगु बनाने का ऐसा आचरण आर्थिक नाकेबंदी का कारण बनता है, जिससे समूहों के बीच दुश्मनी पैदा होती है। सार्वजनिक शांति का विघटन और सरकार के प्रति असंतोष, ऐसे कार्य हैं, जो राष्ट्रीय एकीकरण के लिए पूर्वाग्रही हैं और ऐसे कार्य "आतंकवादी अधिनियम" की परिभाषा में अधिनियम 1967 की धारा 15 में परिभाषित किए गए हैं।"

    न्यायालय ने यह भी कहा कि यह शायद ही इस प्रस्ताव की सदस्यता ले सकता है कि एक रेलवे स्टेशन को जलाने और कुछ और रेलवे स्टेशनों को बर्बरतापूर्ण करने के कार्य को "आतंकवादी कार्य" नहीं कहा जा सकता है।

    यूएपीए (UAPA) की धारा 43D (5) की आवश्यकता के संबंध में, न्यायालय ने इस मामले की जांच की ताकि उसे प्रथम दृष्टया यह पता लगाने में सक्षम बनाया जा सके कि जांच के दौरान अपीलकर्ताओं के खिलाफ एकत्रित सामग्री दोषी सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हो सकती है।

    न्यायालय का यह भी मत था कि अभियोजन पक्ष के प्रथम दृष्टया सामग्री से पता चलता है कि अपीलकर्ताओं ने न केवल विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया था, बल्कि लोगों को उसके साथ जुड़ने के लिए उकसाया था। आरोपी नंबर 1 द्वारा जारी किए गए निर्देशों पर देश के समुदाय का जीवन राज्य में बाधित हो गया।

    अंत में, विशेष न्यायाधीश (एनआईए) के इस निष्कर्ष में कोई कमी नहीं पाया गया कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ आरोपों का सामना करना सही है। हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता की अपील खारिज कर दी।

    केस का शीर्षक - भास्करजीत फुकन और भूपेन गोगोई बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी [केस नंबर: Crl.A./171/2020]

    जजमेंट की कॉपी यहां पढ़ें:



    Next Story