'ईश्वर की त्वचा कौन से रंग की है?' अफ्रीकी देशों के नागरिकों के खिलाफ नस्लीय स्लर उपयोग करने के मामले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पूछा सवाल

LiveLaw News Network

4 July 2020 11:39 AM GMT

  • ईश्वर की त्वचा कौन से रंग की है? अफ्रीकी देशों के नागरिकों के खिलाफ नस्लीय स्लर उपयोग करने के मामले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पूछा सवाल

    ''अपमानजनक शब्द छापने योग्य हो होता ही नहीं है ,बल्कि वर्तमान समय में अकथनीय भी है। चाहे बात सार्वजनिक रूप से जुड़ी हो या फिर अफ्रीकी/ विदेशी और पुलिस कर्मियों के बीच होने वाले निजी व्यवहार से। इसी तरह हमारे न्यायालय के क्षेत्र में भी सामाजिक रूप से कहीं भी इस तरह के शब्द अकथनीय हैं।''

    पंजाब और हरियाण हाईकोर्ट ने बुधवार को एनडीएस के उस मामले में कार्यवाही को बंद कर दिया, जो चार्जशीट में नस्लीय-स्लर के उपयोग के कारण सुर्खियों में आ गया था।

    न्यायमूर्ति राजीव नारायण रैना की एकल पीठ ने ''पारस्परिक सम्मान'' और ''सार्वभौमिक सामान्य भाईचारे'' के महत्व को भी रेखांकित करने के लिए कहा कि ''क्या मैं भगवान की त्वचा का रंग पूछ सकता हूं''?

    पिछले महीने, एक एकल न्यायाधीश ने एनडीपीएस अधिनियम के तहत दायर एक आपराधिक मामले में पुलिस अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई थी क्योंकि पुलिस ने इस एनडीपीएस के मामले में एक अफ्रीकी देश के रहने वाले आरोपी का उल्लेख करते हुए नस्लीय स्लर का उपयोग किया था।

    पीठ ने कहा कि-

    ''सभी अफ्रीकी हमारे दोस्त हैं और जब वे भारत आते हैं तो हमारे मूल्यवान मेहमान होते हैं भले ही वह आगंतुक के तौर पर आएं या छात्र के तौर पर। वहीं हमें यह भी याद रखना चाहिए कि भारत 'मेहमान नवाजी' और 'अतिथि संस्कार/सत्कार' की अपनी परंपराओं में समृद्ध है और हमें इस पर गर्व करना चाहिए। अदालत के कागजातों में उनको उनके मूल देश के द्वारा संदर्भित किया जाना चाहिए।''

    जब इस मामले को बुधवार को उठाया गया था, तो अदालत को सूचित किया गया था कि उक्त शब्दों का इस्तेमाल एक गवाह ने अपने बयान में किया था न कि पुलिस अधिकारी ने।

    हालाँकि पीठ का विचार था कि ऐसे अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल के लिए गवाह के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए थी। वहीं इस तरह की व्यक्तिगत टिप्पणी और अपमान के खिलाफ पुलिस कर्मियों को भी ''संवेदनशील'' होना चाहिए।

    पीठ ने कहा कि-

    ''अगर कोई गवाह या कोई आरोपी अगर इस तरह के अपमानजनक नस्लीय शब्द का उपयोग करता है, तो उसके खिलाफ भी कदम उठाए जाने चाहिए। यह पुलिस का रवैया है जिसमें सुधार की आवश्यकता है और यदि सर्कुलर मैमोरैंडम के संचालन के जरिए परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है,तभी हम वास्तव में सामाजिक और जैविक पूर्वाग्रह और एक वर्ग के लोगों को हीन या श्रेष्ठ मानने के खिलाफ चल रही रंग दृष्टिहीनता को सार्थक और सक्रिय रूप से खत्म या प्राप्त कर सकते हैं।''

    यह भी जोड़ा गया कि-

    ''संवेदीकरण कार्यशालाओं के जरिए नियमित आधार पर पुलिसकर्मियों की काउंसलिंग करते समय उनके प्रोग्राम में एक बंूद उदार शिक्षा की भी जोड़ी जाए। जो शायद उस वांछित दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण अंतर ला सकती है जो भारत में अफ्रीकियों के मामलों में व्यक्तिगत टिप्पणियां और उनका अपमान किए बिना निपटाने के लिए जरूरी है। संविधान के अनुच्छेद 51 ए (एच) में निर्दिष्ट कर्तव्यों में से एक कर्तव्य यह है कि''एक वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना का विकास करना''। प्रमुख शब्द ''मानवतावाद'' है,जो मुनष्य का भाईचारा है।''

    मामले की इस पृष्ठभूमि में अदालत ने निम्नलिखित आलंकारिक सवाल किया-

    ''मन के पास कोई त्वचा नहीं है। क्या मैं पूछ सकता हूं कि भगवान की त्वचा किस रंग की है और क्या कोई भगवान है, अगर किसी को पता है तो ?आइए हम किसी भी जाति पर आधारित अनफेयर सामाजिक या नस्लीय भेदभाव, मत या सिद्धांत, त्वचा, राष्ट्र या रेस, भूमध्य रेखा पर या एक प्रत्याशित आपराधिक जांच में संदेह के एक बिंदु पर बनी विचार की किसी भी प्रक्रिया को स्टैम्प आउट या खत्म करते हैं।''

    अदालत का मत था कि नस्लीय रूप से रंगे शब्दों के उपयोग करने का एक मुद्दा उससे ''बहुत गहरा''है जितना कि यह प्रतीत होता है।

    पीठ ने कहा कि-

    ''यह पुलिस अधिकारियों की रूढ़िवादी मानसिकता को दर्शाता है,जिन्होंने '' कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण'' देने की अपनी क्षमता को भंग कर दिया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण विचारधारा परिवर्तन करती है, जिसने कानून प्रवर्तन एजेंसियों में दृढ़ता से घुसपैठ की है और जो वास्तव में उप अनुच्छेद 14 के तहत प्रदान किए गए संरक्षण के खिलाफ है।''

    अदालत ने इस मुद्दे पर सरकार द्वारा उठाए गए ''शीघ्र कदम''और पुलिस महानिदेशक, पंजाब, चंडीगढ़ द्वारा जारी सर्कुलर की सराहना भी की है।

    सर्कुलर में कहा गया है कि किसी भी विदेशी नागरिक के लिए किसी भी नस्लीय /नस्लीय-रंग के संदर्भ का उपयोग पूरी तरह से निषिद्ध है और इस तरह के कृत्य संबंधित कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई को आमंत्रित करेंगे या उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

    पीठ ने कहा कि-

    ''जब गश्त ड्यूटी करने वाले और हर पुलिस स्टेशन में तैनात प्रत्येक कांस्टेबल के दिमाग में सर्कुलर में लिखे गए नए डिस्पेंसेशन फिल्टर रहेंगे तो इससे निचले कार्यकारी अधिकारियों में अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने की भावना पैदा करने में बहुत मदद मिलेगी और उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकेगी। वहीं भारत में यात्रा करने वाले विदेशियों के बीच सुरक्षा की भावना को बढ़ावा मिलेगा। जो वर्तमान दिशा-निर्देशों में राज्य के आश्वासन के साथ समर्थित है कि त्वचा के रंग के आधार पर उनके साथ भेदभाव या अपमान नहीं किया जाएगा।''

    मामले का विवरण-

    केस का शीर्षक- अमरजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य

    केस नंबर-सीआरएम-एम नंबर 13502/2020

    कोरम- न्यायमूर्ति राजीव नारायण रैना

    प्रतिनिधित्व-एडवोकेट जनरल अतुल नंदा के साथ एडवोकेट जनरल सुवीर श्योकंद (राज्य के लिए)

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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