पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा - 'राज्य द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया': कलकत्ता हाईकोर्ट ने NHRC को शिकायतों की जांच के लिए समिति गठित करने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

19 Jun 2021 6:30 AM GMT

  • पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा - राज्य द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया: कलकत्ता हाईकोर्ट ने NHRC को शिकायतों की जांच के लिए समिति गठित करने का निर्देश दिया

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को समिति गठित करने का आदेश दिया जो पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा के दौरान डर से घर छोड़ने पर मजबूर हुए लोगों की शिकायतों की जांच करेगी।

    कोर्ट ने देखा कि राज्य सरकार ने हिंसा के दौरान डर से घर छोड़ने पर मजबूर पीड़ितों की शिकायतों का जवाब भी नहीं दिया है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "ऐसे मामले में जहां आरोप है कि राज्य के निवासियों की जान और संपत्ति को कथित चुनाव के बाद हिंसा के कारण खतरा है, राज्य को अपनी पसंद के अनुसार आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखना और राज्य के निवासियों में विश्वास जगाना राज्य का कर्तव्य है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "हालांकि कार्रवाई राज्य द्वारा की जानी चाहिए थी, लेकिन मामला अदालत में लंबित होने के बावजूद स्पष्ट रूप से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।"

    कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार से कहा कि राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखना और निवासियों में विश्वास पैदा करना राज्य का कर्तव्य है।

    बेंच में जस्टिस आईपी मुखर्जी, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस सुब्रत तालुकदार भी शामिल थे जो उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे जिनमें आरोप लगाया गया है कि हिंसा के कारण सैकड़ों लोग अपना घर छोड़कर कहीं दूसरी जगह चले गए और डर के कारण वापस नहीं आ सके हैं।

    हाईकोर्ट ने इससे पहले तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था ताकि पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा के दौरान डर से घर छोड़ने पर मजबूर पीड़ितों को उनके घरों में शांतिपूर्वक लौटने में सक्षम बनाया जा सके।

    कोर्ट के आदेश के अनुसार समिति में निम्न शामिल थे; (i) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाने वाला एक सदस्य (ii) राज्य मानवाधिकार आयोग द्वारा नामित किया जाने वाला सदस्य (iii) सदस्य सचिव, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण।

    पीठ ने आदेश दिया था कि हिंसा के दौरान घर छोड़ने पर मजबूर व्यक्ति अपने घरों में शांति से लौटने और रहने के हकदार हैं। सभी संबंधित पुलिस स्टेशन समिति के साथ समन्वय करेंगे जो उपरोक्त प्रक्रिया के लिए उठाए गए कदमों के बारे में अपनी रिपोर्ट इस अदालत को सौंपेगी।

    कोर्ट ने राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण को उन विस्थापित व्यक्तियों की शिकायतों पर गौर करने का भी निर्देश दिया कि जिन्हें उनके घरों में लौटने से रोका जा रहा है और उनके पुनर्वास के लिए आवश्यक कदम उठाएं।

    बेंच ने प्राधिकरण की रिपोर्ट के अवलोकन पर कहा कि उसमें परिलक्षित तथ्य राज्य के दावे से काफी भिन्न हैं।

    पीठ ने कहा कि,

    "राज्य शुरू से ही सब कुछ नकारता रहा है, लेकिन तथ्य जो याचिकाकर्ताओं द्वारा रिकॉर्ड में रखे गए हैं और पश्चिम बंगाल राज्य विधि सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव द्वारा दायर 3 जून, 2021 की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से अलग हैं।"

    कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के याचिका में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप को ध्यान में रखते हुए एनएचआरसी अध्यक्ष को शिकायतों की जांच के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया है।

    कोर्ट ने आदेश में कहा कि,

    "समिति सभी मामलों की जांच करेगी और प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर सकती है और वर्तमान स्थिति के बारे में इस न्यायालय को एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी और लोगों का विश्वास सुनिश्चित करने के लिए कि वे अपने घरों में शांति से रह सकते हैं और आजीविका कमाने के लिए अपना व्यवसाय कर करते हैं।"

    कोर्ट ने कहा कि,

    "अपराध के लिए प्रथम दृष्टया जिम्मेदार व्यक्तियों और इस मुद्दे पर जानबूझकर चुप्पी रखने वाले अधिकारियों को इंगित किया जाए।"

    कोर्ट ने राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा है कि इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की बाधा न आए।

    कोर्ट ने आदेश में कि,

    "इस तरह की रुकावट को गंभीरता से लिया जाएगा और इसके लिए अदालत की अवमानना अधिनियम के तहत कार्रवाई हो सकती है।"

    अब मामले की सुनवाई 30 जून को होगी।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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