'हम कभी भी ऐसी याचिका की सुनवाई नहीं करेंगे जो हमें 100 साल पीछे ले जाए', कर्नाटक हाईकोर्ट ने गैर-हिंदुओं को HRICE Act के तहत कार्यालयों में काम करने से रोकने की याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

15 Dec 2020 4:00 AM GMT

  • हम कभी भी ऐसी याचिका की सुनवाई नहीं करेंगे जो हमें 100 साल पीछे ले जाए, कर्नाटक हाईकोर्ट ने गैर-हिंदुओं को HRICE Act के तहत कार्यालयों में काम करने से रोकने की याचिका खारिज की

    कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सोमवार को उन रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें मांग की गई थी कि गैर-हिंदुओं को कर्नाटक हिंदू रिलीजियस इंस्टीट्यूशंस एंड चैरिटेबल एंडाउमेंट्स एक्ट (HRICE Act) के तहत आयुक्त कार्यालय में काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

    चीफ जस्टिस अभय एस ओका की अध्यक्षता में पीठ ने कहा, "हिंदू धर्म कभी भी इतना संकीर्ण नहीं रहा। हिंदू धर्म में ऐसे लोगों को शामिल नहीं किया गया है, जो इतने संकीर्ण विचारों वाले हैं।"

    याचिकाओं में HRICE Act की धारा 7 को सख्ती से लागू करने की मांग की गई थी, जिसके तहत यह मांग की गई थी कि कोई भी व्यक्ति जो हिंदू धर्म को स्वीकार नहीं करता है, को उक्त अधिनियम के तहत न‌ियुक्त आयुक्त के कार्यालय में काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

    एनपी अमृतेश द्वारा दायर एक याचिका में महालिंगेश्वर मंदिर द्वारा आयोजित वार्षिक उत्सव के निमंत्रण पत्र पर हिंदू रिलीजियस इंस्ट‌िट्यूशंस एंड चैरिटेबल एंडाउमेंट्स ‌डिपार्टमेंट, मंगलुरु में डिप्टी कमिश्नर के रूप में कार्यरत एबी इब्राहिम का नाम छापे जाने पर सवाल उठाया गया था।

    भारत पुनारत्थान ट्रस्ट द्वारा दायर दूसरी याचिका ने एक्ट के तहत आयुक्त कार्यालय में मोहम्मद देशव अलीखान को अधीक्षक के रूप में नियुक्त करने पर आपत्ति जताई गई थी।

    चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने अमृतेश द्वारा दायर याचिका पर आश्चर्य व्यक्त किया गया, जिसमें उपायुक्त को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।

    पीठ ने मौखिक रूप से कहा, "अगर चौ‌थे प्रतिवादी उपायुक्त होने के कारण, व्यवस्थाओं की निगरानी के लिए मंदिर में प्रवेश करेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा। हिंदू धर्म कभी भी इतना संकीर्ण नहीं था। हिंदू धर्म के लोगों ने कभी भी ऐसे लोगों को शामिल नहीं किया है, जो इतने संकीर्ण दिमाग वाले हैं।"

    अदालत ने कहा, "पूरे देश में ऐसे उदाहरण हैं, जब बड़े हिंदू त्योहारों में, गैर हिंदुओं ने प्रशासन की सक्रिय सहायता की है।"

    चीफ जस्टिस ओका ने याचिकाओं को सुनवाई योग्य न मानते हुए कहा, "संविधान के अस्तित्व में आने के बाद, हम कभी भी ऐसी याचिकाओं की सुनवाई नहीं करेंगे। कोई चीज है, जिसे संविधान कहते हैं, संवैधानिक दर्शन कहते हैं। हम ऐसी याचिका की सुनवाई नहीं करेंगे, जो हमें 100 साल पीछे ले जाएगी।"

    अपने आदेश में पीठ ने अधिनियम की धारा 7 का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है,

    धारा 7: आयुक्त, आदि हिंदू होने के लिए। - आयुक्त, प्रत्येक उपायुक्त या सहायक आयुक्त और प्रत्येक अन्य अधिकारी या सेवक, जिन्हें इस अधिनियम के प्रयोजनों के निर्वहन के के लिए नियुक्त किया जाता है, उसे जिसने भी नियुक्त किया हो, वह हिंदू धर्म को स्वीकार करगा, और जब वह हिंदू धर्म को स्वीकार करना बंद कर देता है, तो वह उस पद को धारण करना बंद कर देता है।"

    पीठ ने कहा, "धारा 7 के सामान्य पाठ पर, एक अधिकारी या सेवक को आयुक्त, डिप्टी कमिश्नर या सहायक आयुक्त के कार्यालयों में नियुक्त करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। धारा 7 द्वारा लगाया गया प्रतिबंध है कि आयुक्त, उप आयुक्त, असिस्टेंट कमिश्नर और हर अधिकारी या सेवक को उक्त अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नियुक्त किया गया है, जो हिंदू धर्म को मानने वाला व्यक्ति होगा। प्रयोज्यता के लिए परीक्षण यह है कि अधिकारी या नौकर को अधिनियम के उद्देश्य को पूरा करने के लिए नियुक्त किया गया है।"

    अदालत ने अपनी बात आगे बढ़ाने के लिए दो उदाहरण दिए।

    आयुक्त कार्यालय में कंप्यूटर प्रोग्राम या डेटा एंट्री के लिए एक कंप्यूटर प्रोग्रामर या डेटा एंट्री ऑपरेटर को नियुक्त किया जा सकता है। यह नहीं कहा जा सकता है कि डेटा एंट्री ऑपरेटर या प्रोग्रामर को अधिनियम के उद्देश्य को पूरा करने के लिए नियुक्त किया गया है।

    एक अन्य उदाहरण में यह उल्लेख किया गया कि यदि आयुक्त के कार्यालयों की सफाई के लिए समूह डी कर्मचारी को नियुक्त किया जाता है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि इस तरह के सेवक को अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नियुक्त किया जाता है।

    तदनुसार, यह नोट किया गया, "इसलिए कि यह तय करने के लिए कि धारा 7 के निषेध लागू है या नहीं, संबंधित अधिकारी को सौंपे गए कर्तव्यों की प्रकृति पर विचार करना आवश्यक है।"

    अंत में पीठ ने कहा, "न्यायिक नोटिस को इस तथ्य पर ध्यान देना होगा कि सरकारी अधिकारी, पुलिस अधिकारी, चाहे उनकी धार्मिक आस्था और विश्वासों जो भी हों, सभी धर्मों को उनके संबंधित धार्मिक त्योहारों को मनाने में प्रभावी रूप से सहायता करते हैं। वास्तव में जो संवैधानिक दर्शन और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का हिस्सा है।"

    पीठ ने किसी भी प्रकार की राहत प्रदान करने से मना कर दिया और याचिका रद्द कर दी।

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