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हमारा समाज उस स्तर तक नहीं पहुंचा है, जहां पुरुषों को महिलाओं से सुरक्षा की जरूरत होः जस्ट‌िस हिमा कोहली

LiveLaw News Network
11 Jun 2020 10:39 AM GMT
हमारा समाज उस स्तर तक नहीं पहुंचा है, जहां पुरुषों को महिलाओं से सुरक्षा की जरूरत होः जस्ट‌िस हिमा कोहली
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‌दि एसोस‌िएशन ऑफ आईएलआई एलुमनाई और इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट ने घरेलू हिंसा पर वेबिनार का आयोजन किया, जिसका विषय था-एक अदृश्य महामारी। कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली हाईकोर्ट की जज ज‌स्टिस ह‌िमा कोहली और राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती रेखा शर्मा ने की, जबकि मॉडरेशन जेएनयू ‌के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ पी पुनीथ ने किया।

जस्टिस हेमा कोहली ने चर्चा की शुरुआत में कहा कि महामारी ने घरेलू कामकाजी महिलाओं पर दोहरा बोझ डाला है। उन्हें लैंगिक दुराग्रहों द्वारा खड़ी की गई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। यह संकट एक "आभासी महामारी" है। उन्होंने कहा कि भारत में महिलाएं परिवार की बदनामी न हो, इस धारणा के कारण घरेलू हिंसा के मामलों में मदद की मांग तक नहीं करती हैं।

जस्टिस कोहली दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएसएलएसए) की कार्यकारी अध्यक्ष हैं। कार्यक्रम में उन्होंने घरेलू हिंसा के मसलों के निस्तारण के लिए डीएसएलएसए की ओर से उठाए गए कदमों की भी चर्चा की, लॉकडाउन में जिनकी संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है।

उन्होंने बताया कि रैन बसेरों, पुलिस थानों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर हेल्पडेस्क स्थापित किए गए हैं, जहां वकील वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जर‌िए से कानूनी सहायता उपलब्ध कराने के लिए मौजूद हैं।

उन्होंने बताया कि ऐसे हेल्पलाइन भी हैं, जिनमें मात्र मिस्ड कॉल / एसएमएस / व्हाट्सएप के जर‌िए जो वकीलों की मदद प्राप्त की जा सकती है। इन वकीलों को ऐसे मामलों को सावधानी के साथ डील करने के लिए संवेदनशील बनाया गया है।

डीएसएलएसए ने ‌‌दिल्ली में घरेलू हिंसा के मामलों पर निगाह रखने के लिए मदर डेयरी बूथों, फार्मासिस्टों और केमिस्टों का भी सहयोग ‌लिया है। इस कार्य में आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को भी शामिल किया गया है।

ज‌स्टिस कोहली से जब यह पूछा गया कि घरेलू हिंसा की अधिकांश शिकायतें क्या समाज के निचले तबके से आती हैं, तब उन्होंने बताया कि "घरेलू हिंसा के मामले में ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ हा‌शिए पर रहने वाली की समस्या है। यह समस्या सभी स्तरों पर है। घरेलू हिंसा के मामले में पैसा या किसी महिला की पेशेवर क्षमता से कोई फर्क नहीं पड़ता।"

भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए या महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए लागू किया गया घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की वैधानिक पर्याप्तता के बारे में पूछे जाने पर जस्टिस कोहली ने कहा कि प्रावधानों में कोई कमी नहीं है। समस्या की जड़ में प्रावधानों को लागू करने की असमर्थता है।

" जो आवश्यक है वह सख्त कार्यान्वयन है, और इसके लिए और अध‌िक जागरूकता की आवश्यकता है। हमें महिलाओं को जागरूक करने की आवश्यकता है, हमें उन्हें कानून तक पहुंचने में मदद करने की आवश्यकता है। यदि महिलाओं की कानून तक पहुंच नहीं है, तो फिर कानून का कोई उपयोग नहीं है।"

ज‌स्टिस कोहली से जब यह पूछा गया कि घरेलू हिंसा के मामले में तेजी से उपाय सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में संरक्षण अधिकारी से संपर्क किया जा सकता है कि जो तत्काल राहत दे सकते हैं।

घरेलू हिंसा अधिनियम के दुरुपयोग और लैंग‌िक रूप से तटस्थ कानून की आवश्यकता के बारे में पूछे जाने पर जस्टिस कोहली स्पष्ट रूप से कहा कि लैंग‌िक रूप से तटस्थ कानून की आवश्यकता भारतीय समाज में अभी तक पैदा नहीं हुई है।

उन्होंने कहा, "हमारा समाज, उस मुकाम पर नहीं पहुंचे हैं, जहां पुरुषों को महिलाओं से सुरक्षा की आवश्यकता हो। यदि ऐसा होता है तो कानूनों में संशोधन किया जाएगा। मैं यह नहीं कह रही हूं कि कानून का दुरुपयोग नहीं हो रहा है। हालांकि, यह कानून को खत्म करने का आधार नहीं हो सकता।"

कार्यक्रम में श्रीमती रेखा शर्मा ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं, जिसका कारण यह रहा है कि लॉकडाउन के दौरान माहिलाओं को उन्हीं के साथ रहना पड़ा, जो घरेलू हिंसा में लिप्त थे और जिनके कारण वो कानूनी सहायता तक पहुंच नहीं सकी। उन्होंने कहा कि घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं हेल्पलाइन नंबरों पर संपर्क करने या मदद मांगने में असमर्थ रहीं, क्योंकि उन्हें अपने दुराचारियों की निगरानी में ही रहना पड़ा।

शर्मा ने कार्यक्रम में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि घरेलू हिंसा की स्‍थ‌िति यह रही है कि पहले महिलाओं को इस बात की जानकारी भी नहीं थी कि वे हिंसा की शिकार हैं। भारतीय समाज में महिलाएं अपनी मां के साथ घरेलू हिंसा को देखते हुए बड़ी हुई हैं। यही कारण रहा है कि घरेलू हिंसा का कार्य सामान्य लगने लगी है।

शर्मा ने कहा कि लॉकडाउन की अवधि में मान‌सिक स्वास्‍थ्य की समस्या भी बढ़ी है। उन्होंने बताया कि एनसीडब्ल्यू ने इससे निपटने के लिए एक हेल्पलाइन स्थापित की है और साथ ही पीड़ितों की मदद के लिए एक ऐप भी लांच किया गया है।

शर्मा ने घरेलू हिंसा के मामलों में जागरूकता फैलाने के लिए एनजीओ के जर‌िए किए जा रहे कार्यों की भी सराहना की।

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