'हम (जज और वकील) एक परिवार की तरह हैं': बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस शिंदे ने जज द्वारा अपमान पर नाराजगी जताने वाले वकील को शांत किया

LiveLaw News Network

9 Jun 2021 3:15 AM GMT

  • हम (जज और वकील) एक परिवार की तरह हैं: बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस शिंदे ने जज द्वारा अपमान पर नाराजगी जताने वाले वकील को शांत किया

    बॉम्बे हाईकोर्ट के तीसरे सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस एसएस शिंदे ने उदारता दिखाते हुए एक वकील को डांटने के बजाय शांत किया, जो पहले की कार्यवाही में न्यायाधीश की ओर से कथित 'अपमान' किए जाने पर नाराजगी व्यक्त कर रहा था।

    जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनजे जामदार की खंडपीठ मंगलवार को (8जून) राज्य के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई की प्राथमिकी के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसी मामले में वकील जयश्री पाटिल ने जस्टिस शिंदे के खिलाफ आरोप लगाना शुरू किया।

    एडवोकेट पाटिल ने यह कहते हुए अपनी दलीलें शुरू कीं कि मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने उनकी याचिका पर 5 अप्रैल, 2021 को देशमुख के खिलाफ प्रारंभिक जांच का आदेश दिया था। इसलिए उन्हें वर्तमान याचिका में एक पक्ष के रूप में जोड़ा जाना चाहिए और अदालत को इस पर अनिल देशमुख की याचिका के साथ सुनवाई करनी चाहिए। एडवोकेट पाटिल ने कहा कि उन्होंने दोनों मामलों को टैग करने के लिए पहले ही प्रधान न्यायाधीश की अदालत में एक अर्जी डाली थी।

    एडवोकेट पाटिल ने आगे कहा कि उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना से शिकायत की कि न्यायमूर्ति शिंदे ने उनका "अपमान" किया, जब याचिका मार्च में सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति शिंदे की पीठ के समक्ष आई थी। एक दिन पहले मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की थी।

    वरिष्ठ अधिवक्ताओं में से एक ने पाटिल के आरोपों पर आपत्ति जताई और वरिष्ठ अधिवक्ता रफीक दादा ने कहा कि पाटिल को एक पक्षकार बनने के लिए आवेदन दायर करना चाहिए। न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा कि अगर पाटिल को उनके शब्दों से आहत हुईं है तो उन्हें खेद है।

    जस्टिस शिंदे ने कहा कि,

    "एक बार जब हमारी पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका पर विचार किया, तो मैंने उनसे याचिका के आधारों के बारे में पूछा। अधिवक्ता और न्यायाधीशों एक ही परिवार हैं। कभी-कभी मेरे शब्द कठोर हो सकते हैं। अगर मेरे शब्दों ने आपको आहत की है तो मुझे खेद है। इसके अलावा मुझे नहीं लगता कि कोई मुद्दा हो सकता है।"

    राज्य के वरिष्ठ अधिवक्ता डेरियस खंबाटा ने जवाब में प्रस्तुत किया कि यह अदालत का बड़प्पन है कि वह खेद व्यक्त कर रहा है। हालांकि, जिस तरह से पाटिल ने आरोप लगाए वह उचित नहीं है।

    न्यायमूर्ति शिंदे ने इस बीच पाटिल से अपनी दलीलें जारी रखने को कहा। लेकिन पाटिल ने अब महाराष्ट्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह जानबूझकर उन्हें एक पक्षकार नहीं बनने दे रही है। पाटिल ने यह कहते हुए न्यायमूर्ति शिंदे के खिलाफ अपने आरोपों को दोहराना शुरू कर दिया कि न्यायमूर्ति शिंदे ने उसे खुली अदालत में अपमानित किया था।

    एडवोकेट खंबाटा ने आपत्ति जताते हुए कहा कि यह बिल्कुल भी उचित और सही नहीं है।

    एडवोकेट पाटिल ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश को पहले उनकी शिकायत पर फैसला करना चाहिए या दोनों याचिकाओं को एक साथ लिया जाना चाहिए। पाटिल ने आगे कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि मैं केवल पूर्वाग्रह से ग्रसित हो जाऊं।

    एडवोकेट खंबाटा ने कहा कि,

    "इस तरह से किसी को अदालत को संबोधित नहीं करना चाहिए।"

    एडवोकेट पाटिल ने जवाब दिया कि,

    "आपको अपमान का सामना नहीं करना पड़ा है। मैं भी बार का सदस्य हूं।"

    सीबीआई के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसके बाद पाटिल से शांत हो जाने के लिए कहा। तुषार मेहता ने कहा कि कृपया अदालत की उदारता का लाभ न उठाएं। यह अदालत का बड़प्पन है कि वह कुछ नहीं कह रहा है।

    एडवोकेट पाटिल ने इस पर कहा कि,

    "आप मुझे मत सिखाओ। मैं भी यहां 25 साल से प्रैक्टिस कर रही हूं।"

    न्यायमूर्ति जामदार ने पाटिल से कहा कि दोहराना बंद करिए। उन्होंने शिकायत दर्ज की है और न्यायमूर्ति शिंदे का क्या कहना है, इसे सुनें, "शायद आपने नहीं सुना, लेकिन मैंने कहा कि अगर मेरे शब्दों से आपको दुख पहुंचा है, तो मैं खेद व्यक्त करता हूं।"

    न्यायमूर्ति शिंदे ने प्रार्थना के बारे में कहा कि भले ही देशमुख की याचिका को राज्य की याचिका के साथ टैग नहीं किया गया हो, वह गुरुवार को एक के बाद एक मामले रखेंगे।

    न्यायमूर्ति शिंदे ने आगे कहा कि,

    "लेकिन आपको समझना चाहिए, हम इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं क्योंकि यह हमें सौंपा गया है।"

    एडवोकेट पाटिल ने इसके बाद अदालत को धन्यवाद दिया और कहा कि वह अपनी शिकायत वापस ले लेंगी।

    अदालत ने मामले को गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दिया और सीबीआई ने अपने पहले के बयान को जारी रखा कि वे अगली तारीख तक महाराष्ट्र सरकार से मांगे गए दस्तावेजों पर कार्रवाई नहीं करेंगे।

    अब मामले की सुनवाई 10 जून को होगी।

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