'सार्वजनिक रूप से फैशन ट्रेंड के रूप में फायर-आर्म के प्रदर्शन/ दिखावे के लिए लाइसेंस मांगने वालों से सावधान रहना चाहिए': मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अधिकारियों से कहा
LiveLaw News Network
21 Jun 2021 12:08 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने फायर आर्म लाइसेंस प्रदान करते समय एक व्यक्ति की जीवन की असुरक्षा की भावना के महत्वपूर्ण कारक को ध्यान में रखते हुए कहा कि प्राधिकरण को सार्वजनिक रूप से फैशन ट्रेंड के रूप में फायर-आर्म के प्रदर्शन/ दिखावे के लिए लाइसेंस मांगने वालों से सावधान रहना चाहिए।
न्यायमूर्ति एस ए धर्माधिकारी की खंडपीठ ने कहा कि,
"अब यह एक स्थापित कानून है कि एक गैर-निषिद्ध फायर आर्म रखने से किसी व्यक्ति को अपनी सुरक्षा के अधिकार को प्रभावित करने में मदद मिलती है। यह निश्चित रूप से इसके अधीन उचित प्रतिबंध के साथ भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार का एक हिस्सा माना जाता है।"
कोर्ट ने इसके अलावा कहा कि लाइसेंस एक नियम के तहत देना चाहिए और लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए अपवाद से बचना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि,
"एक व्यक्ति की अपनी असुरक्षा की भावना एक महत्वपूर्ण कारक है, इसलिए आर्म्स एक्ट,1959 की धारा 14 में निहित इसके अपने मानस, शारीरिक और मानसिक बनावट और अन्य कारकों के सम्मान और विचार करने की आवश्यकता है।"
यह ध्यान दिया जा सकता है कि आर्म्स एक्ट की धारा 13 लाइसेंस देने से संबंधित है और आर्म्स एक्ट की धारा 14 लाइसेंस से इनकार करने के बारे में है।
कोर्ट के समक्ष मामला
एक व्यवसायी ने प्रस्तुत किया कि उसे ग्वालियर जिले के पूरे क्षेत्र और दूरदराज के क्षेत्रों सहित आसपास के क्षेत्रों में व्यवसाय करता है और चूंकि ग्वालियर क्षेत्र को भी डकैत प्रभावित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया है और इसलिए उसने अपनी सुरक्षा के लिए रिवॉल्वर/ पिस्तौल रखने की बात कही।
व्यवसायी ने जिला मजिस्ट्रेट, ग्वालियर के समक्ष आर्म्स एक्ट,1959 की धारा 3 और 4 के तहत एक गैर-प्रतिबंधित फायर आर्म रखने और अपनी आत्मरक्षा के लिए फायर आर्म लाइसेंस के लिए आवेदन किया।
पुलिस से इस पर रिपोर्ट मांगी गई। यहां तक कि पुलिस अधीक्षक ने भी लाइसेंस जारी करने के लिए याचिकाकर्ता के मामले की सिफारिश की।
इसके बाद मामला राज्य सरकार को संदर्भित किया गया और राज्य ने याचिकाकर्ता के जीवन को कोई खतरा नहीं होने के एकमात्र आधार पर आवेदन को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता ने इसके बाद आवेदन के अस्वीकृति के आदेश को चुनौती दी।
कानून से संबंधित
आर्म्स एक्ट की धारा 13 के अनुसार, लाइसेंसिंग प्राधिकारी को अधिनियम की धारा 13 के तहत प्रक्रिया का पालन करके लाइसेंस देने या अन्यथा के मुद्दे पर विचार करना होता है और अधिनियम की धारा 14 के प्रावधान के अनुसार लाइसेंस से इनकार किया जा सकता है।
आर्म्स एक्ट की धारा 14 उन स्थितियों को चित्रित करती है जहां लाइसेंस देने से अनिवार्य रूप से अस्वीकार कर दिया जाना है।
ये स्थितियां इस प्रकार हैं:-
1. जहां किसी प्रतिबंधित हथियार या प्रतिबंधित गोला-बारूद के संबंध में धारा 3, या धारा 4 या धारा 5 के तहत लाइसेंस की आवश्यकता है।
2. जहां लाइसेंसिंग प्राधिकरण संतुष्ट है कि लाइसेंस की मांग करने वाले व्यक्ति को किसी अन्य कानून द्वारा किसी भी हथियार या गोला-बारूद को प्राप्त करने या रखने या ले जाने से प्रतिबंधित किया गया है।
3. जहां लाइसेंस की मांग करने वाला व्यक्ति की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है।
4. जहां लाइसेंस पाने का इच्छुक व्यक्ति आर्म्स एक्ट के तहत लाइसेंस धारण करने के लिए अयोग्य है।
5. जहां लाइसेंसिंग प्राधिकरण सार्वजनिक शांति या सार्वजनिक सुरक्षा की दृष्टि से लाइसेंस को अस्वीकार करना आवश्यक समझता है।
यह नोट किया जा सकता है कि जिस आधार पर यानी किसी व्यक्ति के जीवन या संपत्ति पर किसी भी तरह के खतरे की अनुपस्थिति के आधार पर आवेदन को खारिज कर दिया गया था, यह अधिकारियों के पास आवेदन को अनिवार्य रूप से अस्वीकार करने के लिए उपलब्ध नहीं है।
कोर्ट का अवलोकन
कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि अधिकारियों को प्रासंगिक मानदंड यानी किसी व्यक्ति की आवश्यकता की वास्तविकता पर विचार करना चाहिए, आर्म्स एक्ट,1959 की धारा 14 के तहत लाइसेंस धारण करने के लिए व्यक्ति की सुरक्षा के लिए इसमें निहित अपने मानस, शारीरिक और मानसिक बनावट और अन्य कारकों की जांच की जानी चाहिए।
कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से कहा कि,
"यदि संपत्ति के लिए खतरे की अनुपस्थिति लाइसेंस से इनकार करने का मानदंड नहीं है, तो यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि आवेदक के जीवन के खतरे की अनुपस्थिति लाइसेंस से इनकार करने का कोई मानदंड नहीं होगा।"
कोर्ट ने इसे देखते हुए कहा कि ऐसे कोई कारक नहीं है जो याचिकाकर्ता को फायर आर्म लाइसेंस प्राप्त करने और रखने के लिए अनुपयुक्त या अक्षम बनाता हो।
अदालत ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि आदेश पारित करने से पहले राज्य के अधिकारियों द्वारा किसी भी प्रासंगिक कारकों पर विचार नहीं किया गया है। आदेश पूरी तरह से एक गैर-बोलने वाला आदेश है और अधिनियम की धारा 14(1) में परिकल्पित स्थिति का खंडन करता है।
कोर्ट ने पहले के आदेश को पलटा और राज्य प्राधिकारियों को निर्देश दिया गया कि वे आर्म्स एक्ट की धारा 14 के प्रावधानों के अनुसार याचिकाकर्ता के आर्म लाइसेंस के दावे पर सही से पुनर्विचार करें और तीन महीने की अवधि के भीतर एक तर्कपूर्ण और स्पष्ट आदेश पारित करें।
केस का शीर्षक- गुरदीप सिंह ढिंजल बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य