वर्चुअल कोर्ट ने युवा महिला वकीलों की कार्य क्षमता बढ़ाईः जस्टिस चंद्रचूड़

LiveLaw News Network

17 Sep 2020 4:41 PM GMT

  • वर्चुअल कोर्ट ने युवा महिला वकीलों की कार्य क्षमता बढ़ाईः जस्टिस चंद्रचूड़

    सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि वर्चुअल कोर्ट ने युवा वकीलों, विशेषकर महिला वकीलों की उत्पादकता या कार्य क्षमता में वृद्धि की है।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि,

    ''मैं विशेष रूप से उन जूनियर वकीलों की संख्या से प्रभावित हूं जो वुर्चअल कोर्ट के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश हो रहे हैं। उनमें आत्मविश्वास की भावना है। अब वे एक वास्तविक फिजिकल कोर्ट से भयभीत नहीं होते हैं, जहां उन्हें सैकड़ों वकीलों के सामने बहस करनी होती थी।''

    उन्होंने कहा कि,

    ''मैं विशेष रूप से महिला वकीलों की भूमिका पर जोर देना चाहूंगा। कई युवा महिलाएं घर, दफ्तर आदि में कई गुना जिम्मेदारियां निभाती हैं। यह (वर्चुअल कोर्ट) युवा महिला वकीलों के लिए बहुत उच्च स्तर की उत्पादकता या कार्य क्षमता को सुनिश्चित कर रही हैं। वर्चुअल कोर्ट में सुनवाई होने के कारण वे जानती हैं कि उनका मामला कब आएगा। ऐसे में उन्हें अपने मामले की सुनवाई के लिए पूरा दिन अदालत में इंतजार नहीं करना पड़ता है। यह एक उल्लेखनीय बदलाव है।''

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी के अध्यक्ष भी हैं और उन्होंने मद्रास कोर्ट की पांच ई-कोर्ट परियोजनाओं के वर्चुअल उद्घाटन समारोह के मौके पर अपने विचार रखते हुए यह सब बातें कहीं।

    उन्होंने वर्चुअली 'नेशनल सर्विस एंड ट्रैकिंग ऑफ इलेक्ट्रॉनिक प्रोजेक्ट (एनएसटीईपी)', यरकौड में ई-सेवा केंद्र, ई-कोर्ट सर्विस, तमिलनाडु की सभी जिला अदालतों के लिए बायोमेट्रिक अटेंडेंस और चेन्नई में स्थित मद्रास हाईकोर्ट की प्रिंसीपल सीट पर ई-वे फाइंडर का उद्घाटन किया।

    भारत में 'तकनीकी विभाजन' पर प्रकाश डालते हुए, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने ई-सेवा केंद्रों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा,

    ''हम न्यायपालिका के सदस्यों के रूप में एक मुविक्कल को यह नहीं कह सकते हैं कि हम आपको सेवाएं नहीं दे सकते क्योंकि आपके पास इंटरनेट या स्मार्टफोन नहीं है। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी ने यह सुनिश्चित करने का दायित्व लिया है कि भारत की हर अदालत के परिसर में ई-सेवा केंद्र बनाए जाएं। भारत में 3200 से अधिक अदालत परिसर हैं।''

    उन्होंने यह भी कहा कि नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) में उपलब्ध आँकड़ों का इस्तेमाल न्यायिक अधिकारियों के 360 डिग्री आकलन के लिए किया जा सकता है। यह डाटा केवल उन मामलों के संदर्भ में ही इस्तेमाल नहीं किया जाता है,जिनको वे निपटाते हैं बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि वह अदालतें कितनी दूर है,जिनका वह संचालन करते हैं और उनको आईसीटी शासन प्रणाली में शामिल करते हैं।

    उन्होंने आगे यह भी सुझाव दिया कि राज्य के भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल रूप से अदालतों के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि न्यायाधीश भूमि पर होने वाले अतिक्रमणों का पता लगा सकें।

    COVID19 महामारी और लॉकडाउन के बीच पिछले पांच महीनों में ई-कोर्ट के कामकाज को दिखाने के लिए न्यायाधीश ने कुछ आंकड़े भी साझा किए।

    24 मार्च से 13 सितंबर के बीच भारत की जिला अदालतों में 34.74 लाख मामले दायर किए गए और 15.32 लाख मामलों का निपटारा किया गया। इस अवधि के दौरान जहां तक सुप्रीम कोर्ट का संबंध है, तो 6957+550 मामले क्रमशः वर्चुअली व फिजिकली रूप से दायर किए गए। जबकि 15,397 मामले बोर्ड पर सूचीबद्ध किए थे। करीब 8429 मामलों का निस्तारण किया गया।

    उन्होंने कहा कि,

    ''हमारी कार्यवाही (सुप्रीम कोर्ट में) को सुनने वाले लगभग 95,000 अधिवक्ता थे। वर्चुअल कोर्ट (सुप्रीम कोर्ट में) के जरिए 245 व्यक्ति पार्टी-इन-पर्सन के रूप में पेश हुए। 24 मार्च से 13 सितंबर की अवधि के दौरान वर्चुअल हियरिंग के माध्यम से 5,000 अधिवक्ता वास्तव में(सुप्रीम कोर्ट में) उपस्थित हुए।''

    उन्होंने कहा कि एनएसटीईपी जैसी परियोजनाएं सम्मन की सेवाओं में देरी और भ्रष्टाचार को खत्म कर सकती हैं। ई-कोर्ट सेवाएं यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि न्याय प्रणाली हर आम नागरिक के लिए सुलभ हो।

    उन्होंने यह भी कहा कि ई-कमेटी विभिन्न भाषाओं में युवा वकीलों को ट्यूटोरियल देने की योजना बना रही है ताकि वे न्यायिक प्रणाली में प्रौद्योगिकी के उपयोग को आसानी से अपना सकें।

    मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने वर्चुअल समारोह के दौरान मुख्य भाषण देते हुए कहा कि वर्चुअल कोर्ट द्वारा लाए गए बदलाव काफी उत्साहजनक हैं।

    उन्होंने कहा कि,''मद्रास हाईकोर्ट में वर्चुअल हियरिंग काफी सफल रही है। फिजिकल हियरिंग के लिए कोई मांग नहीं हुई है। वर्चुअल हियरिंग के लिए हमारे पास बहुत ज्यादा मामले आए हुए हैं। कुछ न्यायाधीशों के पास मामलोें की सूची बहुत लंबी रहती है,जिस कारण उनको शाम 6 बजे के बाद भी मामलों की सुनवाई करनी पड़ती है।''

    मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट में कुछ न्यायाधीश वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से गवाही दर्ज करने में भी सफल रहे हैं। इसका मतलब यह है कि गवाहों को अदालत तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़ी।

    मद्रास हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति टी एस शिवनगणानम ने स्वागत भाषण के दौरान तमिलनाडु न्यायपालिका से संबंधित आंकड़े साझा किए।

    उन्होंने कहा कि,''26 मार्च से 15 सितंबर के बीच तमिलनाडु के जिला न्यायालयों में वर्चुअल माध्यम से 1.83 लाख मामले दायर किए गए और 1.29 लाख मामले उक्त अवधि के दौरान निपटाए गए।''

    हाईकोर्ट की जज न्यायमूर्ति पुष्पा सत्यनारायण ने अंत में सभी का धन्यवाद किया।

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