"वर्चुअल कोर्ट क़ानूनी बिरादरी के लिए वरदान, मुफ़स्सिल एडवोकेट भी कहीं भी अपने मामले को पेश कर सकता है : वीसी द्वारा सुनवाई के विरोध पर मद्रास हाईकोर्ट ने कहा

LiveLaw News Network

10 Aug 2020 4:30 AM GMT

  • वर्चुअल  कोर्ट क़ानूनी बिरादरी के लिए वरदान, मुफ़स्सिल एडवोकेट भी कहीं भी अपने मामले को पेश कर सकता है : वीसी द्वारा सुनवाई के विरोध पर मद्रास हाईकोर्ट ने कहा

    मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि "यह वर्चुअल कोर्ट पूरी क़ानूनी बिरादरी के लिए वरदान है।"

    मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ के न्यायमूर्ति बी पुगलेंधि उस मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए मामले को सूचीबद्ध करने का विरोध किया गया था।

    पीठ ने कहा, "सौभाग्य से तमिलनाडु में, हमारे पास इंटरनेट की अच्छी सुविधा कुछ दूर दराज के गांवों सहित अमूमन हर जगह है।"

    पीठ ने कहा,

    "जब वर्चुअल अदालत की यह व्यवस्था मामले को दायर करने के लिए आसान है तो इस अदालत को यह समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे यह अंतिम सुनवाई के लिए कठिन है।"

    कोर्ट ने कहा कि जुलाई 2020 में इस अदालत ने 44 मामलों (आपराधिक पुनर्विचार मामले 21; आपराधिक अपील 10; आपराधिक मूल याचिका 10; रिट याचिका 3) को निपटाया है। फिर, मद्रास हाईकोर्ट की पूरी मदुरै पीठ में जुलाई 2020 में 5020 मामले (इसमें 1971 मिश्रित याचिकाएं शामिल थीं) दायर किए गए। इनमें से 4832 मामलों (1929 मिश्रित याचिकाएं) की वर्चुअल कोर्ट में सुनवाई हुई और इनका निस्तारण हुआ।

    पीठ ने कहा,

    "यहां तक कि कन्याकुमारी के किसी दूर दराज के गांव में बैठा वक़ील भी इस कोर्ट में, प्रिन्सिपल सीट और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में भी अपना मामला पेश कर सकता है।"

    न्यायमूर्ति पुगलेंधि ने कहा कि उन्होंने न्यायमूर्ति पीएन प्रकाश के साथ मिलकर सुबह 11.20 से शाम 7.30 तक मामले की सुनवाई की और इस बीच उन्होंने आधे घंटे का भोजनावकाश लिया। चेन्नई में बैठे वरिष्ठ वक़ील ने बड़े आराम से अपना मामला मदुरै के खंडपीठ के समक्ष पेश किया, खंडपीठ ने इसकी सुनवाई की और इसका निस्तारण किया।

    पीठ ने कहा कि यह कोर्ट सिर्फ़ प्रतिवादियों के लिए ही नहीं है बल्कि याचिकाकर्ताओं के लिए भी है जिन्होंने 2016 में इस अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था और पिछले चार सालों से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

    जब वक़ील ने कहा कि कोर्ट में 2014 के मामले भी लंबित हैं तो अदालत 2017 में दायर मामले की सुनवाई कैसे कर रही है, कोर्ट ने कहा कि वह मामले की सुनवाई क्रोनोलोजिकल क्रम में कर रहा है।

    न्यायमूर्ति पुगलेंधि ने मीडिया में प्रकाशित खबर की चर्चा की जिसमें कहा गया था कि बार का एक सदस्य सत्तूर में चाय बेच रहा है क्योंकि अदालत में कोई कामकाज नहीं हो रहा है। पीठ ने कहा कि राज्य के सभी मजिस्ट्रेटी अदालतों में ऑनलाइन सुनवाई हो रही है और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कोर्ट कुछ नहीं कर रहा है और उसके दरवाज़े बंद हैं।

    पीठ ने कहा कि 13 जुलाई 2020 को जो अधिसूचना नंबर 142 जारी किया गया उसमें कहा गया था कि मामलों की अंतिम सुनवाई नहीं की जाएगी और ऐसा आदेश बार के सदस्यों की माँग के बाद ही जारी किया गया था जिसमें कुछ व्यावहारिक दिक्कतों का ज़िक्र किया गया था।

    अदालत ने कहा कि ऑनलाइन कोर्ट चलाने का निर्णय प्रशासनिक समिति ने लिया है और इस क्रम में सभी साझेदारों के कल्याण का ख़याल रखा गया है, जिसमें वक़ील, मुक़दमादार और स्टाफ़ भी शामिल हैं और वर्चुअल सुनवाई की यह व्यवस्था सफल साबित हुई है और पिछले माह जितने मामलों को सूचीबद्ध किया गया और उनका निस्तारन हुआ वह इसका उदाहरण है।

    न्यायमूर्ति पुगलेंधि ने कहा,

    "यह मामला खुद इस बात का बड़ा उदाहरण है कि पक्षकार मामलों को आगे बढ़ाते रहते हैं और वे अपने पक्ष में आनेवाले फ़ैसलों का आनंद उठाते हैं।"

    'बहस कीजिए अन्यथा कोर्ट सीआरपीसी की धारा 386 के तहत आगे बढ़ेगा'

    वक़ील बदलकर, मामले की सुनवाई करने के लिए कोर्ट के ख़िलाफ़ आरोप लगाकर प्रतिवादी/आरोपी मामले की सुनवाई को आगे बढ़ने से रोकते हैं और इस बारे में अदालत ने सीआरपीसी की धारा 386 के तहत अपीली अदालत के अधिकारों का ज़िक्र किया।

    पीठ ने कहा,

    "कोर्ट के समक्ष जो अपील रखी गई है उसके आधार पर उसे सीआरपीसी की धारा 386 के तहत अपील पर अपीलकर्ता और प्रतिवादी की मौजूदगी की अपेक्षा किए बिना सुनवाई का क़ानूनी दायित्व है। अगर वे अदालत में पेश होते हैं तो कोर्ट उनकी बात अवश्य सुनेगा पर अगर वे पेश नहीं होते हैं तो कोर्ट उनकी दलील की प्रतीक्षा नहीं करेगा।"

    न्यायमूर्ति पुगलेंधि ने कहा कि सीबीआई द्वारा दायर एक आपराधिक अपील में सीबीआई ने कई स्थगन लिए हैं, और उस कार्यवाही में इस अदालत के एक खंडपीठ में शामिल एकल जज ने एक आदेश पास कर सीबीआई के लिए विशेष लोक अभियोजक की जगह एक वक़ील की नियुक्ति की और अपील की सुनवाई की। इसके बाद जाकर सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक सामने आया और मामले को आगे बढ़ाया।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस मामले में यद्यपि राज्य ने अपील दायर की है, पर राज्य भी अपील की कार्यवाही के लिए आगे नहीं आया है। इसलिए कोर्ट एक और मौक़ा देना चाहता है। आदेश के लिए इस मामले की अगली सुनवाई 07.08.2020 को निर्धारित करें। यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अगर पक्षकार अपनी दलील पेश करने में विफल रहते हैं तो यह कोर्ट मामले में आगे बढ़ने से हिचकेगा नहीं जैसा कि सीआरपीसी की धारा 386 में कहा गया है।"

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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