सतर्कता अधिकारियों को पुलिस अधिकारी माना जाए, वे भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामले दर्ज कर सकते हैं, जांच कर सकते हैंः केरल हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
13 Feb 2020 10:30 AM IST
केरल हाईकोर्ट ने माना है कि सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (VACB) एक विशेष पुलिस बल है, जिसका गठन राज्य सरकार की विधायी शक्तियों के जरिए किया गया है, जबकि पूर्ववर्ती सतर्कता विभाग में काम करने वाले अधिकारियों की शक्ति और अधिकार का स्रोत केरल पुलिस अधिनियम, 1960 था।
जस्टिस ए हरिप्रसाद और जस्टिस एन अनिल कुमार की पीठ ने कहा कि वीएसीबी के अधिकारियों को पुलिस अधिकारी माना जाता है और उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामले दर्ज करने, जांच करने, अंतिम रिपोर्ट दायर करने और अपराधियों पर मुकदमा चलाने का हक़ है।
हालांकि, बेंच ने कहा कि सतर्कता न्यायाधिकरण नियमों के नियम 4 के तहत राज्य सरकार के पास, भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़े कुछ मामलों को सतर्कता न्यायाधिकरण नियमों के तहत गठित सतर्कता न्यायाधिकरण से जांच कराने के लिए, और कुछ अन्य मामले में भ्रष्टाचार निरोध अधिनियम के तहत कोर्ट ऑफ इंक्वायरी कमिश्नर और स्पेशल जज फंक्शनिंग के समक्ष मुकदमा चलाने के लिए, मनमाने तरीके से चुनने का अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार, वस्तुपरक ढंग से ये पाने के बाद कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत एक लोक सेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए प्रासंगिक सामग्री नहीं है, उन कारणों से, जिनका सहारा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने के लिए नहीं लिया गया, मामले को सतर्कता न्यायाधिकरण को सौंपने के लिए, पारित आदेश विशेष रूप से निरीक्षण करेगी।
कोर्ट करुणानिधि और केटी मोहनन की रिट याचिकाओं पर विचार कर रही थी, जिनमें निम्नलिखित कानूनी मुद्दे उठाए गए थे:
1) क्या सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (संक्षेप में, VACB) संविधान की 7 वीं अनुसूची की सूची II द्वारा प्रदत्त राज्य सरकार की विधायी शक्ति के तहत गठित पुलिस बल है और क्या उनके पास एफआईआर दर्ज करने अपराधों की जांच करने, आरोप पत्र दायर करने और कथित अपराधियों पर मुकदमा चलाने को कानूनी अधिकार है?
2) क्या राज्य सरकार के कार्यकारी अधिकारियों के पास किसी वैधानिक समर्थन के बिना सतर्कता विभाग का गठन करने की शक्ति है?
3) क्या ऐसी शक्तियों का प्रयोग नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है, जो संविधान के भाग IIIमें निहित हैं, विशेषकर अनुच्छेद 21 का?
4) क्या केरल सिविल सेवा (सतर्कता न्यायाधिकरण) नियम, 1960 के नियम 4 में संविधान के अधिकार क्षेत्र से परे हैं?
पहले तीन मुद्दों का एक साथ जवाब देते हुए, पीठ ने कहाः
"हम मानते हैं कि पुलिस अधिनियम, 1960, जो खुद संविधान की 7 वीं अनुसूची की सूची II के तहत प्रदत्त अधिकार के अनुसार अधिनियमित किया गया था, राज्य सरकार को Ext.P4 जारी करने की शक्ति प्रदान करता है। याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां कि अपराधों का पंजीकरण, जांच करना, आरोपियों की गिरफ्तारी, अंतिम रिपोर्ट दाखिल करना, मामलों में मुकदमा चलाना Ext.P4 के अनुसार गैरकानूनी है, स्वीकार्य नहीं हो सकती हैं।
Ext.P4 एग्जिक्यूटिव ऑर्डर केरल पुलिस बल के भीतर विशेष कार्यबल गठित करने के लिए जारी किए जाते हैं। पूर्ववर्ती सतर्कता विभाग में काम करने वाले पुलिस अधिकारियों को पुलिस अधिनियम, 1960 से शक्ति और अधिकार प्राप्त होते थे। इसी प्रकार, वही कानून VACB में काम कर रहे मौजूदा अधिकारियों को शक्तियां प्रदान करता है।"
चौथे प्रश्न का उत्तर देते हुए, कोर्ट ने नियम को पढ़ा और कहा:
"हम विजिलेंस ट्रिब्यूनल रूल्स के नियम 4(1) को निम्न तरीके से पढ़ते हैं: वाक्यांशा "सरकार ट्रिब्यूनल को किसी भी मामले या उन मामलों के वर्ग को सौंप सकती है, जिन्हें वो मानती है कि ट्रिब्यूनल द्वारा निपटा जाना चाहिए।"
नियम 4 में होने का केवल मतलब और हमेशा यही मतलब होगा कि "किसी भी मामले या किसी भी मामले के वर्ग में, जहां पूरी जांच के बावजूद भ्रष्टाचार के आरोपों में एक लोक सेवक पर मुकदमा चलाने के लिए कोई सबूत नहीं एकत्र किया जा सकता है।"
यह नियम राज्य सरकार को किसी भी मामले को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए सतर्कता ट्रिब्यूनल को संदर्भित करने का अधिकार नहीं देता है। यदि किसी लोक-सेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए किसी भी प्रासंगिक सामग्री की अनुपलब्धता के बावजूद, सरकार को लगता है, कि उसके गंभीर दुराचार हैं, जिनमें विभागीय कार्रवाई की आवश्यकता है, तो सरकार ऐसा मामले को सतर्कता ट्रिब्यूनल को भेज सकती है।"
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