पीड़िता और आरोपी ने किया समझौता, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने छेड़छाड़ और दुष्कर्म के मामले में दर्ज FIR रद्द करने से इनकार किया
LiveLaw News Network
1 May 2020 8:33 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले महीने उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें एक व्यक्ति ने उसके खिलाफ एक टीवी अभिनेत्री द्वारा दर्ज करवाई गई प्राथमिकी (FIR ) रद्द करने की मांग की थी। इस मामले में दिल्ली की एक टीवी अभिनेत्री ने आरोप लगाया था कि आरोपी व्यक्ति ने उसका यौन शोषण किया और बंदूक की नोक पर उसका जबरन गर्भपात भी कराया था।
न्यायमूर्ति एस.एस शिंदे और न्यायमूर्ति वी.जी बिष्ट की खंडपीठ ने यह कहते हुए प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया कि आरोपी पर लगाए गए आरोप गंभीर हैंं। आरोपी मुंबई के एक रेस्तरां का मालिक है। अदालत ने पाया कि आरोपी ने पीड़िता से कहा था कि वह अविवाहित है। वहीं इसी बहाने उसने पीड़िता की सहमति के बिना कई बार उसका यौन उत्पीड़न किया।
पीड़िता ने फरवरी माह में एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें उसने कहा था कि ''अपने बुजुर्गों की सलाह के अनुसार'' आरोपी व उसने ''अपने बीच के विवाद को सौहार्दपूर्वक तरीके से निपटाने और बेहतर भविष्य और करियर के लिए अपने जीवन में आगे बढ़ने का फैसला किया है।''
केस की पृष्ठभूमि
पीड़िता द्वारा अप्रैल 2016 में पुलिस को दिए बयान के अनुसार, वह दिल्ली की रहने वाली है और मुंबई में एक अभिनेत्री के रूप में काम कर रही थी। उसने एक वैवाहिक वेबसाइट पर अपना एक प्रोफाइल बनाया था और जनवरी 2015 में आरोपी ने उसे फोन कॉल किया था। साथ ही उसके प्रोफाइल में अपनी रुचि व्यक्त थी। जिसके बाद उन दोनों ने नियमित रूप से चैट करना शुरू कर दिया और जनवरी के मध्य में उसने बताया कि वह अविवाहित है और वह उससे शादी करना चाहता है। पीड़िता ने अपने माता-पिता को इस प्रस्ताव के बारे में बताया। जिसके बाद उसने आरोपी को दिल्ली आने के लिए कहा। इसके बाद आरोपी दिल्ली आया,परंतु वह सिर्फ लड़की से मिला और उसके माता-पिता से मिलने से इनकार कर दिया।
आखिरकार, आरोपी ने पीड़िता के माता-पिता से मुलाकात की और उनकी बेटी से शादी करने की इच्छा व्यक्त की। फिर जुलाई में, आरोपी ने पीड़िता को फोन किया और उसे मुंबई आने के लिए कहा। उसने यह भी कहा कि वह उसे नौकरी दिला सकता है।
जुलाई में पीड़िता मुंबई आई और आरोपी उसके लिए फिल्म सिटी के एक अपार्टमेंट में रहने की व्यवस्था कर दी। आरोपी कभी-कभी उस फ्लैट पर आता था और उसकी सहमति के बिना उसके साथ शारीरिक संबंध बनाता था। वह अक्सर उससे शादी के बारे में पूछती थी लेकिन वह जवाब देता था कि वह उसके लिए फिल्म लाइन में काम खोज रहा है और शादी के मामले को टाल देता। पीड़िता ने बताया कि आरोपी ने अपने वादे के अनुसार उसे कोई काम भी नहीं दिलवाया।
इसके बाद, पीड़िता गर्भवती हो गई और जब उसने आरोपी को इसके बारे में बताया तो आरोपी ने उससे कहा कि वह गर्भपात करा ले। लेकिन पीड़िता ने उस पर शादी करने का दबाप बनाया और गर्भपात कराने से मना कर दिया। इसके बाद आरोपी ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया और गर्भपात कराने के लिए मजबूर करना शुरू कर दिया। उसने उसे उस घर से बाहर निकालने की धमकी दी,जिसमें आरोपी ने पीड़िता को रखा था। साथ ही उसे बताया कि उसके पास पीड़िता की नग्न तस्वीरें हैं और वह सोशल साइट्स पर उसे यानि पीड़िता को बदनाम करने के लिए उनको पोस्ट भी कर सकता है। इसके बाद भी जब पीड़िता ने गर्भपात कराने से इनकार कर दिया, तो आरोपी ने अपना रिवॉल्वर निकाल लिया और पीड़िता के कान की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अगर वह गर्भपात नहीं कराएगी तो उसके दिमाग को बाहर निकाल देगा।
इस प्रकार, पीड़िता ने अंधेरी में गर्भपात करवा लिया। उस समय आरोपी भी उसके साथ ही था। लेकिन गर्भपात होने के बाद आरोपी ने फ्लैट पर आना बंद कर दिया। इस घटना के बाद जब पीड़िता आरोपी के घर पर गई तो उसे पता चला कि वह तो पहले से ही शादीशुदा है।
इसके बाद पीड़िता ने कुरार ग्राम पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। हालांकि, फरवरी 2020 में पीड़िता की ओर से एक हलफनामा दायर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि अपने बुजुर्गों की सलाह पर आरोपी और उसने इस विवाद को सौहार्दपूर्वक निपटाने का फैसला किया है ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सके और वह कैरियर में आगे बढ़ सकें।
प्रस्तुतियांं
याचिकाकर्ता आरोपी की तरफ से एडवोकेट विशाल कानाडे और पीड़िता की तरफ से डॉ. अभिनव चंद्रचूड़ पेश हुए। वहीं एपीपी एसडी शिंदे राज्य की ओर से पेश हुए।
पीड़ित की ओर से फरवरी माह में हलफनामे के आधार पर, याचिकाकर्ता और पीड़िता ने वकीलों ने संयुक्त रूप से दलील दी कि इस मामले में दर्ज एफआईआर और दायर किए गए आरोप-पत्र को रद्द कर दिया जाए।
अधिवक्ता कनाडे ने अपने तर्कों के समर्थन में कई निर्णयों पर भरोसा किया।
एपीपी शिंदे ने इस आधार पर याचिका को खारिज करने का आग्रह किया था कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए कथित अपराध गंभीर और जघन्य हैं। उन्होंने कहा था कि कथित अपराध किसी एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है बल्कि इसका प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है, इसलिए ज्ञान सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर,दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर प्राथमिकी रद्द करने की प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट का फैसला
पीठ ने ज्ञान सिंह बनाम पंजाब राज्य, 2012 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा जताया है। वहीं इस फैसले का हवाला शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ ने 'मध्य प्रदेश राज्य बनाम लक्ष्मी नारायण व अन्य, 2019' मामले में दिए गए फैसले में भी दिया था।
लक्ष्मी नारायण (सुप्रा) में, शीर्ष अदालत ने कहा था-
''ऐसे जघन्य व गंभीर अपराध,जिनमें मानसिक विकृति या हत्या, बलात्कार और डकैती आदि शामिल हो,उनको पीड़ित या पीड़ित के परिवार द्वारा मामले को सुलझा लेने या समझौता कर लेने के बाद भी उचित रूप से रद्द नहीं किया जा सकता। ऐसे अपराध वास्तव में सच बोलने वाले होते हैं और यह निजी प्रकृति के नहीं है। क्योंकि इनका समाज पर गंभीर प्रभाव होता है।''
इस प्रकार, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि एफआईआर और चार्जशीट को निम्नलिखित आधारों पर खारिज नहीं किया जा सकता है-
''सबसे पहले, जैसा कि प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है। याचिकाकर्ता की शादी प्रतिवादी नंबर दो से मिलने से पहले ही हो चुकी थी। वह उस समय शादीशुदा था जब उसने पहली बार प्रतिवादी नंबर दो (पीड़ित) को फोन किया था। हालांकि, याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर दो से कहा कि वह अविवाहित है और उससे शादी करना चाहता है।
दूसरी बात, एफआईआर में लगाए गए आरोपों से प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर दो से वादा किया था कि वह उससे शादी करेगा और उक्त बहाने के चलते उसने प्रतिवादी नंबर दो की सहमति लिए बिना ही विभिन्न अवसरों पर उसका यौन शोषण किया।
तीसरा, प्रथम सूचना रिपोर्ट में एक गंभीर आरोप लगाया गया है। जिसमें बताया गया था कि याचिकाकर्ता ने बंदूक की नोक पर जबरदस्ती प्रतिवादी नंबर दो का गर्भपात करवाया था। ऐसा प्रतीत होता है कि जांच के दौरान जांच अधिकारी ने चिकित्सा अधिकारी का बयान दर्ज किया है और चिकित्सा रिपोर्ट भी एकत्र की गई है। क्या इस तरह का गर्भपात गन पॉइंट पर था या अन्यथा, यह जांच या परीक्षण का विषय है। वहीं प्राथमिकी को रद्द करने की मांग पर विचार करते हुए प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों को सारांश में नहीं निपटाया जा सकता है।
चैथा, यह प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने फिल्म उद्योग में प्रतिवादी नंबर दो को रोजगार दिलाने का का वादा करके उसकी दुर्बलता या कमजोरी का अनुचित लाभ उठाते हुए कथित अपराध किया है।''
अंत में अदालत ने कार्यवाही को रद्द करने की प्रार्थना को खारिज करते हुए कहा कि-
''हमारे विचार में, एफआईआर में प्रतिवादी दो ने जो आरोप लगाए हैं उन आरोपों का परीक्षण मामले की ट्रायल के दौरान होगा। वही याचिकाकर्ता की उस प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया जा सकता है,जिसमें उसने एफआईआर और आरोप पत्र को रद्द करने की मांग की थी। मामले में लगाए गए कथित आरोपों की प्रकृति अलग-अलग नहीं है। इसलिए कथित समझौते या मामले के तथ्यों के आधार पर प्राथमिकी, आरोपपत्र और लंबित कार्यवाही को रद्द करना संभव नहीं है क्योंकि कथित आरोपों की प्रकृति अलग-अलग नहीं है। वहीं वर्तमान कार्यवाही के परिणाम का समाज पर भी प्रभाव पड़ेगा।''
आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें