[COVID-19 महामारी] मजबूरों के हालात के प्रति अपनाया गया उदासीन दृष्टिकोण केंद्र और राज्य प्रशासन को अच्छी रौशनी में नहीं दिखाता : उत्तराखण्ड हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

29 May 2020 3:07 AM GMT

  • [COVID-19 महामारी] मजबूरों के हालात के प्रति अपनाया गया उदासीन दृष्टिकोण केंद्र और राज्य प्रशासन को अच्छी रौशनी में नहीं दिखाता : उत्तराखण्ड हाईकोर्ट

    Uttarakhand High Court

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार (27-मई-2020) को लॉकडाउन के दौरान देश के विभिन्न राज्यों में फंसे, उत्तराखंड के प्रवासियों को वापस लाने संबंधी दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान अदालत ने कहा कि मजबूरों के हालात सुधारने के लिए अपनाया गया उदासीन दृष्टिकोण, केंद्र और राज्य प्रशासन को अच्छी रौशनी में नहीं दिखाता है।

    मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं जस्टिस आर. सी. खुलबे की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि,

    "यदि 01 जून से प्रति दिन केवल 2000 व्यक्तियों को ही ट्रेन से लाया जाएगा तो शेष एक लाख फंसे हुए व्यक्तियों को देश के विभिन्न हिस्सों से उत्तराखंड राज्य में वापस लाने के लिए कम से कम 50 दिनों की आवश्यकता होगी, जिस अवधि के दौरान वे भोजन, पानी और आश्रय की कमी के चलते पीड़ा सहेंगे।"

    अदालत ने तापमान में असामान्य वृद्धि के मद्देनजर यह भी कहा कि, कुछ स्थानों में पारा 45 डिग्री सेल्सियस से परे पहुंचा गया है, इसके चलते जो लोग अपने घरों की ओर पैदल वापस जा रहे हैं, उनमें से कुछ को हीट स्ट्रोक से जूझना पड़ सकता है।

    जनहित याचिका में की गयी मांग

    दरअसल, यह जनहित याचिका उत्तराखंड राज्य सरकार में पूर्व मंत्री व धनोल्टी विधायक प्रीतम सिंह द्वारा दाखिल की गयी है जिसमे यह कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य से संबंधित लगभग 2.2 लाख लोग हैं, जिन्होंने अपना पंजीकरण कराया है और यह अनुरोध किया है कि उन्हें राज्य वापस में लाया जाए।

    याचिका में यह कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा जिस गति से इन्हें राज्य में वापस लाया जा रहा है, उस गति से इन सभी व्यक्तियों को राज्य में वापस लाने में लगभग छह महीने का समय लगेगा। और चूँकि इनमें से अधिकांश असहाय व्यक्तियों ने अपनी आजीविका का एकमात्र स्रोत खो दिया है, इसलिए वे भुखमरी की कगार पर हैं।

    आगे याचिका में, संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए ऐसे लोगों के विषय में कहा गया कि यदि उन्हें राज्य में वापस नहीं लाया जाता है, और उन्हें आवश्यक भोजन और आश्रय नहीं दिया जाता है, तो इससे भुखमरी से होने वाली मौतों में कई गुना वृद्धि होगी, जो COVID -19 रोग से संक्रमित लोगों की तुलना में कहीं अधिक है।

    केंद्र एवं राज्य सरकार का जवाब

    कोर्ट ने मामले की पिछली सुनवाई में राज्य व केंद्र सरकार से प्रवासियों को राज्य में वापस लाने में होने वाली देरी का कारण पूछा था, और यह कहा था कि जब लाखों लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया हुआ है तो उन्हें वापस लाने में देरी क्यों की जा रही है।

    केंद्र की तरफ से अदालत में पेश असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल राकेश थपलियाल ने कोर्ट को यह बताया कि आगमी 1 जून से, केंद्र सरकार अमृतसर-हरिद्वार व दिल्ली-हरिद्वार ट्रेन चलाने जा रही है और इसका अलावा, कुछ और ट्रेन भी चलाई जाएंगी। अदालत को उन्होंने यह भी बताया कि हर रोज 2000 लोग राज्य में वापस लाये जा सकेंगे।

    इसके अलावा, राज्य की तरफ से मुख्य स्थायी वकील, परेश त्रिपाठी ने भी कोर्ट को यह बताया कि प्रवासियों को उनके गन्तव्य स्थानों तक पहुचाने के लिए राज्य सरकार द्वारा 1000 बसों का बंदोबस्त किया गया है और अबतक 54,000 लोगों को राज्य के भीतर उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचा दिया गया है।

    अदालत को यह भी बताया गया कि लगभग 2.3 लाख फंसे हुए प्रवासी कामगारों और अन्य लोगों ने देश के विभिन्न हिस्सों से उत्तराखंड राज्य में वापस लाने के लिए अपना पंजीकरण कराया है; और 1,29,000 ऐसे फंसे हुए प्रवासी श्रमिक और अन्य लोग पहले ही वापस आ चुके हैं, अब लगभग एक लाख लोग शेष हैं, जिन्हें राज्य में वापस लाया जाना है।

    अदालत की टिपण्णी एवं आदेश

    अदालत ने दुर्भाग्यपूर्ण लोगों की समस्या को रेखांकित करते हुए कहा कि वे लोग जो COVID-19 महामारी के दौरान अपनी आजीविका के सभी साधन खो चुके हैं, उन्हें उनके घरों में वापस लाने के लिए पर्याप्त परिवहन सुविधाएं प्रदान करने के लिए तत्काल कदम उठाने में, और अधिक ट्रेनों और बसों को शुरू करने में हुई विफलता, इन लोगों को बिना भोजन के अपने घरों तक पहुँचने के लिए हजारों मील चलने को मजबूर करेगी।

    अदालत ने कहा,

    "संपन्न (Haves) द्वारा, विपन्न (Have nots) की, जो भोजन और पानी के बिना एक साथ मीलों तक चलने के लिए मजबूर हैं (चरम गर्मी के दौरान जब देश के कई हिस्सों में दिन के तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि देखी जा रही है), इस दुर्दशा के प्रति दिखाई गयी उदासीनता बेहद परेशान करने वाली है।"

    राज्य और केंद्र सरकार पर तीखी टिपण्णी करते हुए अदालत ने कहा कि,

    "इन दयनीय/मजबूर लोगों के हालात सुधारने के लिए अपनाया गया उदासीन दृष्टिकोण केंद्र और राज्य प्रशासन को अच्छी रौशनी में नहीँ दिखाता है।"

    अदालत ने ऐसे लोगों को अपने अपने घरों तक वापस भेजने में बेहतर तरीका अपनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि,

    "केंद्र और राज्य दोनों द्वारा, इन फंसे हुए श्रमिकों और अन्य लोगों को, जो उत्तराखंड राज्य में अपने-अपने घरों की ओर वापस जा रहे हैं, परिवहन के उचित और बेहतर तरीके से वापस लाने की आवश्यकता है। राज्य के भीतर अपने-अपने गंतव्यों तक ले जाने में उन्हें, पानी, भोजन और आश्रय प्रदान करने के लिए तत्काल उपाय किए जाने की आवश्यकता है।"

    अदालत ने अंत में भारत सरकार को इस सम्बन्ध में एक विस्तृत रिपोर्ट को जमा करने का समय देते हुए मामले को 29-मई-2020 तक के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा कि,

    "हालाँकि, इन लोगों की दुर्दशा के प्रति अधिकारियों की अपर्याप्त प्रतिक्रिया बेहद निराशाजनक है, पर हम सहायक सॉलिसिटर जनरल के अनुरोध को स्वीकार करते हैं, और 29.05.2020 तक भारत सरकार की रिपोर्ट प्राप्त होने का इंतजार करते हुए और उस दिन एक व्यापक आदेश पारित करने के लिए, इस रिट याचिका की सुनवाई को टाल रहे हैं।"

    मामले का विवरण:

    केस टाइटल: प्रीतम सिंह पंवार बनाम भारत संघ एवं अन्य

    केस नं: Writ Petition (PIL) No. 62 of 2020

    कोरम: मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं आर. सी. खुलबे

    उपस्थिति: श्री एस. के. मंडल (याचिकाकर्ता के लिए); राकेश थपलियाल, भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल एवं श्री परेश त्रिपाठी, मुख्य स्टैंडिंग काउंसल

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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