उत्तराखंड हाईकोर्ट ने निजी स्कूलों से कहा, उन छात्रों से ट्यूशन फीस की मांग न करें, जो ऑनलाइन क्लास तक पहुंचने में असमर्थ हैं
LiveLaw News Network
15 May 2020 9:45 AM IST
‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि निजी संस्थान अभिभावकों को ट्यूशन फीस का भुगतान करने के लिए मजबूर कर रहे हैं और इसके लिए कपटी या चालाक तरीकों को अपनाया जा रहा है। चूंकि छात्रों द्वारा ट्यूशन फीस का भुगतान करना स्वैच्छिक है, इसलिए निजी स्कूलों में से कोई भी ई-मेल या व्हाट्सएप संदेश या संचार के किसी अन्य साधन द्वारा अभिभावकों को ट्यूशन फीस का भुगतान करने के लिए नहीं कह सकता है।’’
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को लॉकडाउन की स्थिति को देखते हुए राज्य के सभी निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को अभिभावकों से ट्यूशन फीस की मांग करने से रोक दिया है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने यह आदेश 2 मई, 2020 के राज्य सरकार की तरफ से जारी आदेश के अनुरूप पारित किया है। राज्य सरकार ने अपने आदेश में निजी स्कूलों को ट्यूशन फीस के अलावा कोई भी फीस लेने से रोक दिया था। वहीं ट्यूशन फीस के भुगतान को भी स्वैच्छिक बताया गया था।
पीठ ने निर्देश दिया है कि
''जो छात्र निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा पेश किए जा रहे ऑनलाइन पाठ्यक्रम का उपयोग करने में सक्षम हैं, सिर्फ उन्हीं को ट्यूशन फीस का भुगतान करने की आवश्यकता होगी, यदि वे ऐसा करना चाहते हैं या कर सकते हैं।''
जबकि अदालत ने स्वीकार किया कि स्कूलों को अपने शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने और अन्य सुविधाओं के रखरखाव के लिए काफी खर्च करना पड़ता है।
लेकिन पीठ ने माना कि ''सरकार के 2 मई 2020 के आदेश का उद्देश्य उन माता-पिता का बोझ को कम करना है, जिनके पास इस संकट के समय में अपनी आजीविका कमाने का भी साधन नहीं है।''
पीठ ने कहा कि-
''हालांकि, इन संस्थानों की कठिनाइयां समझ में आती हैं कि अपने छात्रों से फीस एकत्र किए बिना यह अपने खर्च कैसे पूरे करेंगे। परंतु संकट के इस समय में आवश्यकता है कि वह सभी(जिनकी मदद करने की हैसियत है) उनकी मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाएं ,जिनकी स्थिति अभी अच्छी नहीं है। सरकार की तरफ से 2 मई 2020 को जारी किया आदेश सभी निजी स्कूलों को बांधता है। वहीं जब तक यह आदेश लागू रहेगा,सभी स्कूलों को इसमें लगाई गई शर्तों का पालन करना ही होगा।''
सरकार के आदेश के अनुसार, ट्यूशन फीस मांगने की सुविधा केवल उन्हीं निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को दी गई है,जो अपने छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं संचालित कर रहे हैं। जो निजी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूल ऑनलाइन कक्षाएं संचालित नहीं कर रहे हैं,उनको अपने छात्रों से ट्यूशन फीस मांगने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।
हालाँकि, जपिंदर सिंह और आकाश यादव की तरफ से दायर दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते समय पीठ को बताया गया था कि राज्य के निजी स्कूल ट्यूशन फीस का भुगतान करने के लिए ''अभिभावकों के साथ जबरदस्ती''कर रहे हैं।
यह भी बताया गया कि कुछ स्कूल अपर किंडरगार्टन छात्रों के लिए भी ऑनलाइन कक्षाएं संचालित कर रहे हैं। जो ''केवल भोले-भाले अभिभावकों से ट्यूशन फीस लेने के लिए'' संचालित की जा रही हैं।
सभी स्कूलों को ऐसी गतिविधियों में शामिल होने से रोकते हुए, पीठ ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए हैं-
1-"राज्य सरकार प्रत्येक जिले में, जिला शिक्षा अधिकारी और खंड विकास अधिकारी को नोडल अधिकारी नियुक्त करें। इन नोडल अधिकारियों को वह अभिभावक अपनी शिकायत कर पाएंगे जिनको निजी स्कूल ट्यूशन फीस का भुगतान करने के लिए बाध्य कर रहे हैं।
2-इस बारे में जनता को सूचित करने के लिए राज्य में बड़े पैमाने पर मीडिया के जरिए प्रचार किया जाए। ताकि सबको पता चल सकें कि वह इस संबंध में अपनी शिकायतों को नोडल अधिकारियों को संबोधित कर सकते हैं।
3-ऐसी कोई भी शिकायत प्राप्त होने पर, संबंधित नोडल अधिकारी तुरंत उस शिक्षण संस्थान के खिलाफ कार्रवाई करें,जो अभिभावकों पर उनके बच्चों की ट्यूशन फीस का भुगतान करने के लिए दबाव बना रहा है। हालांकि सरकार के 2 मई 2020 के आदेश स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ट्यूशन फीस का भुगतान करना स्वैच्छिक होगा।
4-चूंकि 2 मई 2020 का सरकारी आदेश केवल उन संस्थानों को ट्यूशन फीस मांगने में सक्षम बनाता है तो ऑनलाइन कक्षाएं चलाते हैं। वहीं यह फीस केवल उन छात्रों से मांगी जा सकती है जो निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा पेश किए जा रहे ऑनलाइन पाठ्यक्रम का उपयोग करने में सक्षम हैं। सिर्फ ऐसे ही छात्रों को ट्यूशन फीस का भुगतान करने की आवश्यकता होगी,यह भी उनकी स्वेच्छा पर निर्भर करता है या वो ऐसा करने के इच्छुक हैं।
5-जिन छात्रों की पहुंच आॅनलाइन कक्षाओं तक नहीं हो पा रही हैं,उनसे ट्यूशन फीस नहीं मांगी जा सकती है।
6-ऐसा प्रतीत होता है कि निजी संस्थान इन अभिभावकों को ट्यूशन फीस का भुगतान करने के लिए मजबूर कर रहे हैं और इसके लिए धूर्त या छलने वाले तरीकों को अपनाया जा रहा है। चूंकि छात्रों द्वारा ट्यूशन फीस का भुगतान स्वैच्छिक है, इसलिए इन निजी स्कूलों में से कोई भी स्कूल ई-मेल या व्हाट्सएप संदेश या संचार के किसी भी अन्य तरीके के जरिए अभिभावकों को ट्यूशन फीस का भुगतान करने के लिए नहीं कह सकता हैं।''
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि उत्तराखंड एक पहाड़ी और गरीब राज्य है। जहाँ पर काफी सारे निवासियों के पास इंटरनेट का अभाव है। जिसके परिणामस्वरूप उनके बच्चे स्कूलों द्वारा आयोजित ऑनलाइन कक्षाओं में भाग नहीं ले पा रहे हैं। इसके बावजूद भी उन्हें उनके बच्चों की ट्यूशन फीस का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पीठ ने कहा कि राइट टू चिल्ड्रन टू फ्री एंड कंपल्सरी एजुकेशन एक्ट 2009 के तहत निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों का यह वैधानिक दायित्व तय किया गया है कि उन्हें फीस चुकाने में असमर्थ बच्चों की कुछ श्रेणियों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करनी होगी। पीठ ने यह भी साफ किया है कि जिन छात्रों की पहुंच आॅनलाइन कक्षाओं तक नहीं हो पा रही है,उनको ट्यूशन फीस देने की जरूरत नहीं है।
न्यायालय ने स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव को निर्देश दिया है कि वह निम्नलिखित तथ्यों पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करें-
1-स्कूल शिक्षा का सचिव सभी जिला शिक्षा अधिकारियों से पूछे कि उनके संबंधित जिलों में ऐसे कितने निजी स्कूल हैं,जो ऑनलाइन पाठ्यक्रम प्रदान कर रहे हैं।
वहीं ऐसे ऑनलाइन पाठ्यक्रमों का लाभ उठाने वाले या इन तक अपनी पहुंच बनाने वाले छात्रों की संख्या के बारे में भी जानकारी मांगी जाए।
इन निजी स्कूलों में से प्रत्येक से यह जानकारी भी प्राप्त की जाए कि क्या उन छात्रों से भी ट्यूशन फीस वसूली जा रही है, जो स्कूलों द्वारा चलाए जा रहे ऑनलाइन पाठ्यक्रम तक अपनी पहुंच बनाने में सक्षम नहीं हैं? क्या यह स्कूल ऐसे छात्रों से भी ट्यूशन फीस वसूल रहे हैं?
यह जानकारी केवल कक्षा 1 से 10 वीं तक के छात्रों के संबंध में ही एकत्रित न की जाए, बल्कि उन बच्चों के संबंध में भी की जाए जो उनके अपर किंडरगार्टन में पढ़ते हैं।
स्कूल शिक्षा के सचिव इस संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट अदालत के समक्ष मामले की अगली सुनवाई तक प्रस्तुत करें।
2- स्कूल शिक्षा के सचिव अपर किंडरगार्टन छात्रों के लिए निजी स्कूलों द्वारा संचालित की जा रही ऑनलाइन कक्षाओं के बारे में भी जानकारी प्रस्तुत करें।
वह अपर किंडरगार्टन के बच्चों के लिए इस तरह के ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित करने के मामले मेें बुद्धिमत्ता से विचार करें और यह देखें कि क्या यह कक्षाएं सिर्फ ट्यूशन फीस वसूलने के लिए तो नहीं चलाई जा रही हैं ? वहीं शिक्षा सचिव इस संबंध में सभी निजी स्कूलों को उचित निर्देश भी जारी करें।
मामले की अगली सुनवाई अब 26 मई को होगी
मामले का विवरण-
केस का शीर्षक-जपिन्दर सिंह बनाम भारत संघ और आकाश यादव बनाम उत्तराखंड राज्य व अन्य।
केस नंबर-डब्ल्यूपी (पीआईएल) नंबर 59/2020 और 60/2020
कोरम-मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे
प्रतिनिधित्व-अधिवक्ता अजित वीर पुंडीर और अभिलाषा बेलवाल, अधिवक्ता ललित बेलवाल का संक्षिप्त विवरण देते हुए(याचिकाकर्ताओं के लिए) ,मुख्य स्थायी वकील परेश त्रिपाठी (राज्य के लिए), असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल राकेश थपलियाल (भारत संघ के लिए), अधिवक्ता संदीप तिवारी, एसके मंडल और शिखर काकर (इंप्लिइडमेंट या मामले में बनाए गए आवेदकों के लिए)
आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें