प्रेम का समर्थनः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महीने में अंतर-धार्मिक या अंतर-जातीय विवाह के 125 जोड़ों को सुरक्षा दी

LiveLaw News Network

2 Dec 2020 10:02 AM IST

  • प्रेम का समर्थनः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महीने में अंतर-धार्मिक या अंतर-जातीय विवाह के 125 जोड़ों को सुरक्षा दी

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नवंबर महीने में अंतर-विश्वास या अंतर-जातीय विवाह के सौ से अधिक जोड़ों को राहत दी है। हाईकोर्ट के फैसलों के सर्वेक्षण से यह जानकारी सामने आई है।

    पिछले महीने 117 मामलों में पारित आदेशों में, हाईकोर्ट ने संबंधित जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से उन जोड़ों की शिकायतों पर कार्रवाई करने के लिए कहा, जो जाति / धर्म के बाहर शादी करने पर रिश्तेदारों से जीवन और स्वतंत्रता के लिए खतरे का सामना कर रहे थे। रिट याचिकाओं का निस्तारण एसएसपी से संपर्क करने की अनुमति देकर और एसएसपी को वयस्कता, विवाह आदि से संबंधित तथ्यों को सत्यापित करने के बाद शिकायत पर कानून के अनुसार कार्रवाई करने के निर्देश देकर किया गया था।

    अंतर-विश्वास विवाह से संबंधित इन मामलों में से कई में भागीदारों में से एक ने धर्मांतरण किया था।

    इसके अलावा, लगभग 12 अन्य मामलों में, हाईकोर्ट ने पुरुष साथी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 366 के तहत अपहरण के अपराध में दर्ज मामलों को खारिज कर दिया। इनमें धार्मिक रूपांतरण से जुड़े मामले भी शामिल थे।

    हाईकोर्ट के ये हस्तक्षेप महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे 'लव-जिहाद' की कॉन्सपिरेसी थ‌ियरी के आसपास सांप्रदायिक रूप से बढ़ी बहस के बीच आए हैं। 31 अक्टूबर को, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बयान दिया था कि उनकी सरकार 'लव-जिहाद' के खिलाफ एक कानून लाएगी।

    'लव-जिहाद' शब्द मुस्लिम पुरुषों और हिंदू महिलाओं के बीच विवाह को, यह आरोप लगाकर कि हिंदू महिलाओं का साजिश के तहत धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है, बदनाम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अपने बयान में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ के फैसले का उल्लेख किया। प्रियांशी @ कुमारी शमरीन और अन्य बनाम यूपी राज्य के फैसले में विवाह के लिए धर्म परिवर्तन को अवैध करार दिया गया था।

    गौरतलब है कि कुछ दिनों बाद, हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को खारिज कर दिया था, जिसमें विवाह के लिए धर्मांतरण को अस्वीकार किया गया था।

    जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को अच्छा कानून नहीं बताते हुए कहा था कि पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में निहित है।

    डिवीजन बेंच ने कहा कि एकल बेंच का फैसला "साथी चुनने में दो परिपक्व व्यक्तियों के जीवन और पसंद की स्वतंत्रता का अधिकार" का निस्तारण करने में विफल रहा है।

    "... ना तो किसी व्यक्ति, ना एक परिवार और ना राज्य को, दो वयस्कों को अपनी इच्छा से रहने पर आपत्त‌ि हो सकती है।"

    हाईकोर्ट द्वारा संरक्षण आदेश पारित

    नवंबर में निस्तार‌ित 117 मामलों में एक जैसे हैं। उदाहरण के लिए, जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने मिजबा खान और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में 26 नवंबर में कहा था, "यह तय कानून है कि वयस्‍क विवाहित जोडों का यह अधिकार है कि वे किसी भी हस्तक्षेप के बिना शांति से रहें। ..."

    उपरोक्त मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानून के स्पष्ट प्रतिपादन के मद्देनजर (लता सिंह बनाम यूपी राज्य, एआईआर 2006 एससी 2522), संबंधित अधिकारियों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के अनुसार, उपरोक्त निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करना अनिवार्य है।

    अपहरण के मामलों को रद्द करना

    अंतर-जातीय/ धार्मिक विवाहों के कई मामलों में, असंतुष्ट परिवार के सदस्य रिश्ते में शामिल व्यक्ति के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज करते हैं, जिसमें आरोप लगाया जाता है कि उसने महिला का अपहरण किया था।

    हाईकोर्ट ने पिछले महीने भारतीय दंड संहिता की धारा 366 के तहत कम से कम 12 ऐसी एफआईआर को खारिज कर दिया, जिसमें यह देखा गया कि शादी करने के बाद पुरुष और महिला एक साथ एक जोड़े के रूप में रह रहे थे। आपराधिक मामलों को खत्म करने के लिए दंपती द्वारा संयुक्त रूप से दायर याचिकाओं पर आदेश पारित किए गए थे।

    ऐसे ही एक मामले में, विजेंद्र और अन्य बनाम यूपी राज्य में जस्टिस पंकज नकवी और विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा, "हम देख रहे हैं कि चूंकि याचिकाकर्ता संख्या दो घटना की तारीख तक वयस्‍क (24 वर्ष) थी, ...उसने स्वेच्छा से याचिकाकर्ता संख्या 2 के साथ 4 सितंबर, 2020 को शादी की थी, इसलिए धारा 366 आईपीसी के तहत अपराध नहीं किया गया है।"

    इस आदेश में शेफिन जहां बनाम केएम अशोकन (हादिया मामला), लता सिंह बनाम यूपी राज्य आदि में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को संदर्भित किया गया। सोनी गेरी बनाम गेरी डगलस में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को भी उद्धृत किया गया था।

    पिछले हफ्ते, उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 लागू किया, जो विवाह द्वारा धर्मांतरण का अपराधीकरण करता है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी लोकुर ने अध्यादेश की आलोचना करते हुए कहा ‌था कि यह "पसंद और गरिमा की स्वतंत्रता को पीछे छोड़ता है"।

    आदेश पढ़ने और डाउनलोड करने के लिए ‌क्ल‌िक करें

    संरक्षण आदेशों के उदाहरण- मिजबा खान और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, शबाना और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, माही @ गुलशन खातून बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, मीरा यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

    अपहरण के आरापों को रद्द करने के उदाहरण- विजेंद्र और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, श्रीमती आयशा ऊर्फ नंदिन राठी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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