आईटी एक्ट की धारा 66 ए के तहत एफआईआर दर्ज करके यूपी पुलिस कर रही है श्रेया सिंघल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना
LiveLaw News Network
26 Nov 2020 5:27 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा बार-बार याद दिलाने के बावजूद भी उत्तर प्रदेश पुलिस अभी तक 2015 के श्रेया सिंघल मामले के फैसले से अनभिज्ञ दिख रही है, जबकि इस फैसले के तहत आईटी एक्ट की धारा 66 ए को असंवैधानिक करार दिया गया था।
पिछले हफ्ते, एक बार फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ धारा 66 ए के तहत पिछले साल दर्ज की गई एक प्राथमिकी को रद्द कर दिया है।
जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने कहा कि अदालत धारा 66 ए के तहत दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट को लेकर ऐसी कई चुनौतियों का सामना कर रही है।
पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि,
''श्रेया सिंघल (सुप्रा) के मामले में माननीय शीर्ष न्यायालय ने इस धारा को अधिकारातीत घोषित कर दिया था और बाद में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (सुप्रा) के मामले में एक विशिष्ट आदेश के माध्यम से उक्त स्थिति को याद दिलाया गया था। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट जनादेश के बावजूद संबंधित अधिकारियों इन मामलों के प्रति अनुत्तरदायी और असंवेदनशील बने हुए हैं।
इस न्यायालय द्वारा भी उपरोक्त फैसले को प्रभावी ढंग से और वास्तविक तौर लागू करने के लिए समय-समय पर याद दिलाया गया है और यह बताया गया है कि आईटी एक्ट 2000 की 66-ए को अल्ट्रा वायर्स घोषित किया जा चुका है।
वही इस तथ्य के बावजूद भी कि उक्त निर्णय में ऐसा करने की घोषणा करते हुए, संबंधित अधिकारियों के बीच आदेश की प्रति को प्रसारित करने का आदेश दिया गया था, ऐसा प्रतीत होता है कि इस फैसले के प्रति कोई आदर नहीं है और स्थिति पहले की तरह बनी हुई है,जैसे यह धारा अभी भी लागू है। वर्तमान स्थिति ने हमें इस मुद्दे को फिर से उठाने के लिए प्रेरित किया है। इस रिट याचिका में भी, हमने पाया हैं कि उक्त अपराध के लिए एफआईआर दर्ज की गई है और राज्य ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन के संबंध में अपने अधिकारियों को निर्देश देने के लिए सुधारात्मक उपाय नहीं अपनाए हैं ताकि उस अपराध के लिए एफआईआर दर्ज न की जाए, जिसे अल्ट्रा वायर्स घोषित कर दिया गया है।''
हाल ही में, एक अन्य मामले में, न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, मथुरा को निर्देश दिया था कि वह अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें कि कैसे धारा 66ए के तहत एफआईआर पंजीकृत की गई है। पुलिस अधिकारी द्वारा धारा 66 ए के तहत अपराध को हटाए जाने की सूचना के बाद में इस मामले की सुनवाई को बंद कर दिया गया था।
जुलाई में, लाइव लॉ ने धारा 66 ए के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिए गए दो आदेशों के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित की थी। एक मामले में, एक पत्रकार शिव कुमार (अमर उजाला) ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 और 505 सहपठित महामारी अधिनियम की धारा 3 और आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की थी। उसकी याचिका का निपटारा करते हुए, अदालत ने कहा था कि
'यह स्पष्ट है कि संज्ञेय अपराध है जिसके लिए जांच चल रही है, इसलिए रियाअत के लिए कोई आधार नहीं बनता है।' अन्य मामले में, अदालत ने रोहित सिंघल नाम के एक व्यक्ति के खिलाफ आईटी एक्ट धारा 66 ए के तहत पंजीकृत एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जबकि उसके वकील ने श्रेया सिंघल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला भी दिया था।
श्रेया सिंघल जजमेंट
अनुच्छेद 19 (1) (ए) के उल्लंघन और अनुच्छेद 19 (2) के तहत दिए गए प्रतिबंधों के अंतर्गत न आने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66 ए को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। आईटी एक्ट में धारा 66 ए को वर्ष 2009 में संशोधित अधिनियम के तहत जोड़ा गया था।
उक्त प्रावधान ने तहत कंप्यूटर संसाधन या संचार उपकरण के माध्यम से संदेश भेजने वाले उन व्यक्तियों को दंडित किया जा सकता है,जो- (ए) कोई भी ऐसी जानकारी भेजते हैं जो मोटे तौर पर आपत्तिजनक है या धमकाने वाली है, या
(बी) ऐसी कोई भी जानकारी जिसे वह झूठी मानता है, लेकिन इस तरह के कंप्यूटर संसाधन या संचार उपकरण का उपयोग करके झुंझलाहट, असुविधा, खतरा, बाधा, अपमान, चोट, आपराधिक धमकी, दुश्मनी, घृणा या बीमार इच्छाशक्ति पैदा करने के उद्देश्य से भेजता है, या
(सी) किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मेल या इलेक्ट्रॉनिक मेल संदेश को झुंझलाहट या असुविधा या धोखा देने या प्राप्तकर्ता को इस तरह के संदेशों की उत्पत्ति के बारे में भ्रमित करने के उद्देश्य से उपयोग करना। इस अपराध के लिए तीन साल तक के कारावास की सजा हो सकती थी और साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता था।
2019 में सुप्रीम कोर्ट का रिमाइंडर
जनवरी 2019 में, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया और बताया कि आईटी एक्ट यानी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए का निरंतर उपयोग किया जा रहा है। भारत के अटॉर्नी जनरल द्वारा दिए गए सुझाव से सहमत होते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इस आवेदन का निपटारा कर दिया था और सभी हाईकोर्ट को निर्देश दिया था कि वह आठ सप्ताह के अंदर सभी जिला न्यायालयों को 'श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ' मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले की प्रतियां उपलब्ध करा दें। अदालत ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भी निर्देश दिया था कि वह इस देश के सभी पुलिस विभागों को संवेदनशील बनाने के लिए इस आदेश की प्रतियां सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशक को भेज दें।