किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाने के लिए महिला द्वारा यौन उत्पीड़न की झूठी कहानी पेश करना असामान्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

1 Jun 2023 10:34 AM GMT

  • किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाने के लिए महिला द्वारा यौन उत्पीड़न की झूठी कहानी पेश करना असामान्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 वर्षीय लड़की से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए मंगलवार को कहा कि किसी बेगुनाह व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाने के लिए किसी महिला का यौन उत्पीड़न की शिकार होने की झूठी कहानी पेश करना असामान्य होगा।

    जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने कहा कि हमारे देश में यौन उत्पीड़न की शिकार महिला किसी पर झूठा आरोप लगाने के बजाय चुपचाप सहती रहेगी, इसलिए जब तक वह वास्तव में यौन अपराध का शिकार नहीं होती, तब तक वह असली अपराधी के अलावा किसी और को दोष नहीं देगी।

    अदालत ने पक्षकारों की ओर से दी गई दलीलों, अपराध की गंभीरता, आवेदक की भूमिकाऔर सजा की गंभीरता को देखते हुए आरोपी आशाराम को जमानत देने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

    संक्षेप में मामला

    अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि आरोपी ने 22 अगस्त, 2022 को नाबालिग लड़की को जबरदस्ती सुनसान जगह पर ले गया, जहां उसने उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए और उसके बाद अगले दिन उसने उसे उसके बाहरी इलाके में छोड़ दिया। गांव में शिकायत करने पर उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी।

    मामले में एफआईआर 31 अगस्त, 2022 को पुलिस अधीक्षक, (जन शिकायत प्रकोष्ठ), संभल के हस्तक्षेप के बाद भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363, 366, 376, 506 और पॉक्सो एक्ट की 3/4 के तहत दर्ज की गई। इसके बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया।

    अब अभियुक्त ने इस आधार पर जमानत की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज अपने बयान में पीड़िता ने केवल यह कहा कि आवेदक-आरोपी ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया है। उसने विशेष रूप से यह आरोप नहीं लगाया कि कोई पेनिट्रेशन हुआ है। इसलिए पीड़ित के खिलाफ कथित तौर पर किया गया कृत्य आईपीसी की धारा 375(सी) के दायरे में नहीं आता है।

    पीड़िता की मेडिकल जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए आगे तर्क दिया गया कि पीड़िता के प्राइवेट पार्ट पर कोई चोट नहीं थी और सप्लीमेंट्री रिपोर्ट में भी कोई स्पर्मेटोजोआ नहीं पाया गया और डॉक्टर की राय थी कि यौन शोषण के बारे में कोई सकारात्मक राय नहीं दी जा सकती।

    दूसरी ओर, राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता द्वारा अपने बयान में लगाए गए आरोपों के अनुसार, आवेदक के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध बनता है और अपराध की गंभीरता को देखते हुए जमानत अर्जी खारिज की जानी चाहिए।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    शुरुआत में अदालत ने सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयानों का अवलोकन किया, जिससे यह ध्यान दिया जा सके कि अभियुक्तों के वकील का यह कहना कि कोई पेनिट्रेशन नहीं हुआ था, पूरी तरह से गलत है। अदालत ने कहा कि यह पीड़िता का विशिष्ट आरोप है कि आवेदक उसे जबरन सुनसान जगह पर ले गया, रात भर उसे एक कमरे में रखा और उसके साथ बलात्कार किया।

    अदालत ने कहा,

    "...पीड़िता आवेदक के पास लगभग डेढ़ दिन तक कैद में रही और विशिष्ट आरोप थे कि उसने उसके साथ दुष्कर्म किया और जांच अधिकारी द्वारा पूछे जाने पर उसने बताया कि आवेदक ने पहले उसकी पजामा उतारा और उसके बाद खुद को निर्वस्त्र किया और उसके ऊपर लेट गया। आवेदक-आरोपी का मामला यह में है कि बलात्कार करने की कोशिश में किसी ने हस्तक्षेप किया या पीड़िता को बचाने के लिए कोई उस जगह पर आया है, जिसके परिणामस्वरूप वह कृत्य को पूरा नहीं कर सका।"

    इसके अलावा, पेनिट्रेशन की सीमा के बारे में न्यायालय ने कहा कि आईपीसी की धारा 375 के तहत अभिव्यक्ति 'पेनिट्रेशन' पुरुष अंगों के महिला अंगों में प्रवेश को दर्शाता है। हालांकि, यह मामूली हो सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में यह माना कि महिला के अंगों में पुरुष अंगों का मामूली प्रवेश भी बलात्कार के बराबर है।

    इस संबंध में न्यायालय ने चीयरफुलसन स्नैतांग बनाम मेघालय राज्य 2022 लाइवलॉ (मेग) 6 के मामले में मेघालय हाईकोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया कि अंडरपैंट पहनने के बावजूद अभियोजिका की योनि या मूत्रमार्ग पर पुरुष अंग को रगड़ना अभी भी आईपीसी की धारा 375(बी) के तहत अपराध होगी।

    जहां तक आरोपी-आवेदक के वकील के अंतिम तर्क का संबंध है कि आवेदक की मेडिकल जांच सीआरपीसी की धारा 53ए के अनुसार नहीं की गई, अदालत ने कहा कि चूंकि आरोपी को घटना के पंद्रह दिनों के बाद गिरफ्तार किया गया, इसलिए जांच अधिकारी का उससे जांच कराना अनावश्यक समझना उचित है।

    इस पृष्ठभूमि में आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणी की,

    "अदालत को पीड़िता के साक्ष्य की सराहना करते हुए देश में विशेष रूप से ग्रामीण भारत में प्रचलित मूल्यों को ध्यान में रखना चाहिए। महिला के लिए किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार होने की झूठी कहानी बनाना असामान्य होगा।

    हमारे देश में यौन उत्पीड़न की शिकार महिला किसी को झूठा फंसाने के बजाय चुपचाप सहना पसंद करेगी। बलात्कार पीड़िता का कोई भी बयान महिला के लिए बेहद अपमानजनक अनुभव होता है और जब तक वह यौन अपराध का शिकार नहीं हो जाती , वह असली अपराधी के अलावा किसी और को दोष नहीं देगी।"

    अपीयरेंस- आवेदक के वकील : श्याम लाल, अभिलाषा सिंह, आशुतोष यादव और प्रतिवादी के वकील: जी.ए., कनक कुमार त्रिपाठी

    केस टाइटल- आशाराम बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य 2023 LiveLaw (AB) 173 [CRIMINAL MISC. जमानत आवेदन नंबर- 57301/2022]

    केस साइटेशन: लाइवलॉ (एबी) 173/2023

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




    Next Story