'पति बेरोजगारी की दलील देकर अपनी पत्नी के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से नहीं बच सकता': दिल्ली कोर्ट ने भरण-पोषण के अंतरिम आदेश को बरकरार रखा

LiveLaw News Network

14 Feb 2022 7:13 AM GMT

  • पति बेरोजगारी की दलील देकर अपनी पत्नी के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से नहीं बच सकता: दिल्ली कोर्ट ने भरण-पोषण के अंतरिम आदेश को बरकरार रखा

    दिल्ली कोर्ट (Delhi Court) ने एक मामले में पति द्वारा पत्नी को 5,133 रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण की मामूली राशि देने के आदेश को बरकरार रखा है।

    कोर्ट ने कहा कि केवल इस तथ्य को देखते हुए कि पति बेरोजगार है, वह अपनी पत्नी के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है।

    तीस हजारी कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजय शर्मा ने कहा कि पति बेरोजगारी की दलील देकर पत्नी के प्रति अंतरिम भरण पोषण के संबंध में अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "केवल इस तथ्य को देखते हुए कि पति बेरोजगार है, वह अपनी पत्नी के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकता है। अपीलकर्ता के पास कमाई के लिए आवश्यक शैक्षिक और व्यावसायिक योग्यता है। सेवा की समाप्ति का मतलब यह नहीं है कि अपीलकर्ता एक और रोजगार या काम खोजने में असमर्थ है।"

    पति ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 29 के तहत एक शिकायत मामले में एक आपराधिक अपील दायर की थी जिसमें महिला अदालत ने उसे प्रतिवादी पत्नी को याचिका दायर करने की तारीख से उसके अंतिम तक अंतरिम भरण पोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया था।

    पत्नी ने आरोप लगाया था कि अपर्याप्त दहेज नहीं देने पर उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। अंत में, उसने 7 अक्टूबर, 2013 को साझा घर छोड़ दिया।

    पत्नी का मामला यह था कि पति 50,000 प्रति माह रुपये से ज्यादा कमा रहा है और एक शानदार जीवन जी रहा है।

    दूसरी ओर, पति ने कहा कि वह एक स्टूडियो में काम करता है, जिससे 6,000 रुपये प्रति माह कमाता है। उसने कहा कि वह बेरोजगार है और उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है।

    उसने आगे कहा कि वह घरेलू खर्च वहन कर रहा है और अपने बूढ़े बीमार पिता की देखभाल कर रहा है और पत्नी सिलाई के काम से उससे अधिक कमा रही है।

    आदेश पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा,

    "शिकायतकर्ता अपीलकर्ता की पत्नी है। यह कहना सही है कि यह अपीलकर्ता का नैतिक और कानूनी दायित्व है कि वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करे और उसे अपनी स्थिति और जीवन स्तर के अनुरूप समान सुविधाएं प्रदान करे।"

    कोर्ट ने कहा कि पति एक स्नातक और एक अनुभवी फोटोग्राफर है जिसका उल्लेख उसके द्वारा दायर अतिरिक्त जवाब में भी किया गया है।

    बेंच ने कहा,

    "शिकायतकर्ता ने 12वीं कक्षा पास की है। वह कार्यरत नहीं है। उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। उसके पास कोई चल या अचल संपत्ति नहीं है जिससे कोई आय हो सके। वह अपने माता-पिता के साथ रह रही है। वह अपने माता-पिता पर निर्भर है। एक मात्र बयान इस संबंध में किसी भी विश्वसनीय सामग्री के अभाव में शिकायतकर्ता सिलाई के काम से कमाई कर रही है, यह अप्रासंगिक है। वह अपीलकर्ता से गुजारा भत्ता लेने की हकदार है।"

    अदालत ने यह भी देखा कि पति के पास कमाई के लिए आवश्यक शैक्षणिक और व्यावसायिक योग्यता है और सेवा की समाप्ति का मतलब यह नहीं है कि वह दूसरा रोजगार या काम खोजने में असमर्थ है।

    पीठ ने कहा,

    "अपीलकर्ता स्नातक है। वह सक्षम और अनुभवी फोटोग्राफर है। वह दिल्ली की एक पॉश कॉलोनी में पैतृक घर में रहता है। वह किसी भी शारीरिक अक्षमता से पीड़ित नहीं है जो उसे कोई काम करने से रोकता है। वह बेरोजगारी की दलील देकर शिकायतकर्ता के प्रति अंतरिम भरण पोषण अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है।"

    तदनुसार, अपील को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है और इसमें कानून या प्रक्रिया या विकृति की कोई स्पष्ट त्रुटि नहीं है।

    केस टाइटल: पवन दीप सिंह बनाम जसप्रीत कौर

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:




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