"अंतर-धार्मिक विवाह में पुलिस द्वारा अनुचित व्यवहार": गुजरात हाईकोर्ट ने इंटरफेथ जोड़े को रिहा करने और आईजी स्तर की जांच का आदेश दिया

LiveLaw News Network

22 Jan 2021 10:49 AM IST

  • अंतर-धार्मिक विवाह में पुलिस द्वारा अनुचित व्यवहार: गुजरात हाईकोर्ट ने इंटरफेथ जोड़े को रिहा करने और आईजी स्तर की जांच का आदेश दिया

    गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार (19 जनवरी) को एक इंटरफेथ मामले में यह रेखांकित करते हुए कि तथ्य (मामले के) काफी चकाचौंध और हैरान करने वाले कहते हुए फैसला सुनाते हुए कहा कि पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए इंटरफेथ जोड़े को रिहा किया जाए। इसके साथ ही रिमांड के आदेश को भी रद्द कर दिया और अलग कर दिय जाए, जो कि मजिस्ट्रेट द्वारा 18 जनवरी 2021 को पारित कर लाश निसार खान (पति) को अर्हता प्रदान की गई थी।

    अदालत ने पति के भाई निशार खान जीतूभाई घसुरा द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि उत्तरार्द्ध को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था। इसके बाद पुलिस हिरासत में भेज दिया गया था। अपने दूसरे समुदाय के 29 वर्षीय बचपन के दोस्त से हाल ही में शादी करने की वजह से उसके साथ ऐसा व्यवहार किया गया है।

    न्यायमूर्ति सोनिया गोकानी और न्यायमूर्ति संगीता के. विष्णु की खंडपीठ ने रेंज आईजी को निर्देश दिया कि,

    "वे इस मामले में पूछताछ करने के लिए संबंधित और अधिक विशेष रूप से, प्रतिक्रियाशील प्रतिवादी नंबर 5 और 6 (पुलिस) के आचरण पर विचार करें, जिनकी हिरासत में दंपति को लिया गया है। जब से इस इंटरफेथ जोड़ो को हिरासत में रखा गया है उसकी रिपोर्ट डीआईजी को सौंपी जाए।"

    इस तरह की जांच करते हुए रेंज आईजी को यह ध्यान में रखने के लिए निर्देशित किया गया है कि यह मामला है जिसे अनुचित धर्म-परिवर्तन बताया गया है और यह एक अंतर-धर्म विवाह है।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि,

    आईजी को ऐसे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के सुनहरे शब्दों को ध्यान में रखना है जहां विशेषकर लता सिंह बनाम यूपी राज्य एक और अन्य (2006) 5 एससीसी 475 और शक्ति वाहिनी बनाम यूओआई और अन्य (2018) 7 एससीसी 192 जैसे अंतर-जातीय / अंतर-धर्म विवाह के मामले में ऑनर किलिंग का मामला सामने आया था।

    अदालत ने श्वेता गिरीशचंद्र रावल (पत्नी) को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया, जो संबंधित न्यायालय के समक्ष 10,000 / - रुपये के निजी मुचलके को निष्पादित करता है।

    इसके अलावा, निशारखान जीतूभाई घसुरा (पति) को भी निर्देश दिया गया था कि वह अपने संबंधित व्यक्तिगत बॉन्ड के रूप में 10,000 / - राशि भरकर रिहाई ले लें।

    इससे पहले मंगलवार (19 जनवरी) को दिन में, अदालत ने राज्य को श्वेता निशारखान घसुरा जो 09.01.2021 से पुलिस हिरासत में थी और निशारकान घसुरा को पालनपुर के जिला न्यायालय में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 04:00 बजे पेश करने का निर्देश दिया था।

    अन्त में, राज्य ने भी अदालत को आश्वासन दिया कि दंपति को पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाएगी और सूरत के पुलिस आयुक्त को दंपति को 4 सप्ताह की अवधि के लिए शुरू में सुरक्षा प्रदान करने के लिए निर्देशित किया जाएगा। इसके बाद यह तय किया जाएगा कि क्या इसे जारी रखने की आवश्यकता है या नहीं।

    कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि,

    "इस तथ्य के मद्देनजर कि दंपति पालनपुर के मूल निवासी हैं, जब भी उन्हें पालनपुर जाने की आवश्यकता होती है, कम से कम एक सप्ताह पहले, वे पुलिस सुरक्षा पाने के लिए पालनपुर के एसपी से अनुरोध करेंगे। यह उन्हें वहीं प्रदान किया जाएगा। "

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि शक्ति वाहिनी बनाम भारत सरकार और अन्य के मामले में वर्ष 2018 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि,

    "जब दो वयस्क अपनी इच्छा से शादी करते हैं, तो वे अपना रास्ता चुनते हैं। वे अपने रिश्ते का उपभोग करते हैं। महसूस करते हैं कि यह उनका लक्ष्य है और उन्हें ऐसा करने का अधिकार है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "सम्मान के नाम पर किसी भी प्रकार का अत्याचार या पीड़ा या अशुभ व्यवहार किसी भी व्यक्ति के प्रेम और विवाह के खिलाफ है। किसी भी कानून के तहत इस तरह के अनुचित व्यवहार करने की अनुमति नहीं दिया सकता है।" ,

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    इसी तरह के मामले में हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले को दोहराते हुए कहा था कि कोई भी व्यक्ति दो वयस्कों के जीवन को बाधित करने का हकदार नहीं है जो स्वेच्छा से एक साथ रहते हैं। इस तरह अदालत ने एक

    इंटरफेथ दंपति उनके परिवार के हाथों उत्पीड़ित होने से बचाया था।

    न्यायमूर्ति सराल श्रीवास्तव की एकल पीठ ने कहा था कि,

    "अदालत ने बार-बार कहा है कि जहां दो व्यक्ति बहुमत की आयु प्राप्त कर चुके हैं, एक साथ रह रहे हैं, कोई भी उनके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप करने का हकदार नहीं है।"

    इसके अलावा पिछले महीने इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अंतरजातीय दंपति को फिर से कहा था कि जब महिला (शिखा) ने यह व्यक्त किया था कि वह अपने पति (सलमान यानी करण) के साथ रहना चाहती है, वह बिना किसी को बताए अपने पति के साथ रहने के लिए स्वतंत्र है बिना की तीसरे पक्ष के प्रतिबंध या बाधा के।

    न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ उस व्यक्ति (सलमान यानी करण) द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसकी इच्छा के खिलाफ उसकी पत्नी (शिखा) को उसके माता-पिता द्वारा बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को भेज दिया था।

    पिछले महीने दिल्ली हाईकोर्ट बुधवार (16 दिसंबर) को उत्तर प्रदेश के एक इंटरफेथ कपल के बचाव में आया था। इंटरफेथ जोड़े ने सतर्कता समूहों के हाथों धमकी, डराने और तीव्र उत्पीड़न की आशंका से अदालत का रुख किया था।

    इसके साथ ही कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार (21 दिसंबर) को स्पष्ट किया था कि अगर कोई वयस्क अपनी पसंद के अनुसार शादी करता है और धर्मपरिवर्तन करने का फैसला करता है और अपने पैतृक घर नहीं लौटता है, तो मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता है।

    नवंबर 2020 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि,

    "किसी भी बहुमत प्राप्त व्यक्ति का अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार भारत के संविधान में एक मौलिक अधिकार है।"

    न्यायमूर्ति एस सुजाता और सचिन शंकर मगदुम की खंडपीठ ने एक वजीद खान द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निपटारा किया था। इस याचिका में अपने प्रेमी राम्या को कारावास से मुक्त करने की मांग की गई थी।

    कोर्ट ने कहा था कि,

    "यह अच्छी तरह से तय है कि किसी भी बहुमत प्राप्त आयु वाले व्यक्ति का अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार भारत के संविधान में एक मौलिक अधिकार है। दो व्यक्तियों के व्यक्तिगत संबंधों से संबंधित उक्त स्वतंत्रता जाति या धर्म के आधार पर किसी भी व्यक्ति द्वारा अतिक्रमण नहीं की जा सकती है।"

    केस का शीर्षक - घासुरा रियाज़खान जीतूभाई बनाम गुजरात राज्य (Special Criminal Application No.773 of 2021)

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