राजस्थान हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 498A के तहत दोषी 82 वर्षीय महिला की सजा कम की

LiveLaw News Network

23 Jan 2022 11:15 AM GMT

  • राजस्थान हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 498A के तहत दोषी 82 वर्षीय महिला की सजा कम की

    राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ ने नरम रुख अपनाते हुए धारा 498ए आईपीसी के तहत दोषी 82 वर्षीय महिला को दी गई सजा को उसके द्वारा पहले से ही जेल में गुज़ारी गई अवधि तक कम कर दिया। महिला लगभग ढाई महीने तक जेल में रही और कोर्ट ने इसी अवधि तक उसकी सजा सीमित कर दी।

    न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति विनोद कुमार भरवानी ने कहा,

    "हमारा विचार है कि अपीलकर्ता सयारी पहले ही 82 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुकी है, इसलिए उसे दी गई सजा को उसके द्वारा पहले ही जेल में गुज़ारी गई अवधि तक कम कर दिया जाए जो लगभग ढाई महीने है। "

    महिला की दोषसिद्धि की पुष्टि करते हुए अदालत ने आदेश दिया कि धारा 498 ए आईपीसी के तहत अपराध के लिए, जैसा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज किया गया है और विद्वान अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, सोजत, पाली द्वारा पारित किया गया है, अपीलकर्ता को दी गई सजा उसके द्वारा जेल में अब तक गुज़ारी गई अवधि तक कम किया जाए।

    अदालत ने कहा कि चूंकि अपीलकर्ता जमानत पर है, इसलिए उसे आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता नहीं है, यदि किसी अन्य मामले में इसकी आवश्यकता नहीं है। अदालत ने अपीलकर्ता को जमानत बांड से मुक्त कर दिया।

    अदालत ने सीआरपीसी की धारा 437-ए के अनुसार, अपीलकर्ता को निचली अदालत के समक्ष 40,000/- रुपये की राशि का एक व्यक्तिगत बांड और इतनी ही राशि का एक जमानती बांड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

    अदालत ने कहा कि इस फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर करने की स्थिति में यह छह महीने की अवधि के लिए प्रभावी होगा।

    संक्षेप में मामला

    जयराम-शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि एक बुधराम सिरवी ने अपने बड़े भाई पेमाराम को सूचित किया कि उसकी बेटी इंद्रा की तबीयत ठीक नहीं है। परिवार के सभी सदस्य इंद्रा के घर गए, जहां उसका मृत शरीर फर्श पर पड़ा था और उसके मुंह पर खून के धब्बे पाए गए थे। उन्होंने कानाराम-अपीलकर्ता से पूछा, जिस पर उसने यह कहकर अज्ञानता का नाटक किया कि पिछली रात वह अपनी मौसी के घर पर था और उसने देखा कि जब वह सुबह लौटा तो इंद्रा फंदे से लटका हुआ था।

    इसके बाद एफआईआर दर्ज की गई और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में गला घोंटने से दम घुटने से मौत का कारण बताया गया।

    दलीलें सुनने के बाद और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों की सराहना करते हुए ट्रायल कोर्ट ने आरोपी-अपीलकर्ता सयारी और मोती बाई को धारा 498 ए के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया और सजा सुनाई, जबकि कानाराम धारा 498 ए और 302 आईपीसी के तहत दोषी करार दिया गया।

    चूंकि धारा 302 आईपीसी के तहत अपराध विशेष रूप से सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय था, यह मामला सत्र न्यायाधीश, पाली के न्यायालय समक्ष लाया गया, जहां से इसे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, सोजत के न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया।

    अपीलकर्ता ने निचली अदालत के आदेश दिनांक 17.04.1996 से व्यथित होकर सीआरपीसी की धारा 374(2) के तहत आपराधिक अपील दायर की गई।

    केस शीर्षक: श्रीमती सयारी व अन्य बनाम राजस्थान राज्य

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