ट्रायल कोर्ट के जज ने सजा सुनाते समय संस्कृत के श्लोक और जगजीत सिंह की गजल का उल्लेख किया; पटना हाईकोर्ट ने कहा- जज को ट्रेनिंग की जरूरत

LiveLaw News Network

14 April 2021 9:24 AM GMT

  • ट्रायल कोर्ट के जज ने सजा सुनाते समय संस्कृत के श्लोक और जगजीत सिंह की गजल का उल्लेख किया; पटना हाईकोर्ट ने कहा- जज को ट्रेनिंग की जरूरत

    पटना हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल जज को न्यायिक अकादमी में विशेष ट्रेनिंग की आवश्यकता है। कोर्ट ने यह टिप्पणी यह देखते हुए की कि ट्रायल कोर्ट के जज ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (POCSO ACT) के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को सजा सुनाते हुए संस्कृत के श्लोक और स्वर्गीय जगजीत सिंह की गजलों को संदर्भित किया।

    कोर्ट ने यह कहते हुए सजा के आदेश को पलटा कि ट्रायल में सामने आए सबूतों में किसी भी अपराध का गठन नहीं होता है।

    न्यायमूर्ति बीरेंद्र कुमार की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि मृत्युदंड की सजा देने की शक्ति रखने वाले एक ट्रायल जज के पास कानूनी सिद्धांतों का सही ज्ञान होना चाहिए और इसके साथ ही ट्रायल जज पर जीवन और व्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्णय लेने की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है।

    पीठ ने अवलोकन किया कि,

    "कानूनी सिद्धांतों के ज्ञान की कमी से मुकदमेबाजी में पक्षकारों से साथ अन्याय और अनावश्यक उत्पीड़न होता है। रिकॉर्ड पर रखे गए सबूतों के अलावा पूर्वाग्रह, अनुमान और व्यक्तिगत विचार का कानून की अदालत में कोई जगह नहीं है।"

    कोर्ट ने इस बिंदु पर यह भी विचार किया कि ट्रायल कोर्ट के फैसले और वर्तमान निर्णय को न्यायिक अधिकारियों के लिए उचित कानूनी प्रस्ताव के साथ उचित शैक्षणिक प्रशिक्षण सुनिश्चित करने के लिए बिहार न्यायिक अकादमी के निदेशक के पास भेजा जाना चाहिए।

    कोर्ट ने आदेश में कहा कि,

    "मुख्य न्यायाधीश यह सही से समझ सकते हैं कि मुकदमे की सुनवाई करने वाले ट्रायल जज को न्यायिक अकादमी में विशेष प्रशिक्षण की जरूरत है। इसलिए ट्रायल कोर्ट के इस निर्णय और पहले के निर्णय की कॉपी मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत की जाए। ट्रायल जज का निर्णय अपीलकर्ता के खिलाफ है। मृत्युदंड की सजा देने की शक्ति रखने वाले एक ट्रायल जज के पास कानूनी सिद्धांतों का सही ज्ञान होना चाहिए और इसके साथ ही ट्रायल जज पर जीवन और व्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्णय लेने की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है।"

    कोर्ट ने यह अवलोकन दीपक महतो द्वारा की गई अपील में किया, जिसे न्यायाधीश ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम की धारा 18 के तहत दोषी ठहराते हुए दस साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

    अभियोजन पक्ष के अनुसार, अपीलकर्ता अभियोजन पक्ष के घर में प्रवेश किया और एक 13 वर्षीय लड़की के साथ कथित रूप से यौन संबंध स्थापित किया। हालांकि अपीलकर्ता को परिवार वालों ने पकड़कर पुलिस को सौंप दिया था।

    ट्रायल के दौरान इस मामले में अभियोजन पक्ष ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए बयान में कहा गया कि उसने बलात्कार का प्रयास किया था, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया था।

    अपीलकर्ता का मामला था कि अभियोजन पक्ष के किसी भी गवाह ने अपीलकर्ता के खिलाफ किसी भी आरोप का समर्थन नहीं किया है, इसलिए मामला में कोई सबूत नहीं है। फिर भी ट्रायल कोर्ट के जज ने कानूनी सिद्धांतों के साथ गलत किया और सीआरपीसी की धारा 154 और धारा 164 के तहत दिए गए बयान पर भरोसा करते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप को साबित किया है।

    कोर्ट ने रिकॉर्ड पर रखे सबूतों की जांच करने के बाद कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ अपराध साबित नहीं होता है। ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपने बयान में अभियोजन पक्ष ने यह खुलासा नहीं किया कि उसके खिलाफ क्या अपराध किया गया था।

    कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 154, धारा 161 और धारा 164 के तहत दर्ज किए गए बयानों को अंतर्विरोध के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "दिए गए फैसले से पता चलता है कि ट्रायल कोर्ट ने जांच से पहले ही गवाह के रूप में अभियोजन पक्ष के बयान को पुख्ता सबूत के रूप में स्वीकार किया है। इस तरह आपराधिक ट्रायल के दौरान इकट्ठा किए गए सबूतों की जांच के बजाय यह निर्णय कानून के उचित सिद्धांत के तहत नहीं दिया गया है।"

    कोर्ट ने ट्रायल जज द्वारा पारित सजा के निर्णय को पलटते हुए कहा कि,

    "ट्रायल जज ने अपीलकर्ता के खिलाफ सजा सुनाते हुए संस्कृत के श्लोक और स्वर्गीय जगजीत सिंह की गजलों को संदर्भित किया है। मृत्युदंड की सजा देने की शक्ति रखने वाले एक ट्रायल जज के पास कानूनी सिद्धांतों का सही ज्ञान होना चाहिए और इसके साथ ही ट्रायल जज पर जीवन और व्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्णय लेने की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। कानूनी सिद्धांतों के ज्ञान की कमी से मुकदमेबाजी में पक्षकारों से साथ अन्याय और अनावश्यक उत्पीड़न होता है। रिकॉर्ड पर रखे गए सबूतों के अलावा पूर्वाग्रह, अनुमान और व्यक्तिगत विचार का कानून की अदालत में कोई जगह नहीं है।"

    जस्टिस बीरेंद्र कुमार ने कहा कि ट्रायल जज को न्यायिक अकादमी में विशेष ट्रेनिंग की आवश्यकता है। आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट के इस निर्णय और साथ ही पहले के निर्णय की कॉपी मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत की जाएं।

    शीर्षक: दीपक महतो बनाम बिहार राज्य

    जजमेंट की कॉपी यहां पढ़ें:



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