ट्रायल कोर्ट POCSO मामले में शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति में ज़मानत नहीं दे सकता, दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया

LiveLaw News Network

17 May 2020 7:00 AM GMT

  • ट्रायल कोर्ट POCSO मामले में शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति में ज़मानत नहीं दे सकता, दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया है कि वह 24 सितम्बर 2019 के प्रैक्टिस डिरेक्शन और रीना झा बनाम भारत संघ मामले में इस अदालत के आदेश को सभी ज़िला और सत्र अदालतों के साथ साझा करे ताकि आपराधिक अदालत इन बातों का पालन सुनिश्चित कर सकें।

    न्यायमूर्ति ब्रिजेश सेठी की एकल पीठ ने यह आदेश आईपीसी की धारा 376 और POCSO अधिनियम की धारा 4 के आरोपी व्यक्ति को सत्र न्यायालय से अंतरिम ज़मानत दिए जाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर अपील पर दिया है, लेकिन आरोपी को ज़मानत देने से पहले शिकायतकर्ता को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया।

    इन दिशानिर्देशों में कहा गया है कि आईपीसी की धारा 376/ 376(3)/ 376-AB/ 376-DA and 376-DB के तहत आरोप झेल रहे आरोपियों की ज़मानत याचिका पर सुनवाई के समय सूचना देने वाला/शिकायतकर्ता या उसके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति का उपस्थित रहना अनिवार्य है।

    याचिकाकर्ता की पैरवी करते हुए वक़ील तारा नरूला ने कहा कि सत्र न्यायालय का आदेश क़ानून के तहत ग़लत है क्योंकि ऐसा एफआईआर दर्ज कराने वाले व्यक्ति को सूचित किए बिना ही किया गया है और इस तरह उसको सुनवाई का मौक़ा नहीं दिया गया।

    नरूला ने इस बारे में सीआरपीसी की धारा 439 और इस अदालत के प्रैक्टिस डिरेक्शन का उल्लेख किया जो 24 सितम्बर 2019 को जारी किया गया था।

    याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि निचली अदालत ने यह आदेश जारी करते हुए इस तथ्य को नज़रंदाज़ किया कि पीड़िता अपने परिवार के साथ आरोपी के पड़ोस में रहती है और ऐसे में आरोपी को ज़मानत पर छोड़ना उसकी जान को जोखिम में डालने जैसा है।

    राज्य की वकील मीनाक्षी दहिया ने कहा कि इन निर्देशों का अक्षरशः पालन हो रहा है और जांच अधिकारी को भी इसका कठोरता से पालन करने को कहा जाएगा।

    अदालत ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश देकर यह सुनिश्चित करने को कहा कि जिस न्यायिक अधिकारी के आदेश के ख़िलाफ़ यह याचिका दायर की गई है उसका नाम कहीं से इस निर्देश के प्रसारण में उल्लेख नहीं आना चाहिए।

    शिकायतकर्ता को सुरक्षा देने के लिए अदालत ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को बीट कॉन्स्टेबल, एएसआई, डिविज़न अधिकारी और एसएचओ का नंबर उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि किसी भी मुश्किल के समय में वह संबंधित अधिकारियों से संपर्क कर सके।



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