पॉक्सो नियमों के तहत ट्रायल कोर्ट केवल मुआवजे की सिफारिश कर सकती है, राशि का निर्धारण नहीं कर सकती : कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

26 Jan 2020 4:15 AM GMT

  • पॉक्सो नियमों के तहत ट्रायल कोर्ट केवल मुआवजे की सिफारिश कर सकती है, राशि का निर्धारण नहीं कर सकती : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना कि ट्रायल कोर्ट / विशेष अदालत को जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण / राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण को POCSO नियमों, या पीड़ित मुआवजा योजना के अनुसार मुआवजे का फैसला करे और अवॉर्ड करने की सिफारिश करे, लेकिन उसे मुआवज़े की राशि का निर्धारण नहीं करना चाहिए, जो कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों के खिलाफ है।

    न्यायमूर्ति के नटराजन ने उस पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया है, जो कर्नाटक राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण, (केएसएलएसए) ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर की थी। निचली अदालत ने केएसएलएसए को निर्देश दिया था कि वह पीड़ित को POCSO नियमों के तहत 35,000 रुपये का अतिरिक्त मुआवजा दे।

    अदालत ने कहा कि, ''केएसएलएसए ने सही तर्क दिया है कि विशेष अदालत को पीड़ित मुआवजा योजना, 2011 में उल्लेखित अनुसूची की अनदेखी करके सीआरपीसी की धारा 357-ए के तहत या POCSO नियमों के तहत मात्रा या मुआवजे का निर्धारण नहीं करना चाहिए।''

    मामले की पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ता केएसएलएसए ने तर्क दिया कि पुलिस ने प्रतिवादी नंबर 2-आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 354-ए और यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण अधिनियम 2012 (POCSO अधिनियम) की धारा 7 और 8 के तहत दंडनीय अपराध में आरोप पत्र दायर किया था।

    ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने के बाद और मुकदमे के दौरान सरकारी वकील द्वारा दायर एक अर्जी पर सुनवाई के बाद आईपीसी की धारा 354-ए के संबंध में आरोपों को बदल दिया और POCSO अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध के लिए आरोपी को आरोपमुक्त कर दिया।

    ट्रायल के बाद, अदालत ने आरोपी को आईपीसी की धारा 354-ए के तहत दंडनीय अपराध का दोषी पाया और आरोपी को 4 महीने के कठोर कारावास की सजा दी और 15,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। जुर्माने की राशि न देने पर उसे दो महीने के साधारण कारावास की सजा काटनी होगी। कोर्ट ने केएसएलएसए को निर्देश दिया कि सीआर.पी.सी की धारा 357 के तहत पहले से दिए गए मुआवजे के अलावा 35,000 रूपये का अतिरिक्त मुआवजा दिया जाए।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया सीआर.पी.सी की धारा 357 के अनुसार, ट्रायल कोर्ट के पास पहले से आदेश दिए गए जुर्माने में से पीड़ित को मुआवजा देने की शक्ति है, लेकिन सीआर.पी.सी की धारा 357-ए के अनुसार, पीड़ित को मुआवजा सरकार की कर्नाटक पीड़ित मुआवजा योजना, 2011 के अनुसार भुगतान किया जाएगा और इस मुआवजे की राशि या मात्रा अदालत द्वारा तय नहीं की जा सकती है।

    मुआवजे की मात्रा का निर्धारण डीएलएसए द्वारा उक्त योजना में उल्लेखित अनुसूची के अनुसार, पीड़िता को आई चोट पर विचार करने के बाद तय किया जाता है।

    ट्रायल कोर्ट ने पहले ही POCSO अधिनियम के तहत अपराध के लिए प्रतिवादी नंबर 2 को आरोपमुक्त कर दिया था, इसलिए ट्रायल कोर्ट क्षतिपूर्ति या मुआवजे का भुगतान करने के लिए केएसएलएसए को निर्देश नहीं दे सकती है।

    यह भी दावा किया है कि इस मामले में पीड़िता को कोई चोट नहीं आई थी। इसलिए, सीआर.पी.सी की की धारा 357-ए के तहत अतिरिक्त मुआवजा देने का सवाल ही नहीं उठता है।

    अदालत ने कहा ट्रायल कोर्ट ने मुआवजा देने और केएसएलएसए को मुआवजा देने का निर्देश देकर उक्त आदेश पारित करने में त्रुटि की है। आमतौर पर, ट्रायल कोर्ट अनुशंसा करती है कि पीड़िता,सीआर.पी.सी की धारा 357 के तहत दिए गए मुआवजे के अलावा पीड़ित मुआवजा योजना,2011 के तहत मुआवजे के लिए डीएलएसए/केएसएलएसए से संपर्क करे और धारा 357-ए के तहत या POCSO नियमों के तहत या पीड़ित मुआवजा योजना के तहत मुआवजा दे।


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