ट्रायल कोर्ट ने महिला की शिक्षा पर पड़ने वाले कथित अपराध के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया, न्यायिक विवेक का प्रयोग नहीं किया: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने पोक्सो के आरोपी को जमानत दी

LiveLaw News Network

18 Oct 2021 10:06 AM GMT

  • Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने हाल ही में नाबा‌लिग पर यौन हमले के एक आरोपी को जमानत दे दी। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता और उसके पिता ने आरोपी के खिलाफ धारा 164 सीआरपीसी (बयान और स्वीकारोक्‍ति की रिकॉर्डिंग) में ‌‌दिए बयान में कुछ भी नहीं कहा है।

    अदालत ने यह भी कहा कि मौजूदा मामले में मूलभूत तथ्य, जो याचिकाकर्ता के खिलाफ पोक्सो अधिनियम की धारा 29 (कुछ अपराधों के रूप में अनुमान) के तहत अनुमान को जन्म देते हैं, स्थापित नहीं किए गए।

    आरोपी इशफाक अहमद खान को सत्र न्यायाधीश ने उसे इस आधार पर जमानत देने से इनकार कर दिया था कि कथित अपराध गंभीर है और अगर आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाता है तो इसका मामले पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जिसके बाद आरोपी ने हाईकोर्ट का दरवाज खटखटाया था।

    आरोपी को जमानत देते हुए जस्टिस संजय धर की खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालत ने उन्हें जमानत देने से इनकार करते हुए न्यायिक विवेक का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि जज ने महिला की शिक्षा पर कथित अपराध के प्रभाव पर अधिक ध्यान केंद्रित किया।

    इन टिप्प‌णियों के बाद कोर्ट ने कहा, "अदालत को जमानत आवेदन पर फैसला करते समय समाज पर अपराध के कारण पड़ने वाले प्रभाव पर विचार करने से पहले रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के संबंध में अपने विवेक को लागू करके कथित अपराध में आवेदक की संलिप्तता के बारे में एक प्रथम दृष्टया राय बनानी होती है।"

    संक्षेप में मामला

    कुलगाम पुलिस स्टेशन में एक व्यक्ति ने लिखित रिपोर्ट दायर कर आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता/जमानत आवेदक सहित आरोपी ने उसकी बेटी का अपहरण किया और उसके साथ बलात्कार करने का प्रयास किया।

    उक्त रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता सहित नामजद आरोपितों के‌ खिलाफ धारा 363, 376, 511, 323 आईपीसी और पोक्सो अधिनियम की धारा 7/8 के तहत अपराध की एफआईआर दर्ज की गई।

    हालांकि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए गए अपने बयान में पिता और उसकी बेटी/पीड़िता ने स्पष्ट रूप से कहा कि सह-आरोपी ने उसे वाहन में बैठाया था। उसने स्कूल के बाहर उसका मुंह दबा दिया और उसका अपहरण कर लिया।

    महत्वपूर्ण रूप से उसने अन्य अभियुक्तों यानि याचिकाकर्ता पर कोई भूमिका नहीं थोपी । दोनों आरोपियों के लिए उसका एकमात्र संदर्भ यह था कि जब वह अपने स्कूल से बाहर आई तो उसने दोनों आरोपियों को लाल रंग के वाहन में देखा, इसके बाद, उसने खुद को एक ट्रक के पीछे छुपा लिया लेकिन आरोपी शारिक सफदर ने उसका पीछा किया, उसे पकड़ लिया, हाथ पकड़ा और गाड़ी में बिठा लिया।

    हाईकोर्ट की टिप्पणियां

    शुरुआत में अदालत ने कहा कि पीड़िता और उसके पिता ने सह-आरोपी को स्पष्ट रूप से फंसाया था, लेकिन साथ ही, उन्होंने यहां याचिकाकर्ता के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा है।

    इसे देखते हुए कोर्ट ने कहा, " प्रथम दृष्टया, ऐसा प्रतीत होता है कि इन परिस्थितियों में अभियुक्तों के खिलाफ अपराध की धारणा को ट्रिगर नहीं किया जा सकता है, जिसका अर्थ यह है कि यह मानने का कोई प्रथम दृष्टया आधार नहीं है कि याचिकाकर्ता ने कथित अपराध किया है।"

    इसके अलावा इस बात पर जोर देते हुए कि विशेष जज ने याचिकाकर्ता की जमानत याचिका को खारिज करते हुए पीड़िता और उसके पिता द्वारा धारा 164 सीआरपीसी के तहत दिए गए बयानों पर अपना विवेक का प्रयोग करने की भी जहमत नहीं उठाई, अदालत ने उसे जमानत दे दी।

    केस शीर्षक - इशफाक अहमद खान बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश

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