धार्मिक संगठनों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों के प्रबंधन में पारदर्शिता जरूरी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

25 Dec 2021 6:00 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट


    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि शैक्षणिक संस्थानों (Educational Institutions) के मामले में विशेष रूप से धार्मिक संगठनों द्वारा संचालित शैक्षिण के प्रबंधन में पारदर्शिता जरूरी है। हाईकोर्ट ने कहा कि चर्च और अन्य धार्मिक संस्थाओं द्वारा द्वारा सोसाइटी को उचित और पारदर्शी तरीके से संचालित किया जाना चाहिए।

    याचिका में आरोप लगाया गया कि लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज, लखनऊ के मामलों में कुप्रबंधन किया गया।

    जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ बिशप सुबोध सी. मंडल द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी। इसमें यह आरोप लगाया गया कि चर्च/सोसाइटी की संपत्तियों को उन व्यक्तियों द्वारा बेचा गया, जो सोसाइटी के शीर्ष पर हैं।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि सोसाइटी के मामलों के कुप्रबंधन (लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज) के संबंध में कई मुकदमे हैं। उक्त मुकदमें उप रजिस्ट्रार, चिट्स, फर्म और सोसायटी, सिविल कोर्ट और उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं।

    इस पृष्ठभूमि के खिलाफ प्रतिवादी-राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त मुख्य सरकारी वकील ने प्रस्तुत किया कि आवेदक द्वारा लगाए गए आरोपों को देखते हुए यह उचित होगा कि एक अंतरिम उपाय के रूप में सोसाइटी के मामलों को देखने के लिए जिलाधिकारी, लखनऊ को निर्देशित किया जाए।

    हाईकोर्ट ने (16 दिसंबर को) अंतरिम उपाय के रूप में जिला मजिस्ट्रेट, लखनऊ को यह देखने के लिए कि सोसायटी द्वारा संचालित संस्थाओं के मामलों का उचित प्रबंधन हो, प्रशासक के रूप में सोसायटी का कार्यभार संभालने का निर्देश दिया।

    अदालत ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की,

    "इस न्यायालय की राय है कि शिक्षण संस्थानों के मामलों चर्च और सोसाइटी द्वारा संचालित धर्मार्थ/धार्मिक संगठनों को उचित और पारदर्शी तरीके से संचालित किया जाना चाहिए। सोसाइटी की संपत्तियों का निपटान उस तरीके से नहीं किया जाना चाहिए जिस तरह से उनका अतीत में निपटान किया गया है।"

    डिवीजन बेंच के 22 दिसंबर के बाद के आदेश

    हालांकि, यह ध्यान दिया जा सकता है कि एकल पीठ के जिला मजिस्ट्रेट को प्रशासक (लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज के) के रूप में नियुक्त करने के निर्देश पर न्यायालय की एक खंडपीठ द्वारा रोक लगा दी गई है। उक्त निर्देश पर यह रोक कोर्ट के अगले आदेश तक जारी रहेगी।

    जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस विवेक वर्मा की खंडपीठ ने अपीलकर्ता पक्ष (सी/एम लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज के अध्यक्ष/प्रबंधक और अन्य) के वकील द्वारा किए गए प्रस्तुतीकरण को ध्यान में रखते हुए आदेश पर रोक लगा दी थी।

    खंडपीठ ने दावा किया कि एकल पीठ का आदेश उसके समक्ष मामले की दलीलों से आगे निकल गया।

    यह भी तर्क दिया गया कि एकल पीठ ने उस मामले पर विचार किया जो कभी न्यायालय के समक्ष नहीं लाया गया। उसने गलती से जिला मजिस्ट्रेट को एक अल्पसंख्यक संस्थान में प्रशासक नियुक्त कर दिया।

    अंत में यह तर्क दिया गया कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत जिला मजिस्ट्रेट को अल्पसंख्यक संस्थान में प्रशासक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

    इन सबमिशनों के मद्देनजर अंतरिम रोक लगाते हुए न्यायालय ने सोसाइटी को कोई भी नीतिगत निर्णय (नों) या कोई बड़ा निर्णय लेने से रोक दिया। कोर्ट ने सोसाइटी को केवल नियमित कार्यों को करने के लिए कहा, जो संस्थान को चलाने के लिए आवश्यक हैं।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "यह कहने की जरूरत नहीं है कि शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के वेतन के वितरण के साथ-साथ दिन-प्रतिदिन का खर्च भी किया जाएगा। सोसाइटी को अपनी संपत्तियों को अलग करने से भी रोका जाता है।"

    कोर्ट ने सभी प्रतिवादियों से इस मामले में चार सप्ताह के भीतर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा।

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