ट्रांसमिशन लाइन रूट- "किसानों का कम से कम विस्थापन या कृषि भूमि की कम गड़बड़ी सुनिश्चित करना": मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य से कहा

LiveLaw News Network

24 Jan 2021 2:30 AM GMT

  • ट्रांसमिशन लाइन रूट- किसानों का कम से कम विस्थापन या कृषि भूमि की कम गड़बड़ी सुनिश्चित करना: मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य से कहा

    मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार (18 जनवरी) को कहा कि यदि कृषि भूमि पर ट्रांसमिशन टावर/लाइनें स्थापित की जानी हैं, तो राज्य द्वारा ट्रांसमिशन की लागत को भी ध्यान में रखते हुए मार्ग की योजना इस तरह बनाई जानी चाहिए ताकि किसानों का कम से कम विस्थापन हो या कृषि भूमि की गड़बड़ी भी कम हो।

    मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश की खंडपीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें याचिकाकर्ता ने एक मुद्दा उठाया है कि ट्रांसमिशन लाइनों को कैसे डिज़ाइन किया जाना चाहिए ताकि कृषि भूमि में कोई गड़बड़ी न हो या कृषि योग्य क्षेत्रों के बड़े ट्रैक्ट का भी दुरूपयोग न हो सके।

    कोर्ट ने निर्देश दिया कि,

    "याचिका की एक प्रति को चेन्नई के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल विभागों के प्रमुख को भेज दिया जाए, ताकि अगली बार मामला सामने आने पर ऐसे निकाय का वर्चुअल मोड में प्रतिनिधित्व किया जा सके।"

    याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि इस मामले के पहलुओं जैसे कि ट्रांसमिशन लाइनों से विद्युत चुम्बकीय उत्सर्जन, जो फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। इसके साथ ही मानव स्वास्थ्य पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इन सब बातों को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा अपनी रिपोर्ट में जगह देनी चाहिए।

    "इसके लिए न्यायालय का विचार था कि वर्तमान में भूमिगत लाइनों को ले जाने के लिए दूर-दूर तक पहुंचा हुआ प्रतीत होता है। विशेष रूप से क्योंकि इसमें भारी खर्च होता है। इसके साथ ही ऐसी लाइनों को भूमिगत किए जाने से कृषि कार्यों में परेशानी आएगी। लेकिन इसके लिए जैक-पुसिंग विधि और बोरिंग विधि का उपयोग किया जा सकता है। इस तरह के संबंध में वैज्ञानिक अध्ययन का सहारा लिया जा सकता है।"

    [नोट: दिलचस्प बात यह है कि वर्ष 2019 में मद्रास हाईकोर्ट ने सुझाव दिया था कि तमिलनाडु सरकार उच्च-तनाव शक्ति संचारित करने के लिए भूमिगत केबल बिछाने पर विचार कर रही है ताकि उच्च वोल्टेज के संभावित प्रभाव के कारण कैंसर बेअसर हो जाए।

    जस्टिस एन किरुबाकरन और जस्टिस एस सुंदर ने अपने अंतरिम आदेश में पावर ग्रिड कॉरपोरेशन के मुख्य प्रबंधक, करूर, तिरुचि और डिंडीगुल के कलेक्टरों को नोटिस जारी किया था और चार सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए मामला पोस्ट किया था।]

    इसके अलावा तत्काल मामले में कोर्ट ने कहा कि राज्य या उपयुक्त अधिकारियों को ट्रांसमिशन लाइनों के मार्गों को बनाते समय कम से कम प्रतिरोध की रेखाएं लेनी चाहिए।

    बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि,

    "यह संभव है कि कृषि भूमि पर टावरों को स्थापित किया जाना है, लेकिन ट्रांसमिशन की लागत को भी ध्यान में रखते मार्ग को इतना नियोजित किया जाना चाहिए कि किसानों का कम से कम विस्थापन हो या कृषि भूमि में कम गड़बड़ी हो।"

    अंत में, एक और रिट याचिका (इसी मामले से संबंधित और एकल पीठ के समक्ष लंबित) के साथ आगे की सुनवाई के लिए मामले को 15 फरवरी 2021 के लिए सूचिबद्ध किया गया।

    सम्बंधित खबर

    वर्ष 2019 में, मद्रास हाईकोर्ट ने माना था कि सेल फोन टॉवर से विकिरण के प्रभाव के बारे में एक आशंका पर सेल फोन टावरों के निर्माण को रोका नहीं जा सकता है।

    न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने रिलायंस जियोइन्फोफॉम को पुलिस सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोयम्बटूर में पट्टे पर दी गई संपत्ति में टॉवर लगाने के मामले में कहा था कि,

    "आशंका का वैज्ञानिक समर्थन नहीं है। इस संबंध में एक सकारात्मक खोज दिए जाने तक, सेल फोन टावरों को केवल आशंकाओं पर स्थापित होने से नहीं रोका जा सकता है।"

    वर्ष 2019 में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह भी देखा था कि टीसीएस / बीएस से निकलने वाले गैर-आयनित विकिरण और दूरसंचार नेटवर्क के लिए उपकरणों से होने वाले गंभीर नुकसान के किसी भी पहचान योग्य जोखिम का संकेत देने वाला कोई निर्णायक वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

    हालांकि, पिछले साल कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस घटना में जियो मोबाइल टॉवर के निर्माण पर रोक लगा दी थी कि स्थानीय स्वशासी अधिकारियों ने टॉवर की स्थापना के संबंध में सलाहकार दिशानिर्देशों के खंड 4A का अनुपालन नहीं किया था। इसके अलावा, अदालत ने यह भी पाया कि अधिकारियों ने प्रस्तावित मोबाइल टॉवर की साइट के आसपास के क्षेत्र में लोगों से आपत्तियां आमंत्रित नहीं की थी।

    हाल ही में, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मोबाइल टॉवर को दूसरी जगह स्थानांतरित करने के लिए उत्तरदाताओं को आदेश जारी करने से इनकार करते हुए कहा कि प्रशासन चलाना न तो कोर्ट की जिम्मेदारी है, और न ही कर्तव्य है।

    पिछले महीने, मद्रास हाईकोर्ट ने एक 22 साल के लड़के के माता-पिता को मुआवजा देने का आदेश दिया था, जो खुले विद्युत तार पर कदम रखने के बाद विद्युतीकरण के कारण मर गया था।

    केस शीर्षक - नेताजी बनाम भारत संघ और अन्य [ WP(MD) No. 18308 of 2020 and WMP(MD) No. 15297 of 2020]

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