भारतीय रेल ट्रेन में लोअर बर्थ आवंटन के वरीयता-क्रम पर पहले गर्भवती महिलाओं को, फिर सीनियर सिटीजन को और उसके बाद VVIP को रखने पर विचार करे: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
30 July 2020 2:02 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार (27 जुलाई) को स्वतः संज्ञान लेकर दर्ज की गयी एक जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए भारतीय रेल (Indian Railways) से यह कहा कि रेलगाड़ी में लोअर बर्थ को आवंटित करने के दौरान गर्भवती महिलाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता दें, उसके बाद वरिष्ठ नागरिकों को और उसके बाद वीवीआईपी को प्राथमिकता देने पर विचार करें।
न्यायमूर्ति संजय यादव एवं न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की खंडपीठ ने इस जनहित याचिका (पीआईएल) को बड़े पैमाने पर जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए रेलवे यात्रा के संबंध में कुछ उपायों पर विचार करने के लिए स्वतः संज्ञान लेकर दर्ज किया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह जनहित याचिका मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश द्वारा की गई एक ट्रेन यात्रा से सम्बंधित है, और यह उसी के मद्देनजर दर्ज की गयी थी, जब माननीय न्यायमूर्ति आधिकारिक यात्रा पर ग्वालियर से जबलपुर की यात्रा कर रहे थे।
दरअसल, जब ट्रेन कटनी-मुरवारा स्टेशन पर पहुंची, तो न्यायाधीश एक कप चाय लेने के लिए ट्रेन से उतर गए और अचानक, ट्रेन ने अपना हॉर्न बजाए बिना ही प्लेटफॉर्म से बाहर निकलना शुरू कर दिया। न्यायमूर्ति को बड़ी असुविधा हुई और यह देखते हुए की ट्रेन चलने लगी थी, उन्हें बोर्डिंग का खतरा भी महसूस हुआ।
इस मामले के चलते माननीय न्यायमूर्ति ने भारतीय रेल के समक्ष तीन सुझाव रखे, जिन्हें यदि लागू किया जाये तो यात्रा के दौरान ट्रेन-यात्री आराम से एक लंबा रास्ता तय कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति के सुझाव एवं भारतीय रेल का उस पर जवाब
माननीय न्यायाधीश द्वारा दिए गए तीन-सुझाव इस प्रकार थे:-
सुझाव नंबर 1 - यह जनता के हित में होगा कि ट्रेन के बाहर मौजूद यात्रियों को दुर्घटना से बचाने के लिए ट्रेन के प्रस्थान से पहले सतर्क होने में सक्षम करने के लिए ट्रेन की प्रत्येक बोगी पर कुछ प्रकाश संकेत/ध्वनि लगाये जाएँ।
भारतीय रेल का जवाब - न्यायमूर्ति को हुई असुविधा पर अफ़सोस जताते हुए भारतीय रेल की ओर से प्रथम सुझाव पर यह उत्तर दिया गया कि कोई भी ट्रेन कम से कम दो सीटी दिए बिना और प्रत्येक ट्रेन के सामने प्लेटफॉर्म पर हरे/एम्बर सिग्नल के बिना नहीं चलती है।
उनके द्वारा यह आगे कहा गया है कि शायद जज ने प्लेटफॉर्म पर तेज आवाज के कारण इंजन की सीटी/हॉर्न को नहीं सुना होगा। भारतीय रेल/उत्तरदाता का कहना था कि संबंधित कर्मचारियों को आगे निर्देश जारी किए गए हैं कि यह सुनिश्चित किया जाए कि उनके द्वारा आगे से अधिक सावधानी बरती जाये और पब्लिक एड्रेस सिस्टम के माध्यम से बार-बार घोषणाएं हों। और ट्रेन के प्रस्थान के संबंध में भी वीडियो प्रदर्शित किया जाये।
कोचों पर लाइट सिग्नल या हूटर लगाने को रेलवे/उत्तरदाता ने कहा है कि कोच के संशोधन के लिए नीतिगत निर्णय की आवश्यकता होती है और पूरे देश में हजारों ट्रेनों को प्रभावित करने वाले डिजाइन के अनुमोदन की आवश्यकता होती है और रातोंरात या महीनों में भी सिग्नलिंग की एक नई प्रणाली पर स्विच करना संभव नहीं होगा।
उत्तरदाता ने आगे कहा कि इस प्रणाली को विशेषज्ञों के एक अति विशिष्ट निकाय द्वारा विकसित किया गया है। हालांकि, उत्तरदाताओं ने हरे/पीले संकेतों और अधिक कुशल प्रदर्शन सुनिश्चित करने के प्रयास करने की बात अदालत से कही, और यह भी कहा कि ट्रेन के निकलने से पहले हॉर्न के जोर से और बार-बार बजना भी सुनिश्चित किया जायेगा।
सुझाव नंबर 2 - यदि आरक्षण के समय आवंटित की जाने वाली सीटों/बर्थों की स्थिति को वेबसाइट / ऐप पर प्रदर्शित करके अपडेट किया जाता है, तो यह सामान्य रूप से जनता के लिए अधिक सुविधाजनक और उपयुक्त होगा।
भारतीय रेल का जवाब - माननीय न्यायाधीश द्वारा सीटों/बर्थ की खाली स्थिति से संबंधित जानकारी के संबंध में दिए गए दूसरे सुझाव कि उसे देश में संचालित एयरलाइन सेवाओं की वेबसाइटों और मोबाइल एप्लिकेशन पर जैसे दिखाया जाता है, उसके समान किया जाए इसपर भारतीय रेल की ओर से यह जवाब दिया गया कि ट्रेन में बर्थ जो आवंटन के लिए रिक्त हैं, उन्हें भारतीय रेल की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रदर्शित नहीं किया जाता है लेकिन उसकी तुलना एयरलाइंस के साथ करना सटीक आकलन नहीं होगा।
उत्तरदाता ने कहा है कि एयरलाइंस और भारतीय रेल के बीच कोई प्रभावी तुलना नहीं हो सकती है क्योंकि भारत में औसतन दिन में चलने वाली पैसेंजर ट्रेनों की संख्या 12,000 से अधिक है। रिस्पोंडेंट द्वारा यह प्रस्तुत किया गया है कि प्रत्येक दिन लाखों यात्री यात्रा करते हैं और इसलिए वर्तमान आईटी अवसंरचना में भौतिक रूप से यह प्रदर्शित करना संभव नहीं है कि ट्रेन में कौन सी सीटें खाली हैं।
भारतीय रेल से जुड़े आईटी विशेषज्ञों ने कहा है कि वर्तमान में कोच में खाली बर्थ और उनकी स्थिति से संबंधित जानकारी प्रदान करना संभव नहीं है। मौजूदा परिस्थितियों में, उत्तरदाता ने यह बताया कि आरक्षण के समय आवंटित की जाने वाली सीटों/बर्थों की स्थिति को प्रदर्शित करने के लिए वेबसाइट और मोबाइल एप्लिकेशन को अपडेट करना फिर से एक नीतिगत निर्णय है और इसमें बड़े बदलाव शामिल हैं और और इसमें भारी वित्तीय खर्च शामिल होगा जो खर्च करना आवश्यक नहीं।
सुझाव नंबर 3 - बोगियों के दरवाजों के आकार / संख्या में वृद्धि या विकल्प के रूप में, गाड़ियों के रुकने की अवधि को कम से कम पांच मिनट तक बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि ट्रेन से उतरते समय लोग आसानी से उतर सकें और उनका सफर आरामदायक रहे।
भारतीय रेल का जवाब - उत्तरदाता का कहना था कि दरवाजों के आकार को चौड़ा करना संभव नहीं होगा क्योंकि इससे कोच की यात्री वहन क्षमता में कमी आएगी और यात्रियों की सुरक्षा से भी समझौता होगा। आगे यह भी कहा गया है कि यात्री डिब्बों में किसी भी संशोधन में बहुत सारे सार्वजनिक व्यय, परीक्षण और प्रयोग शामिल होते हैं।
अडिशनल स्टेशन पर एक ट्रेन के ठहराव के संबंध में, रिस्पोंडेंट का कहना है कि प्रत्येक स्टेशन पर ट्रेन का स्टॉप ऑफ व्यापक रूप से घोषणाएं, सूचना पट्ट और डीडीप्ले बोर्ड आदि द्वारा प्रकाशित किया जाता है। उत्तरदाता के अनुसार, ट्रेन का ठहराव बढ़ाना ट्रेन के संचालन में देरी पैदा करेगा और अपने गंतव्य तक पहुंचने में समय लगेगा।
गर्भवती महिला, सीनियर सिटीजन एवं VVIP को लोअर बर्थ आवन्टन का मुद्दा
उत्तरदाता ने वरिष्ठ नागरिकों को लोअर बर्थ देने के मुद्दे पर जवाब देते हुए कहा है कि भारतीय रेल की प्राथमिकता सूची में, मंत्री, सुप्रीम कोर्ट/हाई कोर्ट के जजों आदि जैसे वीवीआईपी बहुत ही ऊपर आते हैं, जिन्हें पहले लोअर बर्थ आवंटित किया जाता है।
VVIP को समायोजित करने के बाद, प्राथमिकताओं में महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता दी जाती है। उत्तरदाता ने प्रत्येक व्यक्ति के लिए लोअर बर्थ का प्रबंधन करने में असमर्थता व्यक्त की।
हालांकि, उनका कहना था कि यह सुनिश्चित करने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास किए जा रहे हैं कि वरिष्ठ नागरिकों को लोअर बर्थ दी जाए। उत्तरदाता ने यह भी बताया है कि रेल के डिब्बों का डिज़ाइन इस तरह से बनाया जा रहा है कि भविष्य में यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए ऊपरी बर्थ पर चढ़ने के लिए सुविधाजनक होगा, हालांकि, यात्रा के दौरान कुछ असुविधा अपरिहार्य है।
अदालत का सुझाव
अदालत एमिकस क्यूरी की प्रस्तुतियों और उत्तरदाता द्वारा दिए गए उत्तर से संतुष्ट दिखी। अदालत ने कहा कि,
"उत्तरदाता को जो सुझाव दिए गए थे, उस पर उत्तरदाता द्वारा विचार किया गया है और ऊपर बताये गए कारणों के चलते, उनपर अमल करने को लेकर अपनी असमर्थता व्यक्त की।
यह न्यायालय प्रतिवादी को उन खर्चों के लिए बाध्य नहीं कर सकता है, जो उत्तरदाता/रेल के अनुसार आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है और साथ ही बड़ी संख्या में गाड़ियों के कारण, जिन पर उक्त उपायों को लागू करना होगा, इन प्रस्तावों को कठिन बना देता है, जिन्हें लागू करना लगभग असंभव है। जो सुझाव दिए गए हैं वे विशाल व्यय के नीतिगत निर्णयों से संबंधित पहलू हैं।
यह अदालत उन मामलों में न्यायिक आदेश पारित नहीं कर सकती है, जो भारतीय रेल से संबंधित नीति के पहलुओं में हस्तक्षेप करते हैं, जिसके लिए इस अदालत के पास कठिनाइयों का सराहना करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव है।"
हालाँकि, जैसा कि बर्थ आवंटन की प्राथमिकता का संबंध है, उत्तरदाता भारतीय रेल से अदालत ने यह अनुरोध किया कि वे गर्भवती महिलाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर, उसके बाद वरिष्ठ नागरिकों को और उसके बाद वीवीआईपी को प्राथमिकता देकर बर्थ आवंटन आवश्यकता सूची पर फिर से विचार करें।
अदालत ने इस बात पर अवश्य गौर किया कि जहाँ तक वीवीआईपी/ अधिकारियों को सीट/बर्थ के आरक्षण में प्राथमिकता दिए जाने का संबंध है, अधिकारियों को प्राथमिकता दिए जाने का औचित्य समझ में आता है क्योंकि उन्हें अपने आधिकारिक कर्तव्यों के लिए शोर्ट नोटिस पर यात्रा करने की आवश्यकता होती है।
आगे अदालत ने मुख्य रूप से कहा कि,
"गर्भवती महिलाएं अपनी चिकित्सीय स्थिति के कारण सबसे अधिक असुरक्षित होती हैं और इससे उन्हें मध्य या ऊपरी बर्थ पर यात्रा करने में काफी असुविधा होती है। इस प्रकार, तर्क और एक कल्याणकारी राज्य की माँगों को पूरा करते हुए उन्हें उन यात्रियों के साथ, जो टर्मिनल बीमारी या कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से पीड़ित यात्रियों या जो शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग हैं उनके साथ सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए, और इसलिए उन्हें निचली बर्थ के आवंटन के लिए प्राथमिकता नंबर 1 के रूप में रखने पर विचार किया जाना चाहिए।"
आगे अदालत ने कहा कि
"वरिष्ठ नागरिकों को, जो आयु और परिचारक चिकित्सा मुद्दों के जूझ रहे हैं उन्हें प्राथमिकता नंबर 2 पर रखने पर विचार करना चाहिए और अंत में, वीवीआईपी, जो आम तौर पर राज्य की सेवा करते हैं, उन्हें बेहतर स्वास्थ्य के साथ धन्य माना जाता है और इसलिए उन्हें प्राथमिकता नंबर 3 पर रखने पर विचार किया जाना चाहिए।"
केस विवरण
केस नंबर: Writ Petition no. 25097/2019
केस शीर्षक: In Reference v. Union of India
कोरम: न्यायमूर्ति संजय यादव एवं न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन