पारंपरिक परिवार युवा महिलाओं की गरिमा से जुड़े अपराधों की रिपोर्ट करने में झिझकते हैं: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

Shahadat

24 July 2023 8:12 AM GMT

  • पारंपरिक परिवार युवा महिलाओं की गरिमा से जुड़े अपराधों की रिपोर्ट करने में झिझकते हैं: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने युवा महिलाओं की गरिमा से संबंधित मामलों की पुलिस में रिपोर्ट करने में पारंपरिक परिवारों की झिझक को उजागर किया है, क्योंकि उन्हें डर है कि इससे उनका अपना सम्मान खतरे में पड़ सकता है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करने में थोड़ी सी देरी को अभियोजन मामले के लिए घातक नहीं माना जाना चाहिए।

    जस्टिस एम ए चौधरी ने कहा,

    "...जहां महिला की गरिमा शामिल होती है, वह भी कम उम्र की पारंपरिक परिवार अपने सम्मान और गरिमा को भी दांव पर लगाते हुए पुलिस को ऐसे मामलों की रिपोर्ट करने में झिझकते हैं, इसलिए इस अदालत की सुविचारित राय में एफआईआर दर्ज करने में एक दिन की देरी किसी भी हद तक अत्यधिक देरी नहीं कही जा सकती है, जो अभियोजन मामले के लिए घातक है।"

    आरपीसी की धारा 354,323 और 341 के तहत अपीलकर्ता को दोषी ठहराने के सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ निर्देशित अपील पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां की गईं (उन्हें धारा 376/511 आरपीसी के तहत कथित अपराधों से बरी कर दिया गया)।

    शिकायत के अनुसार, जब पोज़क्यूट्रिक्स स्कूल से लौट रही थी तो आरोपी ने उसके साथ मारपीट की और उसका अपमान किया। यह आरोप लगाया गया कि एक गवाह के समय पर हस्तक्षेप से युवा लड़की को कोई और नुकसान होने से रोका गया।

    अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उसे बिना किसी औपचारिक आरोप के आरपीसी की धारा 354 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया, जो अस्वीकार्य है। अपीलकर्ता ने आगे कहा कि एफआईआर दर्ज करने में देरी अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक है और आरोप पत्र में घटना की सटीक जगह की अनुपस्थिति का इलाज संभव नहीं है।

    जस्टिस एम. ए. चौधरी ने आरपीसी की धारा 354 के तहत औपचारिक आरोप की अनुपस्थिति से संबंधित विवाद को खारिज कर दिया। ऐसा करते समय अदालत ने जम्मू-कश्मीर सीआरपीसी की धारा 236 का हवाला दिया, जो अदालत को मुकदमे के दौरान पेश किए गए सबूतों के आधार पर किसी आरोपी को उस अपराध के लिए दोषी ठहराने की अनुमति देती है, जिसके लिए उस पर आरोप नहीं लगाया गया।

    पीठ ने स्पष्ट किया,

    "केवल आरोप तय करने में चूक या त्रुटि अदालत को उस अपराध के लिए आरोपी को दोषी ठहराने से अक्षम नहीं कर देती है, जो रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों के आधार पर साबित हो चुका है।"

    एफआईआर दर्ज करने में देरी पर विवाद के संबंध में खंडपीठ ने कहा कि पीड़िता के पिता अपनी सरकारी नौकरी के सिलसिले में डोडा में है और शाम को सूचित होने पर ही लौटे है और परिवार में परामर्श के बाद अगले दिन पुलिस को अपराध की सूचना दी। पीठ ने बताया कि यह भी रिकॉर्ड में आया कि मामला पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करने से पहले स्थानीय पंचायत के विचाराधीन है।

    अदालत ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संवेदनशील प्रकृति पर प्रकाश डाला, खासकर जब युवा पीड़ित शामिल हों और स्वीकार किया कि पारंपरिक परिवार अक्सर ऐसे मामलों की तुरंत रिपोर्ट करने में झिझकते हैं, क्योंकि इससे पीड़ित के सम्मान और गरिमा को खतरा हो सकता है। पीठ ने रेखांकित किया कि एफआईआर दर्ज करने में एक दिन की देरी को अनुचित नहीं माना जा सकता है। इस प्रकार, अभियोजन पक्ष के मामले को घातक नहीं बनाया जा सकता है।

    आरोपपत्र में घटना के सटीक स्थान के उल्लेख की कमी के बारे में विवाद के जवाब में अदालत ने कहा,

    “सभी गवाहों की क्रॉस एक्जामिनेशन से ऐसा प्रतीत होता है कि बचाव पक्ष द्वारा घटना के सटीक स्थान के संबंध में किसी भी गवाह से ऐसा कोई सवाल नहीं पूछा गया। इसलिए इस स्तर पर इस विवाद को उठाना, इस अदालत की सुविचारित राय में प्रासंगिक नहीं है।

    उपरोक्त टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए पीठ ने अपील को बिना किसी योग्यता के पाया और उसे खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: सुभाष चंदर बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

    साइटेशन: लाइव लॉ (जेकेएल) 192/2023

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