2006 तीस हजारी हिंसा: दिल्ली हाईकोर्ट ने आपराधिक अवमानना ​​मामले में 12 वकीलों को आरोपमूक्त किया, कहा न्याय में बाधा डालने के लिए कोई सबूत नहीं

Sharafat

28 July 2023 2:42 PM GMT

  • 2006 तीस हजारी हिंसा: दिल्ली हाईकोर्ट ने आपराधिक अवमानना ​​मामले में 12 वकीलों को आरोपमूक्त किया, कहा न्याय में बाधा डालने के लिए कोई सबूत नहीं

    दिल्ली हाईकोर्ट ने 2006 में तीस हजारी कोर्ट में हुई हिंसा के संबंध में स्वत: संज्ञान लेकर आपराधिक अवमानना ​​मामले में शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राजीव खोसला और दिल्ली बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष संजीव नासियार सहित 12 वकीलों को आरोपमुक्त कर दिया।

    जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल, जस्टिस रजनीश भटनागर और जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की पूर्ण पीठ ने पाया कि वकीलों द्वारा न्याय में बाधा डालने, हाथापाई करने या संपत्ति को नष्ट करने के आरोपोंत की पुष्टि करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है।

    अदालत ने कहा, इसलिए, यह निर्णायक रूप से स्थापित नहीं किया जा सकता है कि विरोध प्रदर्शन के कृत्य ने न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप किया है।

    यह देखते हुए कि अवमानना ​​​​कार्यवाही 2006 से लंबित है और वकीलों पर पिछले 17 वर्षों से तलवार लटकी हुई थी, पीठ ने कहा कि सभी कथित अवमाननाकर्ताओं ने गहरा पश्चाताप व्यक्त किया है और कहा है कि उनके मन में न्यायपालिका के प्रति अत्यंत सम्मान है।

    इसमें कहा गया है कि वकीलों का कभी भी ऐसा कुछ करने का इरादा नहीं था जिसे अदालत की महिमा और गरिमा को कम करने के रूप में समझा जा सके।

    वकील जनवरी 2006 में मामलों को रोहिणी कोर्ट में स्थानांतरित करने के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। उन्होंने कथित तौर पर अदालत परिसर में कुर्सियाँ फेंकी, कंप्यूटर मॉनिटर उखाड़ दिए और उपद्रव करने में शामिल हो गए।

    बाद में हाईकोर्ट की पूर्ण अदालत ने जिला न्यायाधीश की रिपोर्ट पर ध्यान दिया। तब जिला न्यायाधीश की शिकायत पर वकीलों के खिलाफ दंगा और गैरकानूनी रूप से जमा होने के अपराध के लिए एफआईआर दर्ज की।

    जबकि 25 वकीलों के खिलाफ अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू की गई थी, उनमें से 13 को पहले ही आरोपमुक्त कर दिया गया था।

    पीठ ने स्वत: संज्ञान कार्यवाही बंद करते हुए कहा,

    "हम वर्तमान आपराधिक अवमानना ​​कार्यवाही में शेष कथित अवमाननाकर्ताओं/प्रतिवादियों को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस कोखारिक करते हैं। परिणामस्वरूप, कथित अवमाननाकर्ताओं/प्रतिवादियों के खिलाफ आपराधिक अवमानना ​​क्यों न की जाए, इसका कारण बताने वाला नोटिस खारिज किया जाता है।"

    कोर्ट ने कहा,

    “वीडियो फ़ुटेज का सावधानीपूर्वक अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि वकीलों/कथित अवमाननाकर्ताओं के विरोध से अदालत कक्षों को हुए नुकसान को जोड़ने का कोई सबूत नहीं है। इसके अलावा, इन कार्रवाइयों के लिए सीधे तौर पर कथित अवमाननाकर्ताओं को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। नतीजतन विषय वीडियो सहित सामग्री वकीलों के विरोध के साथ कोर्ट रूम को कथित तौर पर हुई क्षति को जोड़ने वाला कोई प्रत्यक्ष सबूत देने में विफल रही।"

    मामले का निपटारा करते हुए अदालत ने सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा, जो इस मामले में एमिक्स क्यूरी थे, उनके प्रति गहरा आभार व्यक्त किया।

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