मानदेय के आधार पर कॉन्ट्रैक्ट पर सेवा को लाभ का पद नहीं कहा जा सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

12 Feb 2020 3:00 AM GMT

  • मानदेय के आधार पर कॉन्ट्रैक्ट पर सेवा को लाभ का पद नहीं कहा जा सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि मानदेय के आधार पर कॉन्ट्रैक्ट पर आधारित नौकरी को लाभ का पद नहीं कहा जा सकता और निर्वाचित प्रधान जिसे एक कॉन्ट्रैक्ट की नौकरी में मानदेय मिलता है उसे एकमात्र इस आधार प्रधान होने से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।

    किसी निर्वाचित प्रधान का लाभ के पद पर काम करने से वह पंजायती राज अधिनियम 1947 की धारा 5-A(c) के तहत इस पद पर रहने के अयोग्य हो जाता है।

    न्यायमूर्ति अताउर रहमान मसूदी ने कहा कि लाभ के पद की दो मुख्य बातें हैं –

    पहला, कोई "वास्तविक आर्थिक लाभ" हो जो मालिक-नौकर संबंध के आधार पर सरकार और संबंधित व्यक्ति के बीच हो।

    दूसरा, वह व्यक्ति जिसे एक्सिक्यूटिव अथॉरिटी मिली है, जिसके बदले उसे आर्थिक लाभ मिल रहा है, उस पद के कारण है जिस पर वह बैठा है।

    इस आधार पर अदालत ने हालांकि कहा कि एक ग्राम प्रधान के रूप में किसी उम्मीदवार के प्रदर्शन की क़ानून के तहत हमेशा ही जांच हो सकती है, इसलिए, अदालत ने सभी ज़िला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया है कि सीसीटीवी कैमरा और ज़िला मुख्यालय से जुड़ी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध हो ताकि ग्राम पंचायतों की बैठकों में पंचायत सदस्यों की भागीदारी की निगरानी राज्य कर सके।

    न्यायमूर्ति मसूदी ने इस प्रश्न पर भी कहा कि क्या राज्य चुनाव आयोग को यह अधिकार है कि वह लाभ के पद की पहचान करे और उसे श्रेणीबद्ध करे। इसका उत्तर में नहीं में मिलने के बाद उन्होंने कहा कि अयोग्य ठहराने का अधिकार सिर्फ़ राज्य की विधान सभाओं को या फिर संसद को है।

    अदालत ने कहा कि यद्यपि राज्य चुनाव आयोग को मतदाता सूची के निर्माण का देख-रेख करने और उसके नियंत्रण के साथ-साथ चुनाव कराने का अधिकार है पर उसके पास इस बात का अधिकार नहीं है कि वह यह निर्णय कर सके कि कोई पद लाभ का है कि नहीं।

    भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 (K) के आधार पर राज्य चुनाव आयोग को मतदाता सूची को तैयार करने और चुनाव संचालन के साथ ही उसकी देख-रेख, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार है। राज्य निर्वाचन आयोग में निहित इस शक्ति को यह नहीं माना जा सकता कि किस पद पर होने से किसी को अयोग्य ठहराया जा सकता है और यह अधिकार आवश्यक रूप से राज्य की विधानसभा को है।

    अदालत ने कहा,

    लिली थोमस बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में भी यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सिर्फ़ राज्य की विधानसभा और संसद ही अयोग्यता के मामले पर विचार कर सकते हैं। यह कहना कि राज्य चुनाव आयोग को लाभ के पद के बारे में निर्णय करने का अधिकार है और वह भी बिना किसी संवैधानिक अधिकार के मेरी राय में यह क्षेत्राधिकार के बाहर का मामला है।"

    यह बात अदालत ने ग्राम प्रधान की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। प्रधान को ऑग्ज़िलीएरी नर्सिंग मिडवाइफ़री से जुड़े होने के कारण अयोग्य ठहरा दिया गया था जिन्हें इसके बदले मासिक मानदेय मिल रहा था।

    अदालत ने कहा कि राज्य सरकार ने एएनएम के पद को 'लाभ के पद' के रूप में अधिसूचित नहीं किया है और यह कहते हुए उसने इस आदेश को निरस्त कर दिया।

    अदालत ने इस बात को भी अनुमोदित नहीं किया कि ज़िला मजिस्ट्रेट ने राज्य चुनाव आयोग के नोटिस पर विश्वास किया जिसके आधार पर मानदेय लेने वालों को पंचायत की सदस्यता से अयोग्य ठहरा दिया गया। अदालत ने कहा कि रेकर्ड को देखने से स्पष्ट लगता है कि ज़िला मजिस्ट्रेट ने ग़लती की है।


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