'जाति के नाम पर धमकी': मद्रास हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय SC/ST आयोग और TNHRC को कर्णन की शिकायत का संज्ञान लेने से रोका
LiveLaw News Network
23 March 2021 12:51 PM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग और तमिलनाडु राज्य मानवाधिकार आयोग के खिलाफ एक अंतरिम निषेधाज्ञा पारित की, जिसके तहत उन्हें हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सीएस कर्णन की ओर से अपमानजनक वीडियो मामले की जांच कर रहे अधिकारियों के खिलाफ की गई शिकायतों का संज्ञान लेने से रोक दिया गया।
जस्टिस एम सत्यनारायणन और जस्टिस एए नक्कीरन सहित एक डिवीजन बेंच ने एक प्रथम दृष्टया विचार बनाने के बाद अंतरिम आदेश पारित किया कि शिकायत "धमकी", "जाति के नाम पर धमकी" और जांच अधिकारियों को कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकने" का प्रयास है।
न्यायालय के अगले आदेश तक निषेधाज्ञा लागू रहेगी। कोर्ट ने राष्ट्रीय एससी / एसटी आयोग और टीएनएसएचआरसी को भी नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई 22 अप्रैल को होगी।
यह आदेश बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु एंड पुदुचेरी की ओर से दायर एक आवेदन में पारित किया गया है। मामले की सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता एस.प्रभाकरन पेश हुए थे, जिनका सीके चंद्रशेखरन ने सहयोग किया था।
कर्णन को चेन्नई पुलिस ने पिछले साल 2 दिसंबर को एक अपमानजनक वीडियो के मामले में दर्ज एफआईआर के मामले में गिरफ्तार किया था। वीडियों में वह न्यायाधीशों के महिला रिस्तेदारों के खिलाफ यौन हिंसा की धमकी देते हुए दिखाई दे रहे थे।
गिरफ्तारी के दिन से ही वह हिरासत में है। इससे पहले, हाईकोर्ट ने उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। उन्होंने दलील दी थी कि वीडियो मनोवैज्ञानिक तनाव और अवसाद में बना था, हालांकि कोर्ट ने यह दलील खारिज कर दी थी।
बाद में, उन्होंने एससी/ एसटी आयोग और टीएनएसएचआरसी के समक्ष शिकायत दर्ज कराई, और आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारियों ने उनकी जाति के नाम के आधार पर उनके साथ दुर्व्यवहार किया।
हाईकोर्ट ने उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कर्णन को अपने सार्वजनिक बयानों से न्यायपालिका को अपमानित करने के मामले में दंडित कर चुका है। उस समय भी कर्णन ने एससी/ एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ शिकायत की थी।
हाईकोर्ट ने कहा कि कर्णन "एक बार फिर से उसी गतिविधि में लिप्त हो गए हैं" जिसे सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है।
बेंच ने फैसले में कहा, "... 9 वें प्रतिवादी (कर्णन) जाति के नाम का उपयोग करके डराने और धमकाने के लिप्त दिख रहे हैं और जांच अधिकारियों को अपने खिलाफ दर्ज मामलों की जांच करने से रोकने का प्रयास कर रहे हैं.."।
कोर्ट ने मौजूदा मामले को निषेधाज्ञा देने के लिए प्रथम दृष्टया मामला माना। उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने पिछले साल नवंबर में कर्णन द्वारा पोस्ट किए गए आपत्तिजनक वीडियो को रोकने का आदेश दिया था।
कर्णन का अपमानजनक वीडियो पिछले साल अक्टूबर में सामने आया था, जिसके बाद मद्रास हाईकोर्ट की महिला वकीलों के एक समूह ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास शिकायत दर्ज कराई थी और कर्णन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।
मई 2017 में, सीएस कर्णन को अदालत की आपराधिक अवमानना का दोषी पाया गया। वह हाईकोर्ट के पहले जज थे, जिन्हें आपराधिक अवमानना का दोषी पाया गया। सजा के बाद कर्णन छिप गए। उन्हें एक महीने बाद गिरफ्तार किया गया और उन्हें कोलकाता की प्रेसिडेंसी जेल भेज दिया गया। उन्हें दिसंबर 2017 तक कारावास की सजा हुई थी।
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