[करेंसी नोटों का कूटकरण] 'यह अपराध देश की अर्थव्यवस्था को बाधित कर सकता है', इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका ख़ारिज की
LiveLaw News Network
6 Oct 2020 9:30 AM IST
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार (01 अक्टूबर) को एक समीर खान द्वारा दायर अग्रिम जमानत अर्जी को खारिज कर दिया।
यह याचिका, 2020 के केस क्राइम नंबर 638 के संबंध में, 489-ए (करेंसी नोटों या बैंक नोटों का कूटकरण), 489 -बी (कूटरचित या कूटकृत करेंसी नोटों या बैंक नोटों को असली के रूप में उपयोग में लाना), 489-सी (कूटरचित या कूटकृत करेंसी नोटों या बैंक नोटों को कब्जे में रखना), 489-डी (करेंसी नोटों या बैंक नोटों की कूटरचना या कूटकरण के लिए उपकरण या सामग्री बनाना या कब्जे में रखना) IPC के तहत अपराधों के सम्बन्ध में दायर की गयी थी।
राज्य के लिए उपस्थित ए.जी.ए. ने अग्रिम जमानत के लिए इस आवेदन का विरोध किया।
यह देखते हुए कि आवेदक (समीर खान) को अग्रिम जमानत देने का कोई मामला नहीं बनता है, न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा की एकल पीठ ने कहा,
"एफआईआर यह दर्शाती है कि वर्तमान आवेदक द्वारा किया गया अपराध एक आर्थिक अपराध है, जो देश की अर्थव्यवस्था को बाधित कर सकता है। इसलिए, वर्तमान आवेदक द्वारा अन्य सह-आरोपियों के साथ किया गया अपराध समाज के खिलाफ अपराध है।"
पूर्वोक्त के मद्देनजर, न्यायालय ने आवेदक की अग्रिम जमानत के लिए आवेदन को अस्वीकार कर दिया।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि वर्ष 2019 में, आईपीसी की धरा 489 बी के संदर्भ में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि छिपे हुई तरीके से बड़ी मात्रा में नकली मुद्रा पर कब्जा करना तस्करी है।
इसके अलावा, वर्ष 2018 में, बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति भारती एच डंगरे की पीठ ने कहा था कि किसी भी जाली नोटों या बैंक नोटों का उपयोग, धारा 489 (बी) के प्रावधानों को आकर्षित नहीं कर सकता है, जब तक 'मेंस रिया' मौजूद नहीं है।
दरअसल, इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महिला के खिलाफ आपराधिक अभियोजन को खारिज कर दिया था, जिसके पास से कुछ नकली नोट पाए गए थे, जो वह विमुद्रीकरण (Demonetization) के बाद बैंक में जमा करने के लिए लायी थी।