'यह मामला आंख खोलने वाला है', उड़ीसा हाईकोर्ट ने 2 साल 10 महीने अवैध रूप से जेल में बंद व्यक्ति की रिहाई का आदेश दिया
SPARSH UPADHYAY
6 Aug 2020 6:16 PM IST
उड़ीसा हाईकोर्ट, शुक्रवार (31 जुलाई) को कालाहांडी जिले के धरमगढ़ उप-जेल में बंद एक व्यक्ति (सिबाराम दास) के बचाव में आया जो एक सेशंस मुकदमे के समापन पर उनको मिली 7 साल की सजा काट चुकने के बावजूद जेल में कैद थे।
मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायमूर्ति के. आर. महापात्रा की पीठ, बंदी प्रत्यक्षीकरण की प्रकृति में दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके अंतर्गत अधीक्षक, उप-जेल, धर्मगढ़, कालाहांडी - जहां सिबाराम दास कैद थे, उनको यह निर्देश देने की मांग की गयी थी कि सिबाराम को तत्काल रिहा किया जाये।
उक्त याचिका, सिबराम दास की पत्नी चन्द्रा दास द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने सात साल [सहायक सत्र न्यायाधीश, धर्मगढ़ द्वारा दिनांक 15.02.2007 को (सत्र केस संख्या 106/29 ऑफ़ 2002) में पारित आदेश और निर्णय] की सजा के अतिरिक्त दो साल और दस महीने की अवधि के लिए अपने पति की अवैध हिरासत के लिए पर्याप्त मुआवजा देने की भी प्रार्थना की थी।
केस की पृष्ठभूमि
07.07.2003 को सेशंस केस नंबर 106/29 ऑफ़ 2002 (धारा 395 आईपीसी के अलावा अन्य अपराधों के अंतर्गत) के सिलसिले में सिबराम को हिरासत में लिया गया था। मुकदमे के समापन में सिबराम और चार अन्य को दोषी ठहराया गया (दिनांक 15.02.2007 को)।
सिबाराम ने सत्र केस नंबर 106/29 वर्ष 2002 के संबंध में अपने दोषसिद्ध होने और सजा के खिलाफ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, धरमगढ़ के समक्ष अपील दायर की। उक्त अपील 22.11.2012 को खारिज कर दी गई।
उक्त अपील की पेंडेंसी के दौरान, एक अन्य मामले (जिसमें बाद में उन्हें बरी कर दिया गया था) के मुकदमे के सिलसिले में सिबाराम को 31.08.2012 को हिरासत में ले लिया गया था, जिसके लिए वह नाबरंगपुर जेल में 22.05.2012 तक रहे।
हालाँकि, सिबराम दास को 25.02.2020 को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया था और उन्हें सहायक सत्र न्यायाधीश, धरमगढ़ अदालत द्वारा गिरफ्तारी के लिए जारी ग़ैर-जमानती वारंट के चलते पेश किया गया और तब से वह फिर से हिरासत में है।
न्यायालय के समक्ष कार्यवाही
जब इस मामले को पहले दौर में उठाया गया था, तो अदालत ने आश्चर्य व्यक्त किया कि सिबाराम को क्यों गिरफ्तार किया गया है और क्यों उन्हें 06.07.2010 से परे हिरासत में रखना जारी किया गया, जबकि वह पहले ही सात साल की अपनी सजा काट चुके थे (06.07.2010 तक) और आखिर क्यों उन्हें 25.02.2020 को फिर से गिरफ्तार किया गया था और तब से वह हिरासत में है।
राज्य के लिए पेश होने वाले अपर शासकीय अधिवक्ता जे. कटिकिया ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता के पति ने वास्तव में 06.07.2010 (सत्र केस संख्या 106/29 ऑफ़ 2002 के सम्बन्ध में) तक सात साल की उम्र में सात साल की सजा काट ली थी।
इसके पश्च्यात, नबरंगपुर में एक अन्य मामले की सुनवाई के सिलसिले में वह हिरासत में जारी रहे, जिसमें उन्हें 31.08.2012 को जेल हिरासत में लिया गया था और अंततः 22.12.2012 को बरी कर दिया गया था।
हालाँकि, वह यह समझाने में असमर्थ थे कि क्यों और किस कानून के तहत उनकी हिरासत दो साल से अधिक 31.08.2012 तक जारी रही (जिस दिन उन्हें नबरंगपुर में मामले की सुनवाई के सिलसिले में हिरासत में लिया गया था) जबकि सिबाराम ने 06.07.2010 (सत्र केस संख्या 106/29 ऑफ़ 2002 के सम्बन्ध में) में सात साल की सजा पूरी कर ली थी, और क्यों उन्हें 25.02.2020 को फिर से गिरफ्तार किया गया था।
न्यायालय का आदेश
कोर्ट ने देखा,
"यह मामला आंख खोलने वाला है यह देखने के लिए कि यह प्रणाली उन व्यक्तियों के वर्ग के लिए कैसे काम करती है, जिन्हें न्याय तक पहुंचने के लिए पर्याप्त कानूनी सहायता नहीं मिलती है।"
इसके अलावा, अदालत ने पुलिस अधीक्षक, उप-जेल, धर्मगढ़, कालाहांडी को 2002 के SC नंबर 106/29 के संबंध में जेल की हिरासत से तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया गया।
अंत में, अदालत ने राज्य को जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया कि क्यों दो साल और दस महीने की अवैध हिरासत की अवधि के लिए याचिकाकर्ता के पति सिबाराम दास को अनुकरणीय मुआवजा नहीं दिया जाएगा।
मामला 17.08.2020 के लिए पोस्ट किया गया है।