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"ऐसे रिश्ते पूरी तरह से अवैध, असामाजिक हैं": राजस्थान हाईकोर्ट ने एक विवाहित व्यक्ति के साथ रहने वाली विधवा महिला को सुरक्षा देने से इनकार किया

LiveLaw News Network
9 Sep 2021 8:26 AM GMT
राजस्थान हाईकोर्ट
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राजस्थान हाईकोर्ट 

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक विवाहित व्यक्ति के साथ रहने वाली विधवा महिला को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं के बीच इस तरह के संबंध कानूनी लिव-इन संबंध के दायरे में नहीं आते हैं, बल्कि ऐसे रिश्ते विशुद्ध रूप से अवैध और असामाजिक हैं।

न्यायमूर्ति सतीश कुमार शर्मा की खंडपीठ विधवा महिला और उसके साथी (एक विवाहित पुरुष) की सुरक्षा याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

पीठ ने कहा,

"उन्हें पुलिस सुरक्षा देना उनके अवैध संबंधों को मान्यता देना और ऐसे अवैध संबंधों के लिए परोक्ष रूप से सहमति देना होगा, जो वैध नहीं है। इसलिए पुलिस सुरक्षा के अनुरोध को खारिज किया जाता है।"

संक्षेप में मामला

वर्तमान मामले में, विधवा (याचिकाकर्ता संख्या 1) ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उसके पति की मृत्यु के बाद, उसे 3 बच्चों के साथ अकेला छोड़ दिया गया और इसलिए, उसने उस व्यक्ति (याचिकाकर्ता संख्या 2) से शादी करने का फैसला किया, जो उसकी पत्नी से अलग रह रहा था।

यह भी दावा किया कि उसने जून 2021 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार उससे शादी की और अब वे पति और पत्नी के रूप में रह रहे हैं। हालांकि, निजी प्रतिवादी उनके रिश्ते से खुश नहीं हैं और उन्हें परेशान कर रहे हैं, इस प्रकार उसने (अपने पुरुष साथी के साथ रहने) कोर्ट से पुलिस सुरक्षा मांग की।

कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि विधवा और उसके पुरुष साथी के बीच कथित विवाह शून्य है, क्योंकि पुरुष की अपनी पत्नी के साथ तलाक नहीं हुआ है।

कोर्ट ने कहा,

"याचिकाकर्ता नंबर 2 (पुरुष) पहले से ही शादीशुदा है। उसने अपनी पत्नी से तलाक नहीं लिया है, यानी उसकी पहली शादी हो चुकी है। याचिकाकर्ता नंबर 1 एक विधवा है। इसलिए उसके द्वारा पहले से ही शादी शुदा व्यक्ति से शादी करने का आरोप लगाया गया है।"

बेंच ने महत्वपूर्ण रूप से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 'सामाजिक ताने-बाने' के फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें उच्च न्यायालय ने कहा था कि लिव-इन-रिलेशनशिप इस देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर नहीं हो सकती है और तलाक प्राप्त किए बिना एक पति या पत्नी किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध के लिए सुरक्षा का हकदार नहीं है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले महीने, अपने साथी के साथ रहने वाली एक विवाहित महिला की सुरक्षा याचिका को 5,000 रुपये के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया था।

गौरतलब है कि पिछले हफ्ते, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इलाहाबाद एचसी के साथ अपनी असहमति व्यक्त की और कहा कि यदि वयस्क होने के बावजूद दो लोग एक-दूसरे के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में हैं तो कोई अपराध नहीं होगा, भले ही वे पहले से किसी और से शादी की हो।

अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यदि उनके खिलाफ कोई अपराध किया जाता है तो उन्हें कानून के अनुसार संबंधित पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज करने की स्वतंत्रता है।

केस का शीर्षक - सीमा देवी एंड अन्य बनाम राजस्थान राज्य एंड अन्य

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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