कोई महिला अपने अपमान के ख़िलाफ़ किस तरह की प्रतिक्रिया देगी, इस बारे में कोई एक निर्धारित फ़ॉर्मूला नहीं हो सकता : बॉम्बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

26 July 2020 4:15 AM GMT

  • कोई महिला अपने अपमान के ख़िलाफ़ किस तरह की प्रतिक्रिया देगी, इस बारे में कोई एक निर्धारित फ़ॉर्मूला नहीं हो सकता : बॉम्बे हाईकोर्ट

    "कोई महिला किसी पुरुष द्वारा अपमानित किए जाने पर किस तरह प्रतिक्रिया देगी इस बारे में कोई एक निर्धारित फ़ॉर्मूला नहीं हो सकता," बॉम्बे हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी 24 साल के एक व्यक्ति को ज़मानत पर छोड़ते हुए यह बात कही।

    जस्टिस भारती डांगरे ने कहा,

    "किसी पुरुष की ओर से बेइज़्ज़त किए जाने की स्थिति में कोई महिला किस तरह की प्रतिक्रिया करेगी इस बारे में कोई एक निश्चित फ़ॉर्मूला नहीं हो सकता क्योंकि सभी महिलाओं का जन्म जीवन में अलग अलग परिस्थितियों में हुआ है, वे जीवन में अलग-अलग बातों से गुजरती हैं और अलग-अलग बातों का सामना करती हैं और उनका अनुभव अलग होता है और वे अलग तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं और आवश्यक रूप से वे दूसरे से अलग होती हैं।

    पीड़िता की सहमति की परिकल्पना या यह कि किस उम्र में सहमति रद्द की गई और शारीरिक भोग-विलास को प्रतिबंधित करने की कोशिश की गई,यह सब मामले की सुनवाई (के समय स्पष्ट किए जाने) का मामला है।"

    कोर्ट ने कहा कि यह सब सुनवाई के दौरान निर्धारित किया जा सकता है और इसके लिए मनोवैज्ञानिक स्थिति की पृष्ठभूमि में पीडिता के बयान का मूल्यांकन किया जा सकता है।

    आवेदक पर उसकी एक परिचित 25 वर्षीय लड़की ने आरोप लगाया है कि लोनावला के एक घर में 27-28 अक्टूबर 2019 को रात की पार्टी के बाद उसके साथ यौन संबंध बनाने की कोशिश की। पीड़िता का बयान था कि वह दूसरी मंज़िल पर मौजूद बेडरूम में जाकर सो गई पर देर रात उसने आवेदक को अपने ऊपर पाया जिसे उसने वहां से हटाया। इस मामले में 11 नवंबर 2019 को उसने स्थानीय थाने में एफआईआर दर्ज करवाई। आरोपी को दिसंबर में हिरासत में लिया गया और तब से वह जेल में है।

    आवेदक के वक़ील ने जो आपत्तियां दर्ज कराई उसके अनुसार, एफआईआर दर्ज करने में देरी हुई; शिकायतकर्ता के बयान में निरंतरता नहीं है। सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान में उसमें उसने कहा कि उसने अपने दोस्तों को इस घटना के बारे में नहीं बताया और दूसरे दिन बंगए से निकल गई, लेकिन बाद के बयान में उसने कहा कि वह अगले दिन बंगले में रही और 29 अक्टूबर को वहां से जाने के समय उसने अपने दोस्तों से इस घटना का ज़िक्र किया।

    कोर्ट में जो फ़ोटो पेश किए गए हैं उसमें वह आवेदक के साथ दोस्ताना अन्दाज़ में दिखती हैं जबकि यह फ़ोटो इस घटना के बाद का है।

    इन सब सबूतों और दलीलों पर ग़ौर करने के बाद कोर्ट ने कहा कि यह मानने का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है कि आवेदक ने वह अपराध किया है जिसका आरोप उस पर लगाया गया है।

    अदालत ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि जब आवेदक को भगाने के लिए शिकायतकर्ता ने आवाज़ लगाई तो उसी बंगले में होने के बावजूद उसके कोई भी मित्र उसकी मदद के लिए नहीं आए।

    कोर्ट ने कहा,

    "उसने किसी को भी इस घटना के बारे में उसी दिन नहीं बताया जबकि वह दोस्तों के साथ थी और उनके साथ बाहर भी घूमने गई थी। उसका फ़ोटो यह बताता है कि आरोपी और अन्य दोस्तों के साथ वह खुश है। अगर उसके साथ यह ख़ौफ़नाक वाक़या हुआ तो इसके बारे में अपने दोस्तों को नहीं बताने की बात समझ में नहीं आ रही है।"

    अदालत ने स्पष्ट किया कि उसकी राय को प्रथम दृष्टया अभियोजन मामले पर उसकी राय नहीं मानी जाए और निचली अदालत अपने आदेश में इससे प्रभावित न हो।

    अभियोजन पक्ष ने आवेदक और उसके कुछ दोस्तों के बीच व्हाट्सऐप चैट के आधार पर उसको ज़मानत देने का विरोध किया। इस चैट में आवेदक ने खुद ही अपनी गलती मानी है जो कि एक्स्ट्रा जूडिशल स्वीकारोक्ति है।

    अदालत ने कहा कि इन साक्ष्यों पर सुनवाई के दौरान ग़ौर किया जाएगा क्योंकि इस बारे में इस समय विस्तृत ब्योरा नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि आवेदक का पूर्व में कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं रहा है और इस बात की कम आशंका है कि वह क़ानून की गिरफ़्त से भाग जाएगा। इस बात पर ग़ौर करते हुए कि इस मामले में निकट भविष्य में सुनवाई शुरू होने की संभावना काफ़ी कम है, क्योंकि अदालत में बहुत भारी संख्या में मामले लंबित हैं और अदालत को COVID 19 महामारी के अंत में इन सब से निपटना होगा, अदालत ने आवेदक को ज़मानत दे दी, लेकिन उसे कहा गया कि वह उस क्षेत्र में प्रवेश नहीं करेगा जिस क्षेत्र में पीड़ित लड़की रहती है।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक



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