'शादी पूरी तरह से खत्म हो चुकी है': कर्नाटक हाईकोर्ट ने 21 साल से अलग रह रहे कपल को तलाक की मंजूरी दी

LiveLaw News Network

18 Jan 2022 8:47 AM GMT

  • शादी पूरी तरह से खत्म हो चुकी है: कर्नाटक हाईकोर्ट ने 21 साल से अलग रह रहे कपल को तलाक की मंजूरी दी

    Karnataka High Court

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में 21 साल से अलग-अलग रह रहे एक कपल को तलाक की अनुमति देते हुए कहा कि, ''विवाह पूरी तरह से खत्म हो चुकी है (द मैरिज इज टोटली डेड)'' और पार्टियों को हमेशा के लिए एक ऐसी शादी में बांधे रखने की कोशिश करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा,जिसका वास्तव में अस्तित्व में समाप्त हो चुका है।

    जस्टिस बी वीरपा और जस्टिस के एस हेमलेखा की खंडपीठ ने कहा,

    ''एक बार जब पार्टियां अलग हो जाती हैं और यह अलगाव 21 साल से अधिक समय तक तक जारी रहता है और उनमें से एक ने तलाक के लिए याचिका पेश की है, तो यह अच्छी तरह से माना जा सकता है कि शादी टूट चुकी है।''

    पीठ ने यह भी कहा कि,''निःसंदेह न्यायालय को पार्टियों में सुलह कराने के लिए गंभीरता से प्रयास करना चाहिए, फिर भी, अगर यह पाया जाता है कि विवाह का टूटना अपूरणीय है, तो तलाक को रोका नहीं जाना चाहिए। अन्यथा लंबे समय से प्रभावी न रहे एक अव्यवहारिक विवाह को बचाने के परिणाम पार्टियों के लिए अधिक दुख का स्रोत ही बनेंगे।''

    केस की पृष्ठभूमि

    लगभग 56 वर्षीय इस जोड़े ने साल 1999 में शादी की थी। पति ने दावा किया कि उसी साल पत्नी ने खुद को उससे अलग कर लिया और अपने माता-पिता के घर चली गई। उसके और परिवार के अन्य सदस्यों के कई अनुरोध के बाद भी वह घर नहीं लौटी। इसलिए वर्ष 2003 में उसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (1बी) के तहत परित्याग के आधार पर तलाक की मांग करते हुए एक याचिका दायर की।

    फैमिली कोर्ट ने वर्ष 2004 में तलाक देने का एक पक्षीय आदेश पारित किया और जिसके बाद पति ने दूसरी बार शादी कर ली और अब उसके दो बच्चे हैं। पत्नी ने इसे हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी जिसने तलाक की याचिका को फैमिली कोर्ट के समक्ष बहाल करने की अनुमति दे दी। वर्ष 2012 में उस याचिका को खारिज कर दिया गया,जो पति की तरफ से तलाक की मांग करते हुए दायर की गई थी। इस आदेश को पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

    पति की दलीलेंः

    पति के वकील ने दावा किया कि निचली अदालत द्वारा पारित निर्णय और डिक्री गलत है और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के विपरीत है। अपीलकर्ता ने एकपक्षीय आदेश के बाद दूसरी बार शादी कर ली है और इस शादी में सुलह की कोई संभावना नहीं है। यह शादी पूरी तरह से टूट चुकी है और वे 21 साल की अवधि के लिए अलग-अलग रह रहे हैं।

    पत्नी ने याचिका का विरोध किया

    पत्नी की तरफ से तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता ने उस पर दबाव ड़ाला था ताकि वह अपने माता-पिता से और दहेज ला सके ,परंतु वह और दहेज लाने के लिए तैयार नहीं थी क्योंकि उसकी शादी के समय सोने के गहने और नकदी पहले ही अपीलकर्ता को दी जा चुकी थी और शादी के सभी खर्च भी उसके माता-पिता ने ही वहन किए गए थे।

    अपीलकर्ता दूसरी शादी करने के इरादे से उसे तलाक के लिए सहमति देने के लिए मजबूर कर रहा था और सहमति देने के लिए दबाव बनाने के लिए कई लोगों को उसके घर भी भेजा था। चूंकि उसने और उसके माता-पिता ने तलाक के लिए सहमति देने से इनकार कर दिया था, इसलिए अपीलकर्ता ने उसके प्रति दुर्भावना विकसित की और उसे परेशान करना शुरू कर दिया। अपीलकर्ता ने कभी भी उसे भोजन और जीवन की बुनियादी जरूरत की चीजें उपलब्ध नहीं कराईं और उसे भूखा रखा गया।

    न्यायालय का निष्कर्षः

    अदालत ने कहा, ''इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि दोनों पक्षकार 56 वर्ष की आयु के हैं और 21 से अधिक वर्षों से अलग-अलग रह रहे हैं, फिर भी इस न्यायालय ने समझौता करवाने के लिए दोनों पक्षकारों को मनाने की कोशिश की, परंतु इसका कोई फायदा नहीं हुआ।''

    पीठ ने यह भी कहा कि,''अपीलकर्ता/ पति ने पहले ही दूसरी बार शादी कर ली है, क्योंकि फैमिली कोर्ट द्वारा तलाक के लिए एक पक्षीय डिक्री पारित की गई थी और उक्त विवाह से दो बच्चे हैं। प्रतिवादी/पत्नी ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए कोई याचिका दायर नहीं की। अब सुलह की कोई संभावना नहीं है। इसलिए, हमारा विचार है कि पार्टियों के बीच समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है और पार्टियों के एक साथ रहने की कोई संभावना नहीं है और यह शादी पूरी तरह से टूट चुकी है। इसलिए, यह तलाक की डिक्री देने के लिए उपयुक्त मामला है।''

    यह देखते हुए कि पत्नी ने पति को दूसरी शादी करने से रोकने के लिए एक दीवानी कार्यवाही दायर की है, अदालत ने कहा कि प्रतिवादी/पत्नी न तो तलाक चाहती है और न ही स्थायी गुजारा भत्ता।

    वहीं मामले में पेश की गई समस्त सामग्री के विश्लेषण एवं मूल्यांकन से यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी/पत्नी ने न केवल अपने लिए बल्कि अपीलकर्ता के लिए भी पीड़ा में जीने और जीवन को दयनीय और नरक बनाने का संकल्प ले लिया है। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए इस तरह का अड़ियल और कठोर रवैया हमारे दिमाग में इस बात के लिए कोई संदेह नहीं छोड़ रहा है कि प्रतिवादी अपीलकर्ता के साथ मानसिक क्रूरता देने वाला व्यवहार करने पर आमादा है।

    पीठ ने कहा,''यह स्पष्ट है कि पार्टियों के बीच विवाह पूरी तरह रूप से टूट गया है और उनके पुनर्मिलन का कोई चांस नहीं है। निस्संदेह, यह न्यायालय और सभी संबंधितों का दायित्व होता है कि विवाह की स्थिति, जब तक संभव हो और जहां तक संभव हो,बनाए रखी जानी चाहिए। लेकिन जब विवाह पूरी तरह से मर जाता है, तो उस स्थिति में, पार्टियों को हमेशा के लिए एक ऐसे विवाह से बांधे रखने की कोशिश करने से कुछ भी हासिल नहीं होता है, जिसका वास्तव में अस्तित्व में समाप्त हो चुका है।"

    फैमिली कोर्ट के आदेश में दखल देते हुए बेंच ने कहा, ''फैमिली कोर्ट ने जो रास्ता अपनाया है, वह लगातार कलह, चिरस्थायी कड़वाहट को बढ़ावा देगा और यह अनैतिकता की ओर ले जा सकता है। इसलिए, हमारा विचार है कि तलाक की डिक्री प्रदान करने के लिए यह एक उपयुक्त मामला है।''

    इस प्रकार, हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और कपल को तलाक दे दिया। हाईकोर्ट ने पति को यह भी निर्देश दिया है कि वह चार महीने की अवधि के भीतर प्रतिवादी/पत्नी को स्थायी गुजारे भत्ते के तौर पर 30 लाख की राशि का भुगतान करे।

    केस का शीर्षक- के मल्लिकार्जुन बनाम एच ए सुधा मल्लिकार्जुन

    केस नंबर- विविध प्रथम अपील 4314/2012

    आदेश की तिथि- 16 नवंबर, 2021

    उद्धरण- 2022 लाइव लॉ (केएआर) 15

    प्रतिनिधित्व-याचिकाकर्ता के लिए वकील बी बोपन्ना; प्रतिवादी के लिए एडवोकेट सी सदाशिव

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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