तेलंगाना हाईकोर्ट ने 'पाकिस्तानी नागरिक' के खिलाफ हिरासत का आदेश खारिज किया, कहा- जमानत शर्तों के उल्लंघन का कोई आरोप नहीं

Shahadat

26 July 2023 8:00 AM GMT

  • तेलंगाना हाईकोर्ट ने पाकिस्तानी नागरिक के खिलाफ हिरासत का आदेश खारिज किया, कहा- जमानत शर्तों के उल्लंघन का कोई आरोप नहीं

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने उस "पाकिस्तानी नागरिक" के खिलाफ जारी हिरासत आदेश रद्द कर दिया, जिस पर भारतीय पासपोर्ट हासिल करने के लिए जाली मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड जमा करने का आरोप है।

    हिरासत में लिए गए शेख गुलज़ार खान उर्फ गुलज़ार मसीह को मार्च 2020 में संबंधित आपराधिक मामले में जमानत दे दी गई थी। उसे पिछले साल फरवरी से सेंट्रल जेल, चेरलापल्ली, हैदराबाद में हिरासत में रखा गया है।

    जस्टिस के. लक्ष्मण और जस्टिस पी. सुधा की खंडपीठ ने पुलिस को आदेश दिया कि वह "निचली अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों का पालन करते हुए जमानत आदेश की प्रति प्रस्तुत करने पर" बंदी को तुरंत रिहा कर दे, अगर उसे अब किसी अन्य आपराधिक मामले में इसकी आवश्यकता नहीं है।

    अदालत ने कहा,

    "हालांकि, यह आदेश चौथे प्रतिवादी [भारत संघ] को कानून के अनुसार बंदी के निर्वासन की प्रक्रिया को पूरा करने से नहीं रोकेगा।"

    खान की पत्नी ने उनके निर्वासन की प्रक्रिया पूरी होने तक उन्हें हिरासत में रखने के लिए राज्य सरकार (सामान्य प्रशासन एसपीआई कानून और व्यवस्था विभाग के प्रधान सचिव) द्वारा पुलिस महानिदेशक, तेलंगाना को दी गई अनुमति को चुनौती दी। 2019 में दर्ज आपराधिक मामले में खान पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 468, 469, 471 के साथ विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 14 (ए) और भारतीय पासपोर्ट अधिनियम की धारा 12 (1) (बी) और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 की धारा 3 के तहत आरोप लगाए गए।

    विशेष सरकारी वकील मुजीब कुमार सदासिवुनी ने तर्क दिया कि राज्य सरकार ने आरोपों पर विचार करते हुए और कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए डीजीपी को हिरासत में लेने की अनुमति दी है। हालांकि, याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील एम.ए. शकील ने कहा कि राज्य सरकार के पास अधिनियम की धारा 3(2)(ई) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए डीजीपी को हिरासत में लेने की अनुमति देने की शक्ति नहीं है।

    याचिकाकर्ता के वकील ने कहा,

    "दिनांक 19.04.1958 की अधिसूचना में एक्ट की धारा 3(2) (ई) शामिल नहीं है। इसे अधिनियम 42/1962 द्वारा डाला गया। इसलिए पहले प्रतिवादी के पास एक्ट की धारा 3 (2) (ई) के तहत दूसरे प्रतिवादी को हिरासत में लेने की अनुमति देने की कोई शक्ति नहीं है। उन्होंने डब्ल्यू.पी.नंबर 640 में इस न्यायालय की डिवीजन बेंच के दिनांक 15.09.2022 के फैसले पर भरोसा रखा।“

    डिप्टी सॉलिसिटर वी.टी. कल्याण ने दलील दी कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।

    केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा,

    "निर्वासन प्रक्रिया प्रगति पर है। एसओ नंबर 590, दिनांक 19.04.1958 के तहत शक्ति का उपयोग करते हुए उपरोक्त G.O.Rt.No.599, दिनांक 02.11.2021 को प्रथम प्रतिवादी द्वारा दूसरे प्रतिवादी [डीजीपी] को निर्वासन प्रक्रिया पूरी होने तक हिरासत में रखने की अनुमति जारी की गई थी। इसमें कोई त्रुटि नहीं है।"

    खंडपीठ ने कहा कि पिछले साल अदालत ने म्यांमार के नागरिकों और अन्य विदेशियों के मामले से निपटते हुए कहा कि एक्ट की धारा 3(2)(जी) के तहत केंद्र द्वारा राज्य सरकार को कोई शक्ति नहीं सौंपी गई। केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने अदालत को बताया कि फैसले के खिलाफ कोई एसएलपी दायर नहीं की गई।

    खंडपीठ ने कहा,

    "हम क्रमशः 2022 और बैच के डब्ल्यू.पी.नंबर 6407 में दिनांक 15.09.2022 के सामान्य आदेश में समन्वय पीठ द्वारा लिए गए दृष्टिकोण से सहमत हैं। वर्तमान रिट याचिका में शामिल मामला भी उक्त आदेश द्वारा पूरी तरह से कवर किया गया। पहले प्रतिवादी ने अधिनियम की धारा 3 (2) (जी) के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए दूसरे प्रतिवादी को अनुमति दी, जो उपरोक्त अधिसूचना दिनांक 19.04.1958 में शामिल नहीं है।“

    अदालत ने यह भी कहा कि बंदी के खिलाफ ऐसा कोई आरोप नहीं है कि उसने जमानत आदेश में ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई किसी भी शर्त का उल्लंघन किया।

    हिरासत को अवैध घोषित करते हुए इसमें कहा गया,

    "तीसरे प्रतिवादी ने कहा कि हिरासत में लिया गया व्यक्ति इलाके में पेंटर के रूप में काम करता है और किसी के साथ गैर-विवादास्पद है।"

    केस टाइटल: शेख दौलत बी बनाम तेलंगाना राज्य

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