अध‌िकारियों को‌ निशाना बनाने से कम होता है पुलिस में जनता का भरोसाः दिल्ली की अदालत ने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारी को जमानत देने से किया इनकार

LiveLaw News Network

29 Feb 2020 5:08 AM GMT

  • अध‌िकारियों को‌ निशाना बनाने से कम होता है पुलिस में जनता का भरोसाः दिल्ली की अदालत ने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारी को जमानत देने से किया इनकार

    अभ‌ियुक्त को जगतपुरी एरिया से, जहां धारा 144 लगी हुई थी, सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान से गिरफ्तार किया गया था।

    दिल्‍ली की एक कोर्ट ने नई दिल्‍ली के पूर्वोत्तर जिले में विरोध प्रदर्शन करने के मामले में गिरफ्तार कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां को जमानत देने से इनकार कर ‌दिया है। कड़कड़डूमा कोर्ट में एएसजे नवीन गुप्ता ने जमानत अर्जी खारिज़ करते हुए कहा-

    "जब कानून के संरक्षकों को, विशेषकर जनता की निगाह में, इस प्रकार ‌निशाना बनाया जाएगा, जैसा कि मौजूदा एफआईआर से दिखाई दे रहा है, तब पुलिस अधिकारियों की कर्तव्य निर्वहन की क्षमता से जनता का भरोसा कम होगा।"

    अभ‌ियुक्त को जगतपुरी एरिया से, जहां धारा 144 लगी हुई थी, सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान से गिरफ्तार किया गया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, पुलिस वहां गोलियों की आवाज़ सुनने के बाद पहुंची थी। जिसके बाद पुलिस ने भीड़ को प्रदर्शनस्‍थल से हटने को कहा था।

    ‌अभियोजन पक्ष ने पुलिस को बताया कि-

    "भीड़ को वहां बैठने के लिए उकसाया गया था। एसएचओ ने भीड़ को वहां इकट्ठा होने को गैरकानूनी घोषित किया और लोगों को वापस जाने को कहा, हालांकि आवेदक/आरोपी सहित एफआईआर में नामित व्यक्तियों ने भीड़ को हटने नहीं दिया। आवेदक/आरोपी इशरत जहां ने यह कहकर भीड़ को उकसाया कि वह हटेंगी नहीं, भले ही वह मर जाएं या पुलिस अधिकारी जो चाहते हैं, वो करें, वो आजादी चाहती हैं। (अजादी)"

    अभियोजन पक्ष ने आगे कहा कि, भीड़ ने एक आरोपी के उकसाने पर पुलिस पर पथराव करना शुरू कर दिया। पुलिस ने उचित बल प्रयोग के साथ स्थिति को संभालने की कोशिश की। पथराव में एक पुलिस अधिकारी को चोट भी लगी।

    जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई, अभियोजक पक्ष के अनुसार, पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और हवा में गोलियां चलाईं। भीड़ में से शामिल कुछ लोगों ने पुलिस के साथ हाथापाई शुरू कर दी।

    दूसरी ओर, अभियुक्तों की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि पिछले 49 दिनों से सीएए के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन हो रहा था, प्रदर्शनकारियों के खिलाफ किसी भी आपराधिक गतिविधि की शिकायत नहीं की गई थी। उन्होंने कहा कि आवेदक/आरोपी पेशे से एक वकील हैं और कांग्रेस पार्टी से जुड़ी पूर्व पार्षद हैं, इसीलिए उन्हें वर्तमान मामले में राजनीतिक प्रतिशोध के तहत झूठा फंसाया गया है।

    आरोपी के वकील ने यह भी तर्क दिया कि फ्लैग मार्च का हिस्सा रहे पुलिस अधिकारियों ने पूरी कथित घटना को वीडियोग्राफी नहीं कराई। पुलिस अधिकारियों ने खुद इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरों को क्षतिग्रस्त कर दिया। अभियोजन पक्ष के वकील ने बचाव पक्ष के वकील की दलीलों पर सीसीटीवी फुटेज की अनुपलब्धता तर्क देते हुए कहा कि वीडियो साक्ष्य के अभाव के बावजूद आरोपी ने इस तथ्य को चुनौती नहीं दी है कि पुलिस इलाके में फ्लैग मार्च कर रही थी।

    अभियोजक ने जमानत के विरोध में अभियुक्त के आपराधिक इतिहास का उल्‍लेख भी किया। उन्होंने कहा कि, अगर मामले की शुरुआत में ही जमानत दे दी गई थी अभ‌ियुक्त सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकती हैं और गवाहों को धमकी दी जा सकती है। दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि-

    'इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक जीवंत लोकतंत्र में शांतिपूर्ण विरोध आवश्यक अधिकार है, लेकिन यह अधिकार संविधान के तहत प्रदान किए गए कुछ अपवादों के अधीन है।'

    कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में ‌दिए गए तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार और अब तक की गई जांच से पता चलता है कि विरोध प्रदर्शन में मौजूदा सदस्य पिस्तौल से लैस थे। उन्होंने पथराव किया था। नामांकित व्यक्तियों के उकसाने के कारण यह घटना हुई, वे सभा में मौजूद थे।

    इसलिए, एक प्रथम दृष्टया निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अभियुक्त प्रदर्शन का हिस्सा थी, जो बाद में गैरकानूनी हो गया था। चूंकि आरोपियों के खिलाफ गंभीर प्रकृति का आरोप प्रकृति है, इसलिए अदालत ने उन्हें जमानत देने से इनकार करती है।

    'उपरोक्त टिप्पणियां के जर‌िए मामले की मेरिट पर कोई राय नहीं दी गई है, बस जमानत पर फैसला किया गया है।'

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