तब्लीगी जमात से जुड़े 6 बांग्लादेशी नागरिकों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दी अंतरिम जमानत; विदेश मंत्रालय को जारी हुआ नोटिस

SPARSH UPADHYAY

14 Jun 2020 4:15 AM GMT

  • Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

    इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन में एक धार्मिक मण्डली में भाग लेने और उसके पश्च्यात बिना चिकित्सीय परिक्षण के लखनऊ आने (जिससे यह आशंका हुई कि वे कोरोनावायरस के प्रसार के लिए जिम्मेदार थे) के चलते कथित तौर पर अपने पर्यटक वीजा का दुरुपयोग करने के कारण बुक किये गए 6 बांग्लादेशी नागरिकों को अंतरिम जमानत दे दी है।

    न्यायमूर्ति ए. आर. मसूदी की एकल पीठ ने यह आदेश देते हुए इस बात को भी रेखांकित किया कि भारत के संविधान के भाग III के प्रावधानों से यह निहित है कि अनुच्छेद 14, 20 और 21 का संरक्षण, विदेशी नागरिकों के लिए समान रूप से उपलब्ध है।

    अदालत ने कहा कि,

    "भारत के संविधान का अनुच्छेद 20, आपराधिक मुकदमे के मामले में विदेशी नागरिकों को सुरक्षा की समान गारंटी देता है, और अनुच्छेद 21 समान रूप से जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण की गारंटी देता है।"

    गौरतलब है कि इन आरोपियों को FIR/Crime No. 259/2020 में, भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 188, महामारी रोग अधिनियम, 1897 की धारा 3, विदेशी नागरिक अधिनियम, 1946 की धारा 13/14B/14C और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 56 के तहत गिरफ्तार किया गया था।

    अदालत ने इन आरोपियों को जमानत देते हुए इस बात को रेखांकित किया कि,

    "एक समान स्थिति में, इलाहाबाद अदालत ने हाल ही में जमानत आवेदन संख्या 2898/2020 में एक आदेश पारित किया है, जहाँ समान रूप से स्थित आरोपी व्यक्तियों को जमानत पर रिहा किया गया था, जिनके खिलाफ इन्ही दंडात्मक प्रावधान के तहत एफ.आई.आर. दर्ज की गयी थी।"

    दरअसल उस मामले में [सैगिनबेक तोकतोबोलोतोव बनाम उत्तरप्रदेश राज्य 2898/2020], इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने तब्लीगी जमात से जुड़े 6 सदस्यों को जमानत दे दी, ये सभी किर्गिस्तान के नागरिक थे।

    न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की एकल पीठ ने इन सभी विदेशी नागरिकों को जमानत देते हुए इस बात पर गौर किया था कि भले ही जमानत के ये आवेदक विदेशी नागरिक हैं, फिर भी उन्हें कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है और वे कानून के समक्ष समता (equality before law) के और कानून के समान संरक्षण (equal protection of law) के भी हकदार हैं।

    विदेश मंत्रालय को दिया गया नोटिस

    अदालत ने मौजूदा मामले में विदेश मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के माध्यम से बांग्लादेश के उच्चायोग को एक नोटिस जारी करने का आदेश दिया। अदालत ने उम्मीद जताई कि बांग्लादेश का उच्चायोग, जमानत की शर्तों के निर्माण के साथ-साथ अपने नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक वकील के जरिये न्यायालय की सहायता करेगा।

    अदालत ने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के सचिव को भी नोटिस जारी किया और कहा कि वे इस संबंध में प्रत्यर्पण संधि के अनुसार (यदि कोई हो तो), अपने उच्चायोग के माध्यम से बांग्लादेश सरकार के साथ आवश्यक संचार करेंगे।

    इसके पश्च्यात, अदालत ने व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भारत सरकार को सॉलिसिटर जनरल/अतिरिक्त सॉलिसिटर ऑफ इंडिया के माध्यम से अदालत के समक्ष अपना पक्ष रखने को कहा।

    आरोपियों की वित्तीय सहायता को लेकर अदालत का विचार

    जमानत पर रिहा करते हुए अदालत ने जमानत के आवेदकों को वित्तीय सहायता प्राप्त करने की छूट देते हुए यह आदेश दिया कि,

    "वीजा के सम्बन्ध में, भारत में रहने की अवधि के लिए, जमानत के आवेदक बांग्लादेश में अपने रिश्तेदारों से या भारत के किसी भी स्वैच्छिक संगठन से वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए स्वतंत्रत होंगे। यदि आवेदक, उपरोक्त स्रोतों से वित्तीय सहायता उपयुक्त सहायता नहीं प्राप्त कर पाते हैं तो केंद्र/राज्य सरकार, विदेश मंत्रालय के माध्यम से बांग्लादेश सरकार के साथ उचित परामर्श के बाद आरोपी आवेदकों को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान करेगी जिसमे चिकित्सीय सहायता शामिल होगी।"

    अदालत ने आवेदकों को अपनी वीज़ा अवधि की समाप्ति से तुरंत पहले संबंधित अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया जोकि उस आदेश के अधीन होगा, जो इस न्यायालय द्वारा भविष्य में पारित किया जा सकता है।

    'न्यायिक परीक्षण के अलावा अन्य माध्यम से आपराधिक मामलों के भाग्य का फैसला करने का रास्ता खुला'

    अदालत ने बेहद सतर्कता के साथ भारत के विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली के जरिये भारत सरकार और बांग्लादेश सरकार के लिए यह रास्ता खुला छोड़ा कि वे न्यायिक परीक्षण के माध्यम के अलावा, आपराधिक मामलों के भाग्य का फैसला कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि यह पूरी तरह से संबंधित सरकारों द्वारा अपराधों और सामग्री की परीक्षा पर निर्भर करेगा, और यह इस न्यायालय द्वारा न्यायिक जांच के लिए कोई मामला नहीं हो सकता है।

    अदालत ने विदेश मंत्रालय को यह भी निर्देश दिए कि वे तदनुसार बांग्लादेश के उच्चायोग के साथ विदेशी नागरिकों के मामले को उठायें और न्यायालय को इस बात से अवगत कराएँ कि वर्तमान आवेदकों की भागीदारी को मुकदमे के समापन के लिए कैसे सुनिश्चित किया जायेगा, यदि किसी भी कारण से मामले का परीक्षण (Trial) उस अवधि के भीतर समाप्त नहीं होता है, जिस अवधि के लिए भारत सरकार द्वारा इन आवेदकों को पर्यटक वीजा जारी किये गए हैं।

    अंतरिम जमानत पर रिहा करने का दिया गया आदेश

    अदालत ने इन सभी आरोपियों यानी आरोपी आवेदकों 1 से 5 और 7 [मोहम्मद शफीउल्लाह, ज़हीर इस्लाम @ मोहम्मद ज़हीर-उल-इस्लाम, मोहम्मद अलाउद्दीन, जमीला अख्तर, रहीमा खातून @ मोस्त रहिमा और ज़रीना खातून @ जोरिना खातून] को बेल बांड एवं एक भरोसेमंद स्युरिटी के साथ जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

    हालाँकि, आरोपी आवेदक संख्या 6 [अकल्ली नाहर @ अक्लिमुन नाहर] की जमानत की प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया गया, क्योंकि उसकी वीज़ा की अवधि 10-अप्रैल-2020 को समाप्त हो गई है, और इसलिए उसकी प्रार्थना को हाईकोर्ट ने लिस्टिंग की अगली तारीख तक रोक दिया है।

    हालाँकि, अदालत ने आवेदक संख्या 6 के लिए यह खुला छोड़ा है कि वह जेल अधिकारियों के माध्यम से कानूनी तौर पर वीज़ा के विस्तार के लिए आवेदन कर सकता है। वहीँ, जेल अधिकारी, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार को वह आवेदन का हस्तांतरण करेंगे जिससे उसे बांग्लादेश उच्चायोग बंगलदेश के समक्ष रखा जा सके।

    जमानत के लिए प्रार्थना को न्यायालय द्वारा 2-जून-2020 को पारित किए गए आदेश [सैगिनबेक तोकतोबोलोतोव बनाम उत्तरप्रदेश राज्य] और 2020 के बेल एप्लीकेशन नंबर 2898 में मामले की समानता पर दिए गए तर्क को देखते हुए दी गई।

    शर्तों के साथ अदालत ने मुख्य रूप से उन्हें यह आदेश दिया कि

    "आवेदक, कोर्ट की पूर्व लिखित अनुमति के बिना वीज़ा में उल्लिखित अंतिम निवास का स्थान नहीं छोड़ेंगे या जैसा कि फॉर्म-सी में अधिकारियों को सूचित किया गया है और उक्त प्रभाव के लिए वे एक अंडरटेकिंग प्रस्तुत करेंगे और निकटतम पुलिस स्टेशन को अपने ठिकाने के बारे में हर पखवाड़े (Fortnight) को सूचित करेंगे। आवेदक अपनी आस्था के अनुसार प्रार्थना करने के लिए स्वतंत्र होंगे, लेकिन महामारी या COVID -19 की अवधि के दौरान, केंद्र या राज्य सरकार द्वारा जारी मॉडल दिशानिर्देशों के विपरीत धार्मिक मण्डली में शामिल नहीं हो सकते हैं।"

    अंत में अदालत ने मामले को 16-जुलाई-2020 को नियमित जमानत के तौर पर सूचीबद्ध करने का आदेश दिया।

    केस विवरण

    केस टाइटल: मोहम्मद सफीउल्लाह एवं अन्य बनाम उत्तरप्रदेश राज्य

    केस नं: बेल नंबर - 2865/2020

    कोरम: न्यायमूर्ति ए. आर. मसूदी

    अधिवक्ता: अधिवक्ता प्रांशु अग्रवाल एवं सुफियान मोहम्मद (आवेदकों के लिए)।


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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