तब्लीगी जमातः संभव है कि उन्हें अलग-अलग जगहों से उठाया गया हो और 'दुर्भावना से' मुकदमे चलाए गए हों: दिल्ली कोर्ट ने 36 विदेशियों को बरी किया

LiveLaw News Network

17 Dec 2020 8:54 AM IST

  • तब्लीगी जमातः संभव है कि उन्हें अलग-अलग जगहों से उठाया गया हो और दुर्भावना से मुकदमे चलाए गए हों: दिल्ली कोर्ट ने 36 विदेशियों को बरी किया

    साकेत कोर्ट (दिल्ली) ने यह देखते हुए कि आररोपियों की याचिका "उचित रूप से संभावित" कि उनमें से कोई भी प्रासंगिक अवधि में मर्कज में मौजूद नहीं था और उन्हें विभिन्न स्थानों से उठाया गया ताकि उन पर दुर्भावना से मुकदमा चलाया जा सके, 36 विदेशी नागरिकों को बरी कर दिया। उन पर आरोप था कि इस साल मार्च में उन्होंने निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात के एक कार्यक्रम में भाग लिया था, जिसमें COVID 19 दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया था, जिसके तहत वो मुकदमे को सामना कर रहे थे।

    मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, अरुण कुमार गर्ग उन अभियुक्तों की सुनवाई कर रहे थे, जिन पर धारा 188 और 269 आईपीसी, महामारी रोग अधिनियम, 1897 की धारा 3 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था।

    आरोपी अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, सूडान, ट्यूनीशिया, श्रीलंका, तंजानिया, यूनाइटेड किंगडम, थाईलैंड, कजाकिस्तान और इंडोनेशिया आदि देशों के नागरिक थे।

    धारा 188, आईपीसी के तहत आरोप

    अभियोजन पक्ष ने अभ‌ियुक्तों पर धारा 144 सीआरपीसी के उल्लंघन का आरोप लगाया था, जो 24.03.2020 को एसीपी, लाजपत नगर सबडिवीजन द्वारा घोषित की गई थी। अभियुक्तों की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि धारा 188 आईपीसी के अर्थ के भीतर उक्त आदेश को कभी भी पारित नहीं किया गया और न ही अभियुक्तों को इसके बारे में पता था।

    महत्वपूर्ण रूप से, अभियोजन पक्ष द्वारा पीआरओ की जांच की गई, जिसमें उन्होंने बताया कि उन्होंने दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर 24.03.2020 को ही आदेश अपलोड किया था; हालांकि, वह यह बताने में असफल रहे कि उन्होंने प्रेस, रेडियो या टेलीविजन में उक्त आदेश को प्रचारित किया था।

    किसी भी अखबार की प्रतिलिपि या रेडियो, टेलीविजन की क्लिप, जिसमें आदेश की सामग्री प्रकाशि‌त की गई हो, ट्रायल के दौरान र‌िकॉर्ड पर प्रमाणित नहीं की जा सकी।

    24.03.2020 के ऑर्डर में क्या कहा गया था?

    उक्त आदेश के खंड 2 के अनुसार, सब डिविजन (धार्मिक या गैर-धार्मिक) को सब डिविजन लाजपत नगर में प्रतिबंधित कर दिया गया था और खंड 5 के अनुसार, सभी व्यक्तियों, COVID 19 के संदिग्ध या पुष्टि मामलों को, होम क्वारंटीन/ इंस्ट‌िट्यूशनल क्वारंटीन के जर‌िए रोकथाम / उपचार के उपाय करने का निर्देश दिया गया था और निगरानी कर्मियों के निर्देशों का पालन करने के लिए निर्देशित किया गया था।

    राज्य की ओर से पेश एपीपी ने तर्क दिया कि सभी आरोपी मर्कज में धार्मिक सभा का हिस्सा थे, जिसमें उक्त दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया गया, और उनमें से कुछ संदिग्ध थे, जिनके COVID​​-19 के लक्षण थे और कुछ में COVID-19 के मामलों की पु‌‌‌ष्टि हुई थी, चूंकि वो क्वारंटीन का सहारा लेने में विफल रहे, उन्होंने एसीपी के आदेश में निहित निर्देशों की अवज्ञा की थी।

    दूसरी ओर, आरोपियों ने संबंधित अवधि के दौरान मार्कज में अपनी उपस्थिति से इनकार किया।

    कोर्ट की जांच

    कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "अभियोजन पक्ष एसीपी, लाजपत नगर द्वारा धारा 144 सीआरपीसी के तहत जारी आदेश के प्रकाशन के किसी भी सबूत को पेश करने में विफल रहा, जिससे उस आदेश को मर्कज में रहे रहे व्यक्तियों के नोटिस में लाया गया रहा हो।"

    न्यायालय ने यह भी कहा कि दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर आदेश को अपलोड करने पर "आदेश का प्रभाव नहीं पड़ेगा।"

    महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि अभियोजन पक्ष की ओर से पेश रजिस्टर की सामग्री यह साबित नहीं करती कि अभियुक्त अपने नामों के सामने लिखी तारीखों पर मर्कज में पहुंचे या वे 30.03.2020 से 31.03.2020 तक मर्कज में रहे थे।

    इस प्रकार, अदालत ने कहा कि संबंधित अवधि के दौरान मर्कज में अभियुक्तों की उपस्थिति के साक्ष्य के रूप में उक्त सूचियों पर भरोसा करना सुरक्षित नहीं होगा।

    अंतिम रूप से, यह देखते हुए कि अभियोजन पक्ष 12.03.2020 01.04.2020 के दौरान मर्कज के अंदर किसी भी आरोपी की उपस्थिति साबित करने में विफल रहा, अदालत ने कहा, "एसीपी लाजपत नगर के धारा 144 सीआरपीसी के आदेश के किसी भी उल्लंघन/अवज्ञा का कोई सवाल ही नहीं है, (हालांकि उक्त आदेश की उद्घोषणा अभियोजन पक्ष द्वारा साबित नहीं की जा सकी।)"

    एसएचओ की गवाही अविश्वसनीय लगी

    एसएचओ, इंस्पेक्टर मुकेश वालिया ने अदालत के सामने कहा था कि मर्कज के प्रबंधन ने उन्हें, साथ ही साथ अन्य अधिकारियों को, कवायद पूरी होने तक मर्कज के अंदर वास्तविक संख्या के बारे में अंधेरे में रखा।

    हालांकि, अपनी जिरह के दौरान उन्होंने कहा कि 12.03.2020 से 31.03.2020 के दौरान, वह मर्कज (सभी मंजिलों) के अंदर लगभग दैनिक आधार पर गए और अभियुक्तों को दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हुए पाया गया।

    इस पर कोर्ट ने कहा, "अगर ऐसा है तो SHO शुरू से ही मर्कज में जमा व्यक्तियों की वास्तविक संख्या के बारे में जानते थे और फिर भी वे सरकार के दिशा-निर्देशों के संबंध में जागरूक होने के बावजूद उक्त सभाओं के फैलाव को सुनिश्चित करने में समय पर कोई उपाय करने में विफल रहे। यदि वह निकासी अभ्यास के अंतिम दिन तक मर्कज के अंदर रहने वाले वास्तविक या अनुमानित संख्याओं के बारे में नहीं जानते थे, तो वह, सभी संभावनाओं में, मर्कज की अपने दैनिक यात्राओं के बारे में गलत जानकारी दे रहे थे।"

    अदालत ने कहा, किसी भी स्‍थति में उनकी गवाही भरोसे की परीक्षा पास करने में विफल रही है और इसलिए अदालत में आरोपी व्यक्तियों की उनके द्वारा पहचान करना पार्यप्त नहीं है।

    राज्य का असामान्य तर्क

    राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त पीपी ने अदालत के सामने तर्क दिया कि प्रासंगिक समय के दौरान जो असाधारण स्थिति बनी हुई थी, उसे देखते हुए गवाहों द्वारा अभियुक्त की पहचान आवश्यक नहीं है और अदालत उन अभियुक्तों को भी दोषी ठहरा सकती है, जिनकी मौके पर उपस्थिति अन्यथा भी विधिवत स्थापित की गई हो।

    इस पर, अदालत ने टिप्पणी की, "अभियोजन पक्ष द्वारा न केवल समसामयिक दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर रखा गया है, बल्कि अभियोजन पक्ष भी मौके पर आरोपी व्यक्तियों की उपस्थिति स्थापित करने के लिए कानून के अनुसार दस्तावेजों को साबित करने में विफल रहा है।"

    अन्य आरोपों पर न्यायालय की जांच

    आईपीसी की धारा 269 के आरोप के बारे में, अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष इस तथ्य को देखते हुए पहली बार उक्त आरोप को साबित करने में विफल रहा कि 12.03.2020 से 01.04.2020 के दौरान मर्कज परिसर के अंदर किसी भी अभियुक्त की उपस्थिति नहीं है और दूसरी बात, निकासी सूची के अनुसार , आरोपियों में से किसी को भी COVID 19 लक्षण नहीं था।

    कोर्ट ने आगे कहा, "जिसके अभाव में किसी भी अभियुक्त की ओर से किसी भी लापरवाहीपूर्ण कार्य का कोई सवाल ही नहीं उठता है कि उनके ज्ञान या विश्वास में संक्रमण फैलने की संभावना थी।"

    महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने टिप्पणी की, "भले ही यह तर्क के लिए मान लिया जाए कि कुछ अभियुक्तों को विभिन्न तारीखों पर COVID 19 सकारात्मक पाया गया है अर्थात 01.04.2020, 09.04.2020 और 10.04.2020, मर्कज में उनके कथित प्रवास के दौरान किसी भी लक्षण के अभाव में, उन्हें संक्रमण फैलाने की संभावना वाले किसी भी लापरवाहीपूर्ण कार्य में शामिल नहीं कहा जा सकता है। "

    अंत में, अदालत ने कहा कि संबंधित अवधि के दौरान मर्कज परिसर के अंदर अभियुक्तों की उपस्थिति को साबित करने में अभियोजन पक्ष की विफलता के कारण, 16.03.2020 की दिल्ली सरकार की अधिसूचना के उल्लंघन का कोई सवाल ही नहीं था।"

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि ये 36 विदेशी नागरि, विदेशों से आए अंतिम आरोपी थे, जिन्हें मामले में मुकदमे का सामना करना पड़ा था। अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, 952 विदेशियों पर दिल्ली पुलिस द्वारा COVID 19 के नियम तोड़ने का आरोप लगाया गया था।

    द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, ये 36 विदेशी उन 44 विदेशियों में से थे, जिन्होंने वीजा नियमों और COVID नियमों के उल्लंघन के आरोप में मुकदमे लड़ने का फैसला किया था। याचिकाकर्ताओं के लिए एडवोकेट अहमद खान, फहीम खान, आशिमा मंडला और मंदाकिनी सिंह ने बहस की।

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