'सिस्टम न तो घड़ी को पीछे कर सकता है और न ही अपराध को शून्य कर सकता है': दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग यौन उत्पीड़न के शिकार को 6 लाख रूपये का अंतरिम मुआवजा दिया

LiveLaw News Network

15 May 2021 7:40 AM GMT

  • सिस्टम न तो घड़ी को पीछे कर सकता है और न ही अपराध को शून्य कर सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग यौन उत्पीड़न के शिकार को 6 लाख रूपये का अंतरिम मुआवजा दिया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार (13 मई) को एक महत्वपूर्ण अवलोकन में नाबालिग यौन उत्पीड़न के शिकार को 6 लाख रूपये का अंतरिम मुआवजा देते हुए कहा कि,

    "चूंकि सिस्टम न तो घड़ी को पीछे कर सकता है और न ही अपराध को शून्य कर सकता है, इसलिए अदालत अपराधी पर मुकदमा चलाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती है। इसके साथ ही पीठ पीड़ित को मनोवैज्ञानिक सुरक्षा और सशक्तिकरण की भावना प्रदान कर सकती है और मुआवजे का निर्देश दे सकती है।"

    न्यायमूर्ति अनूप जे. भंभानी की खंडपीठ ने मुआवजे के रूप में 50,000 रूपये देने के निजली अदालत के फैसले को पलटते हुए दिल्ली राज्य विधि सेवा प्राधिकरण को 6 लाख रूपये का अंतरिम मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया।

    कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से अंतरिम चरण में भी याचिकाकर्ता के लिए मुआवजे को निर्धारित करने का प्रयास करते हुए कहा कि,

    "इस अदालत का प्रयास उस अपराध के प्रायश्चित के लिए जहां तक संभव हो मौद्रिक भुगतान की पेशकश करना चाहिए, जिसके लिए याचिकाकर्ता पीड़ित हुआ है। उसे शारीरिक और मानसिक आघात का सामना करना पड़ा और उसको भावनात्मक रूप से आघात पहुंचा है।"

    कोर्ट के समक्ष मामला

    याचिकाकर्ता लगभग 06 वर्ष की आयु का लड़का है, जिसे कथित तौर पर उसके रिश्तेदार द्वारा यौन उत्पीड़न और यौन शोषण का शिकार बनाया गया। इस मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) (पॉक्सो), साकेत कोर्ट, नई दिल्ली द्वारा दिए गए 19 अगस्त 2020 के आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता की मां के माध्यम से याचिका दायर की।

    सत्र न्यायालय ने याचिकाकर्ता को 50,000 रूपये का अंतरिम मुआवजा देने का निर्देश दिया था। हालांकि, आरोपियों पर मुकदमा चल रहा है, मुकदमा अभी समाप्त नहीं हुआ है।

    प्रस्तुतियां

    याचिकाकर्ता के वकील ने इस आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि अदालत इस बात की सराहना करने में विफल रही कि अंतरिम स्तर पर भी यौन शोषण की शिकार नाबालिग को मुआवजा दिया जाना है।

    वकील ने प्रस्तुत किया कि,

    "यह पीड़ित और उसके परिवार को घटना से उबरने और पीड़ित को पहुंचे मानासिक आघात को थोड़ा राहत प्रदान करेगा और यह पीड़ित को राहत और समाज में पुनर्वास के लिए करने में मदद करेगा। मुआवजा केवल कुछ समय के लिए खर्च के लिए नहीं मांगा जा रहा है।"

    वकील ने यह भी तर्क दिया कि दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना 2018 (डीवीसी योजना 2018) को एक बेंचमार्क मानते हुए दिया गया अंतरिम मुआवजा 6 लाख और 10.50 लाख रुपये के बीच कहीं होना चाहिए।

    राज्य की प्रस्तुतियां

    राज्य की ओर से अतिरिक्त स्थायी वकील ने तर्क दिया कि डीवीसी योजना 2018 एएसजे पर बाध्यकारी नहीं है और उन्होंने डीवीसी योजना 2018 के तहत प्रदान की गई न्यूनतम सीमा राशि 50,000 रुपये के अनुदान को बिना किसी आधार के उचित ठहराया और भुगतान किए जाने वाले मुआवजे की गणना के लिए POCSO अधिनियम की धारा 33 (8) के तहत आवेदन में प्रदान किया गया था।

    कोर्ट का आदेश

    कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि नाबालिग के खिलाफ अपराध से जुड़े मामले में लिंग की परवाह किए बिना POCSO अधिनियम की धारा 33 (8) पीड़ित को मुआवजे के भुगतान का प्रावधान करती है।

    न्यायालय ने आगे कहा कि जहां तक दिल्ली राज्य का संबंध है, यदि कोई पीड़ित डीएलएसए या डीएसएलएसए को मुआवजे के लिए आवेदन करता है तो संबंधित प्राधिकरण को डीवीसी योजना 2018 के तहत और उसके अनुसार मुआवजे का आकलन और भुगतान करना आवश्यक है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "यदि कोई पीड़ित विशेष पॉक्सो अदालत के समक्ष पॉक्सो एक्ट की धारा 33 (8) के तहत मुआवजे के लिए आवेदन करता है तो डीवीसी योजना 2018 बाध्यकारी नहीं है, लेकिन अदालत के लिए मुआवजे का आकलन करने और भुगतान करने के लिए केवल एक 'दिशानिर्देश' के रूप में काम करती है, चाहे वह अंतरिम या अंतिम चरण में हो।"

    कोर्ट ने इसके अलावा पोक्सो नियम 2020 के नियम 9 का हवाला देते हुए कहा कि अदालत को उचित मामलों में खुद से या पीड़ित द्वारा दायर आवेदन पर अंतरिम मुआवजा देने का अधिकार है।

    कोर्ट ने इस पृष्ठभूमि में कहा कि मुआवजे के रूप में निर्धारित राशि का भुगतान करने का निर्देश स्पष्ट रूप से विधि सेवा प्राधिकरण के विवेक के साथ बाध्यकारी नहीं होगा।

    कोर्ट ने आगे कहा कि आरोपी याचिकाकर्ता का चाचा है, जिस पर आरोप है कि उसने याचिकाकर्ता का यौन उत्पीड़न किया है। इसके अलावा अपने ही घर में याचिकाकर्ता को क्रूर और शारीरिक शोषण जैसे अपराधों का सामना करना पड़ा है। यह न केवल संभावना है बल्कि निश्चित है कि याचिकाकर्ता जो 6 साल का बच्चा है उसे अत्यधिक मनोवैज्ञानिक आघात, मानसिक पीड़ा और अभिघातजन्य तनाव का सामना करना पड़ा है।

    न्यायालय ने टिप्पणी की कि,

    "इस अदालत का प्रयास उस अपराध के प्रायश्चित के लिए जहां तक संभव हो मौद्रिक भुगतान की पेशकश करना चाहिए, जिसके लिए याचिकाकर्ता पीड़ित हुआ है। उसे शारीरिक और मानसिक आघात का सामना करना पड़ा और उसको भावनात्मक रूप से आघात पहुंचा है।"

    कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के परिवार वालों के लिए मुआवजा याचिकाकर्ता को उस स्कूल या किसी अन्य स्कूल में सुरक्षित रूप से जाने की व्यवस्था करने और उसकी शैक्षिक जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक है।

    अदालत ने कहा कि,

    "याचिकाकर्ता की मां को याचिकाकर्ता के साथ अधिक-से-अधिक समय बिताने की आवश्यकता है क्योंकि याचिकाकर्ता का यौन शोषण उसके ही घर में उसके ही चाचा ने किया। इसके साथ ही याचिकाकर्ता की मां व्यस्तता की वजह से काम पर भी नहीं जा सकती है।"

    कोर्ट ने उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर दिल्ली राज्य विधि सेवा प्राधिकरण को याचिकाकर्ता को 4 सप्ताह के भीतर 6 लाख रुपये अंतरिम मुआवजा के रूप भुगतान करने का निर्देश दिया है।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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