'आश्चर्य की बात है कि पिता पर आश्रित नाबालिग लड़का लिव-इन रिलेशन में रहना चाहता है': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन कपल को राहत देने से इनकार किया

Avanish Pathak

27 Oct 2023 5:35 PM IST

  • आश्चर्य की बात है कि पिता पर आश्रित नाबालिग लड़का लिव-इन रिलेशन में रहना चाहता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन कपल को राहत देने से इनकार किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक लिव-इन कपल की ओर से एफआईआर रद्द करने के लिए दायर याचिका रद्द कर दी है। लिव-इन कपल में लड़का नाबालिग है, जबकि लड़की बालिग है। जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और ज‌स्टिस मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी की पीठ ने लड़के के नाबालिग होने पर गौर करते हुए 'आश्चर्य' व्यक्त किया कि नाबालिग लड़का, जो अपने पिता पर निर्भर है, लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहता है।

    मामले में लड़की और उसके नाबालिग लिव-इन पार्टनर ने आईपीसी की धारा 366 के तहत लड़के के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के ‌लिए याचिका दायर की थी।

    दोनों पक्षों के वकीलों को सुनने और रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता लिव-इन रिलेशनशिप में हैं। लड़की/याचिकाकर्ता संख्या एक की उम्र 19 साल है, जबकि याचिकाकर्ता संख्या दो नाबालिग है, जो अपने माता-पिता पर निर्भर है। इसे देखते हुए, न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए एफआईआर को रद्द करने का कोई अवसर या कारण नहीं है।

    नतीजतन, एफआईआर को रद्द करने की प्रार्थना अस्वीकार कर दी गई और रिट याचिका खारिज कर दी गई।

    माइनर के लिव-इन रिलेशनशिप में रहने पर पहले भी टिप्‍पणी कर चुका है हाईकोर्ट

    वहीं एक अन्य मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि एक 'माइनर' (18 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति) लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता है और यह न केवल अनैतिक बल्कि अवैध भी होगा।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि लिव-इन रिलेशन को विवाह की प्रकृति का संबंध मानने के लिए कई शर्तें हैं और किसी भी मामले में, व्यक्ति को बालिग (18 वर्ष से अधिक) होना चाहिए, भले ही वह विवाह योग्य उम्र (21 वर्ष) का ना हो।

    एक अन्य घटनाक्रम में, एक अंतरधार्मिक लिव-इन जोड़े की ओर से लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के कारण पुलिस से सुरक्षा की मांग करने वाली याचिका को खारिज करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि ऐसे रिश्तों का कारण विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण अधिक है, जो बिना किसी ईमानदारी के होते हैं और वे अक्सर टाइमपास में बदल जाते हैं।

    हालांकि यह स्वीकार करते हुए कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में लिव-इन रिलेशनशिप को वैध ठहराया है, जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी की पीठ ने कहा ‌था कि दो महीने की अवधि में और वह भी 20-22 साल की उम्र में अदालत यह उम्मीद नहीं कर सकती है कि युगल इस प्रकार के अस्थायी रिश्ते पर गंभीरता से विचार कर पाएंगे।

    केस टाइटलः आंचल राजभर और अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य 2023 लाइव लॉ (एबी) 403[CRIMINAL MISC. WRIT PETITION No. - 15799 of 2023]

    केस साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एबी) 403

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