सुप्रीम कोर्ट ने तलाक, गोद लेने और भरण-पोषण पर समान धर्म और लिंग तटस्थ कानूनों की मांग करने वाली जनहित याचिकाएं खारिज कीं

Sharafat

30 March 2023 3:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने तलाक, गोद लेने और भरण-पोषण पर समान धर्म और लिंग तटस्थ कानूनों की मांग करने वाली जनहित याचिकाएं खारिज कीं

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एड्वोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा देश भर में तलाक, गोद लेने, संरक्षकता, उत्तराधिकार/विरासत, और भरण पोषण से संबंधित मामलों में लिंग तटस्थ और धर्म तटस्थ कानूनों ( gender neutral and religion neutral legislations) की मांग वाली याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया।

    सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि मामले लेजिस्लेटिव डोमेन से संबंधित हैं और सुप्रीम कोर्ट संसद को कानून बनाने के लिए परमादेश (mandamus) जारी नहीं कर सकता।

    संदर्भ की सुविधा के लिए याचिकाओं के समूह को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया था।

    भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि उन्होंने पहले ही प्रस्तुत कर दिया है कि सिद्धांत रूप में, एक समान नागरिक संहिता आदर्श है। हालांकि, उन्होंने कहा कि मामला विधायी दायरे में आता है। उन्होंने कहा-

    " सरकार चिंतित है। लेकिन यह (समान नागरिक संहिता का कार्यान्वयन) इस तरह के रिट में नहीं हो सकता। "

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने आदेश लिखवाते हुए कहा -

    " सॉलिसिटर जनरल ने प्रस्तुत किया है कि जबकि भारत सरकार, नीति के मामले में समान कानून का समर्थन करती है। जहां तक मामलों के इस बैच का संबंध है, यह उनका निवेदन है कि इस तरह का हस्तक्षेप केवल विधायी प्रक्रिया के माध्यम से हो सकता है। दलीलों और प्रस्तुतियों के एक सुविचारित दृष्टिकोण पर हम अनुच्छेद 32 के तहत याचिकाओं पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। इन कार्यवाहियों में राहत प्रदान करने के लिए कानून के अधिनियमन के लिए एक दिशा की आवश्यकता होगी। यह विशेष रूप से विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह एक सुस्थापित स्थिति है कि कानून बनाने के लिए विधायिका को परमादेश जारी नहीं किया जा सकता। "

    इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट बनाने के लिए विधि आयोग को निर्देश देने के संबंध में प्रार्थना के संबंध में अदालत ने कहा कि उसे अनुरोध पर विचार करने का कोई कारण नहीं मिला क्योंकि अंततः ऐसी रिपोर्ट कानून के अधिनियमन की सहायता में होनी चाहिए जो कानून के दायरे में आती है। तदनुसार याचिकाओं का निस्तारण किया गया।

    कोर्ट ने "तलाक-ए-हसन" की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिकाओं को इस बैच से अलग विचार के लिए अलग कर दिया।

    केस टाइटल : अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ और अन्य। WP(C) नंबर 869/2020 जनहित याचिका और इससे जुड़े मामले।

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