केंद्र सरकार के कहने पर जस्टिस अतुल श्रीधरन का तबादला: न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर मंडराता खतरा

Amir Ahmad

22 Oct 2025 12:17 PM IST

  • केंद्र सरकार के कहने पर जस्टिस अतुल श्रीधरन का तबादला: न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर मंडराता खतरा

    हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जज जस्टिस अतुल श्रीधरन को इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने का फैसला लिया गया। इस घटना ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कॉलेजियम ने अपने प्रस्ताव में खुलकर यह दर्ज किया कि यह तबादला केंद्र सरकार के अनुरोध पर किया गया।

    यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि न्यायपालिका की संवैधानिक रूप से स्वतंत्र प्रक्रिया में कार्यपालिका का कितना बड़ा दखल हो चुका है।

    जस्टिस श्रीधरन अपने निर्भीक फैसलों के लिए जाने जाते हैं। उन्हें मूल रूप से मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ट्रांसफर करने का प्रस्ताव था लेकिन केंद्र के हस्तक्षेप के बाद उन्हें इलाहाबाद भेज दिया गया जैसा कि कॉलेजियम ने खुद स्वीकार किया।

    कॉलेजियम के 14 अक्टूबर, 2025 के प्रस्ताव में साफ-साफ लिखा कि सरकार द्वारा पुनर्विचार मांगे जाने पर उन्होंने जस्टिस श्रीधरन को छत्तीसगढ़ के बजाय इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने की सिफारिश करने का संकल्प लिया।

    निर्भीक फैसलों से भरा रहा न्यायिक सफर

    जस्टिस अतुल श्रीधरन का न्यायिक सफर ईमानदारी और स्वतंत्रता को दर्शाता है। 2016 में अतिरिक्त और 2018 में स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए श्रीधरन ने कार्यपालिका की मनमानी पर अक्सर सवाल उठाए हैं।

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में रहते हुए उन्होंने मनमाने निवारक निरोध आदेशों को रद्द किया और यह अहम फैसला सुनाया कि केवल सरकार की आलोचना करना UAPA के तहत अपराध नहीं है।

    उनकी ईमानदारी का एक दुर्लभ उदाहरण यह भी है कि उन्होंने खुद 2023 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से अपने तबादले की मांग की, क्योंकि उनकी बेटी वहीं कानून की प्रैक्टिस शुरू करने की योजना बना रही थी।

    हाल ही में जस्टिस श्रीधरन ने मध्य प्रदेश के कैबिनेट मंत्री विजय शाह के सांप्रदायिक टिप्पणियों के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेते हुए FIR का आदेश दिया और खुद जांच की निगरानी करने का फैसला किया (हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री को गिरफ्तारी से बचाते हुए उनके आदेश पर रोक लगा दी)।

    उन्होंने राज्य में कोविड कुप्रबंधन पर भी स्वतः संज्ञान लिया था। 15 अक्टूबर, 2025 को उन्होंने फिर से स्वतः संज्ञान लिया जब एक वीडियो में एक ओबीसी युवक को मंदिर में किसी अन्य व्यक्ति के पैर धोने और वह पानी पीने के लिए मजबूर किया जा रहा था।

    इस घटना पर उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा,

    "मध्य प्रदेश राज्य में जाति-संबंधी हिंसा और भेदभावपूर्ण कार्रवाइयों के बार-बार होने के मामले चौंकाने वाले हैं।"

    वरिष्ठता पर असर और कारण बताने में विफलता

    तबादले के इस आदेश में यह दर्ज नहीं किया गया कि बदलाव क्यों जरूरी था या छत्तीसगढ़ के बजाय इलाहाबाद को क्यों चुना गया। स्पष्ट मानदंडों और तर्कों की कमी से जनता को यह मानने पर मजबूर होना पड़ता है कि संस्थागत आवश्यकताओं के बजाय, बाहरी विचारों ने निर्णय लेने में भूमिका निभाई।

    इस तबादले ने जस्टिस श्रीधरन की वरिष्ठता को भी प्रभावित किया। छत्तीसगढ़ में वह दूसरे सीनियर जज होते और हाईकोर्ट कॉलेजियम का हिस्सा बन जाते लेकिन इलाहाबाद में वह अब सातवें स्थान पर हैं।

    जस्टिस श्रीधरन का तबादला उन घटनाओं की लंबी श्रृंखला का हिस्सा है जहां राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में स्वतंत्रता दिखाने वाले जजों को विवादास्पद तरीके से स्थानांतरित किया गया।

    अतीत में जस्टिस एस. मुरलीधर, जस्टिस जयंत पटेल और जस्टिस अकील कुरैशी जैसे जजों के तबादलों को भी कार्यपालिका की प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया था।

    कार्यपालिका की सुविधा और न्यायपालिका का झुकना

    विडंबना यह है कि सरकार वर्तमान कॉलेजियम व्यवस्था से पूरी तरह सहज दिखती है। कॉलेजियम को अधिक जवाबदेह प्रणाली से बदलने की बार-बार की बहस के बावजूद कार्यपालिका अब किसी संरचनात्मक बदलाव के लिए दबाव नहीं डाल रही।

    पिछले एक दशक में सरकार की प्राथमिकताओं के अनुरूप नियुक्तियों की एक स्थिर धारा ने चुपचाप न्यायपालिका के संतुलन को उसकी ओर झुका दिया है। अगर यह रुझान जारी रहा तो कॉलेजियम खुद सत्ता का आईना बन जाएगा, जो ऐसे जजों से भरा होगा, जिनका दृष्टिकोण सरकार के अनुकूल होगा, जिससे न्यायपालिका प्रभावी रूप से कार्यपालिका के विस्तार में बदल जाएगी।

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