"ऐसी नियति एक बच्चे के स्वास्थ्य विकास के अधिकार का उल्लंघन होगी": दिल्ली कोर्ट ने 21 महीने के बच्चे के साथ जेल में कैद मां को जमानत दी

LiveLaw News Network

2 April 2021 12:19 PM IST

  • ऐसी नियति एक बच्चे के स्वास्थ्य विकास के अधिकार का उल्लंघन होगी: दिल्ली कोर्ट ने 21 महीने के बच्चे के साथ जेल में कैद मां को जमानत दी

    दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को दहेज हत्या और तीन महीने के भ्रूण के गर्भपात के मामले में 21 महीने के बेटे के साथ तिहाड़ जेल में कैद आरोपी महिला को न्यायिक हिरासत के मद्देनजर जमानत दी।

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल गोगने ने सहानुभूति के आधार पर जेल में कैद आरोपी सुमन कुमारी को जमानत दी।

    कोर्ट ने शुरूआत में कहा कि,

    "कानून की अदालत एक फोरम है जहां अक्सर कानून के शासन के लिए स्वतंत्रता के अधिकार को महत्व दिया जाता है और अपराध के आयोग के अभियुक्त आरोपियों की जमानत के आए आवेदनों को विभिन्न कारणों से अस्वीकार कर दिया जाता है। ऐसे व्यक्तियों को जमानत देने से इंकार कर दिया जिसमें विशेष रूप से महिलाएं अक्सर अपने शिशु / बच्चे के साथ वार्ड में कैद रहती हैं। किसी भी कारण से इनका न तो ट्रायल करने की जरूरत है और न ही हिरासत में रखने की आवश्यकता है, ऐसे बच्चे अभी भी उनकी मां के साथ जेल में रहने की अवधि के तक जेल में बंद हैं।"

    मृतक के पिता की शिकायत पर आरोपी सुमन कुमारी 9 दिसंबर 2020 से न्यायिक हिरासत में थी। दरअसल, मृतक की शादी सुमन के भाई से हुई थी। एफआईआर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 489A, 304B और 34 के तहत दर्ज की गई है।

    शिकायतकर्ता पिता ने आरोप लगाया गया कि पति और उसकी बहन सुमन सहित ससुराल वालों ने मृतक बेटी से दहेज की लगातार मांग की और कथित तौर पर उसे खाना और अन्य जरूरत की चीजें भी देने से इनकार कर दिए। इसके अलावा, सुमन के खिलाफ आरोप है कि सुमन ने मृतक को जबरन एक दवा खिलाई जिससे उसके(मृतक) तीन महीने के भ्रूण का गर्भपात हो गया।

    सुनवाई के दौरान आरोपी सुमन की ओर से पेश वकील ने कहा कि वह न्यायिक हिरासत में होने के कारण अपने 21 महीने के बेटे के साथ केंद्रीय जेल तिहाड़ में बंद है। इसलिए बच्चे को जेल से बाहर लाने के आधार पर जमानत मांगी गई है।

    पीठ ने कहा कि,

    "आवेदक / आरोपी का बच्चा 21 महीने का है। उसे इस दुनिया में आए अभी तक दो साल भी नहीं हुए हैं। कानून के टकराव में बच्चा नहीं होना चाहिए बल्कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत बच्चे की देखभाल और सुरक्षा की जरूरत है। यह ही कम कमबीन और रूढ़िवादी लग रहा है कि बच्चा जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम में नहीं है।"

    कोर्ट ने बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन 1989 की धारा 37 के तहत केवल अंतिम उपाय और कम से कम समय के लिए बच्चों को हिरासत में लेना रखा जाना चाहिए। इसके अलावा अदालत ने आगे जुवेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 3 को ध्यान में रखते हुए कहा कि जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम द्वारा बच्चे की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति बहाल की जानी चाहिए जैसी स्थिति अधिनियम के दायरे में आने से पहले थी।

    कोर्ट ने अवलोकन किया कि,

    "अदालत को खुद सोचना है कि क्या अकेले कारण के लिए उपरोक्त विवरणों पर सीसीएल या सीएनसीपी के अनुरूप नहीं है और क्या बच्चे के अधिकारों के लिए हुए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन और जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम के बावजूद बच्चे को बाल अधिकारों से संबंधित सिद्धांतों के संरक्षण से वंचित किया जा सकता है, । उत्तर देते समय इस तरह की बातों को नकारा नहीं जा सकता है। केवल एक आरोपी का बेटा होने के नाते और अभी भी बच्चा कैदी के रूप में जेल में बंद है। इसको ध्यान में रखते हुए कि सीसीएल या सीएनसीपी प्राप्त करने वाले एक बच्चे को उस बच्चे की तुलना में इस बच्चे को अधिक कठोर कड़ाई से पीड़ित नहीं होना चाहिए जो कि यह बच्चा अपनी मां के कथित अपराध के कारण सजा झेल रहा है।"

    कोर्ट ने यह भी देखा कि टीनेजर ऐज के एक बच्चे को हिरासत में रखना भले ही जेल में मां के साथ ही रखा गया हो उस बच्चे के समाजीकरण, संवेदी संवर्धन और सभी शारीरिक और मानसिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

    कोर्ट ने कहा कि प्रीस्कूल और अन्य शैक्षिक संवर्द्धन के विकल्प आवश्यक रूप से सेंट्रल जेल तिहाड़ के अंदर प्रतिबंधित किए जाएंगे। चूंकि ट्रायल भी शुरू नहीं हुआ है और आरोपी के मामले को पूरा होने में लंबा समय लगने की संभावना है। बच्चे की उम्र दो साल भी नहीं हुई है ऐसे में अपने बचपन को जेल में बिताना निंदनीय है। ऐसी नियति एक बच्चे के स्वास्थ्य विकास के अधिकार का उल्लंघन होगी।

    इसलिए कोर्ट ने 30,000 रूपये की जमानत बांड भरने की शर्त पर आरोपी सुमन को जमानत देने का फैसला सुनाया। कोर्ट ने यह भी कहा कि " बच्चे के अधिकारों और एक प्रणाली जो अभियुक्तों की निर्दोषता के अनुमान पर आधारित है, ऐसे में आरोपी के बच्चे को बिना कारण हिरासत में रखने के अधीन नहीं होना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि, "आवेदक / आरोपी को स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में मुकदमे का सामना करने की स्वतंत्रता दी जाती है। आवेदक / आरोपी मां को वर्तमान तथ्यों में जमानत देना उसके छोटे बच्चे की आजादी के लिए रिहाई है। "

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



    Next Story