लगातार एफआईआर: गुजरात हाईकोर्ट ने 'समानता की परीक्षा' और 'परिणाम की परीक्षा' की व्याख्या की

LiveLaw News Network

2 Feb 2022 11:54 AM GMT

  • लगातार एफआईआर: गुजरात हाईकोर्ट ने समानता की परीक्षा और परिणाम की परीक्षा की व्याख्या की

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में 'समानता का परीक्षण' (Test of Sameness) और 'परिणाम की परीक्षा' (Test of Consequence) पर ध्यान दिया, जो 'दूसरी एफआईआर' की वैधता का निर्धारण करते समय प्रासंगिक हैं।

    एक ही घटना या अपराध के संबंध में दूसरी एफआईआर या लगातार एफआईआर कानून में स्वीकार्य नहीं है। हालांकि, यह निर्धारित करने के लिए कि क्या दूसरी आक्षेपित एफआईआर एक ही अपराध पर आधारित है और एक अलग लेनदेन से उत्पन्न हुई है, उपरोक्त दो परीक्षण लागू किए जा सकते हैं।

    भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत गुजरात राज्य भूमि विकास निगम के प्रबंध निदेशक के खिलाफ दर्ज दो एफआईआर से संबंधित मौजूदा मामले में जस्टिस गीता गोपी ने अधिनियम की धारा 13(1)(ई) के तहत अपराध साबित करने की आवश्यकताओं को भी प्रतिपादित किया।

    समानता का परीक्षण

    बाबूभाई और अन्य बनाम गुजरात राज्य में सुप्रीम कोर्ट ने समझाया कि समानता का परीक्षण यह पता लगाने के लिए लागू किया जाता है कि क्या दोनों एफआईआर एक ही घटना के संबंध में हैं या उन घटनाओं के संबंध में हैं जो एक ही लेनदेन के दो या अधिक भाग हैं।

    यदि उत्तर सकारात्मक है, तो दूसरी एफआईआर रद्द की जा सकती है; हालांकि, यदि इसके विपरीत साबित होता है, जहां दूसरी एफआईआर में बयान अलग है और वे दो अलग-अलग घटनाओं/अपराधों के संबंध में हैं तो दूसरी एफआईआर की अनुमति होती है।

    अंजू चौधरी बनाम यूपी राज्य और अन्य में यह समझाया गया है कि जहां घटना अलग है, अपराध समान या अलग हैं, या यहां तक ​​कि जहां बाद के अपराध इतने गंभीर हैं कि यह पहले दर्ज एफआईआर के दायरे में नहीं आता है, फिर दूसरी एफआईआर दर्ज किया जा सकता है।

    जस्टिस गोपी ने कहा, "इसलिए, जब दूसरी एफआईआर का बयान अलग है, और जब एक ही घटना के संबंध में पहली एफआईआर में आरोपी एक अलग बयान या प्रतिदावा के साथ सामने आता है तो दोनों एफआईआर पर जांच की जानी चाहिए।"

    परिणाम का परीक्षण

    अमितभाई अनिलचंद्र शाह बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो और अन्य में परिणाम परीक्षण को इस प्रकार समझाया गया था-

    यदि पहली एफआईआर में कथित अपराध के परिणामस्वरूप दूसरी एफआईआर का हिस्सा बनने वाला अपराध पैदा होता है तो दोनों एफआईआर में शामिल अपराध समान होते हैं और तदनुसार, दूसरी एफआईआर को कानून में अनुमति होगी।

    यह माना गया कि दोनों एफआईआर में शामिल अपराधों को पहली एफआईआर के एक भाग के रूप में माना जाना चाहिए। इसके अलावा, केवल इसलिए कि दो अलग-अलग शिकायतें दर्ज की गई थीं, इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें एक साथ नहीं जोड़ा जा सकता है और एक आरोप पत्र दायर नहीं किया जा सकता है।

    पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ता, जो मामले में आरोपी है, उसने पीसी एक्‍ट की धारा 13(1)(ई) और 13(2) के तहत अपराधों के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत 2018 की एफआईआर को रद्द करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका दायर की।

    कमीशन और रिश्वत प्राप्त करने के जीएसएलडीसी के अधिकारियों के खिलाफ एक खुफिया रिपोर्ट और एक परिणामी छापे के आधार पर, पीसी एक्ट की धारा 8,10 और 13 (2) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। याचिकाकर्ता को इस एफआईआर में आरोपी नंबर 2 के तौर पर दर्ज किया गया था। जहां पहली एफआईआर में आरोप पत्र दायर किया गया था, वहीं याचिकाकर्ता के खिलाफ इसी तरह के आरोपों के साथ एक अन्य एफआईआर भी दर्ज की गई थी।

    याचिकाकर्ता का तर्क है कि दूसरी एफआईआर जांच की पुनरावृत्ति है, जो पहली एफआईआर में हुई है, जहां आरोप पत्र पहले ही दायर किया जा चुका है। इसी तरह के आरोपों के साथ पहली एफआईआर के तीन दिनों के भीतर एक और एफआईआर दर्ज करना कानून का दुरुपयोग है और इसलिए, एफआईआर रद्द किए जाने योग्य है।

    प्रतिवादी ने तर्क दिया कि पहली एफआईआर छापेमारी और पूरी तलाशी के दौरान सामने आई घटनाओं के संबंध में दर्ज की गई थी। हालांकि, दूसरी एफआईआर याचिकाकर्ता द्वारा नकदी और सोने की वस्तुओं के कब्जे के संबंध में पीसी एक्‍ट की धारा 13(1)(ई) और 13(2) के तहत दर्ज की गई थी।

    जजमेंट

    'समानता का परीक्षण' और 'परिणाम का परीक्षण' लागू करने के बाद, न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि दूसरी एफआईआर पहली एफआईआर में कथित अपराध का परिणाम नहीं थी और इसलिए, दूसरी एफआईआर को पहली एफआईआर के साथ नहीं जोड़ा जा सकता।

    अदालत ने कहा कि पहली एफआईआर में आरोपी केसी परमार से उसकी मेज के दराज से मिले पैसे के बारे में पूछा गया था और उसने दावा किया था कि वह याचिकाकर्ता की ओर से पैसे ले रहा था तो सह-आरोपी के उस बयान पर पहली एफआईआर दर्ज की गई।

    जहां तक ​​दूसरी एफआईआर का संबंध है, वही बेहिसाब धन और याचिकाकर्ता के कब्जे से मिली सोने की वस्तु से संबंधित है।

    " याचिकाकर्ता का यह कहना नहीं था कि यह सह-अभियुक्त केसी परमार द्वारा उसे दिया गया धन था या यह कि उसे दिए गए धन से, उसने सोने का पेंडेंट और कान की बाली खरीदी थी।"

    अदालत ने आगे निष्कर्ष निकाला कि दो घटनाएं अलग हैं और दो अलग-अलग एफआईआर सही दर्ज की गई हैं।

    अदालत ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि सह-आरोपियों के साथ याचिकाकर्ता के खिलाफ पहली एफआईआर दर्ज की गई थी। जबकि दूसरी एफआईआर याचिकाकर्ता के खिलाफ एक लोक सेवक के रूप में दर्ज की गई थी, जो अपने वित्तीय संसाधनों या आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति का संतोषजनक हिसाब नहीं दे सकता था।

    इस भेद को स्पष्ट करते हुए, न्यायालय ने धारा 13(1)(ई) के तहत अपराध के अवयवों को निर्धारित किया, जो इस प्रकार है-

    -अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि आरोपी एक लोक सेवक है,

    -उसके कब्जे में पाए जाने वाले आर्थिक संसाधनों या संपत्ति की प्रकृति और सीमा,

    -यह साबित किया जाना चाहिए कि उसकी आय के ज्ञात स्रोत क्या थे अर्थात अभियोजन पक्ष को पता था और,

    -यह पूरी तरह से निष्पक्ष रूप से साबित होना चाहिए कि आरोपी के कब्जे में पाए गए संसाधन या संपत्ति उसकी आय के ज्ञात स्रोत से अनुपातहीन थी।

    इस हिसाब से बेंच ने याचिका खारिज कर दी।

    केस शीर्षक: कन्हैयालाल सुंदरजी डेट्रोजा बनाम गुजरात राज्य

    ‌सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (गुजरात) 16

    केस नंबर: R/SCR.A/7756/2020

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