कागज़ी बाघ बना दी गई है न्यायपालिका: बेगूसराय में ADJ का आरोप, डीएम–एसपी को बचाने के लिए केस छीने जाने पर की टिप्पणी

Amir Ahmad

19 Nov 2025 12:29 PM IST

  • कागज़ी बाघ बना दी गई है न्यायपालिका: बेगूसराय में ADJ का आरोप, डीएम–एसपी को बचाने के लिए केस छीने जाने पर की टिप्पणी

    बिहार के बेगूसराय ज़िले में अधीनस्थ न्यायपालिका और ज़िला प्रशासन के बीच अभूतपूर्व टकराव सामने आया। एडीशनल डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज -III, ब्रजेश कुमार सिंह ने 17 नवंबर 2025 को पारित एक बेहद कड़े आदेश में स्पष्ट शब्दों में दर्ज किया कि प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज द्वारा निष्पादन वाद को अंतिम चरण में उनसे वापस लेकर अपने पास मंगाना केवल ज़िला पदाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को अवमानना कार्यवाही से बचाने के उद्देश्य से किया गया कदम है।

    जज सिंह ने लिखा कि इस तरह की कार्रवाई न सिर्फ़ न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांत का उल्लंघन है बल्कि इससे पूरी न्यायपालिका हंसी का पात्र बन गई। उन्होंने अधीनस्थ न्यायपालिका को कागज़ी बाघ बताए जाने जैसी स्थिति का ज़िक्र करते हुए कहा कि मानो निम्न अदालतों के आदेश प्रभावहीन हो चुके हों और शक्तिशाली अफ़सरों पर लागू ही नहीं होते।

    विवाद की शुरुआत तब हुई, जब जज सिंह बेगूसराय के डीएम तुषार सिंगला और एसपी मनीष के ख़िलाफ़ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुशंसा पटना हाई कोर्ट को भेजने वाले थे। इन दोनों सीनियर अधिकारियों पर आरोप था कि उन्होंने सड़क दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के परिवार को लगभग 11.6 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का दो वर्ष पुराना आदेश पालन नहीं किया।

    इसी बीच प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज ने अचानक आदेश देकर उक्त निष्पादन वाद को अपने कोर्ट में स्थानांतरित कर लिया। न तो किसी पक्ष ने ऐसी कोई अर्जी दायर की थी और न ही रिकॉर्ड देखने की कोई प्रक्रिया अपनाई गई यह बात भी जज सिंह ने अपने आदेश में दर्ज की।

    उन्होंने टिप्पणी की कि प्रशासनिक सुविधा के नाम पर ऐसा ट्रांसफर सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 24 की मूल भावना के प्रतिकूल है, क्योंकि स्वप्रेरणा से काम करने की शक्ति का अर्थ पूर्ण अधिकार नहीं हो सकता। उन्होंने स्पष्ट कहा कि कार्यवाही अंतिम चरण में पहुंच चुकी थी और ऐसे समय पर मामला छीनना न्यायिक स्वतंत्रता का सीधा अतिक्रमण है।

    -जज सिंह ने अपने आदेश में यह भी लिखा कि उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया गया और यह स्थिति हतोत्साहित करने वाली है। उन्होंने पूछा कि न्यायालय के आदेशों का पालन केवल ग़रीबों से ही क्यों कराया जाता है, जबकि “पैसे और पद के दम पर बैठे बड़े अधिकारी अधीनस्थ न्यायपालिका की प्रक्रिया से पूरी तरह सुरक्षित” माने जाएं।

    यह मामला मनोज कुमार नामक याचिकाकर्ता से जुड़ा है, जिसके अभिभावक की मौत एक पुलिस वाहन की टक्कर से हुई थी। अगस्त 2023 में न्यायालय ने मुआवज़ा तय किया, लेकिन दो वर्ष बीत जाने के बाद भी प्रशासन ने राशि जारी नहीं की। जज ने टिप्पणी की कि सरकार के पास चुनावों के लिए हज़ारों करोड़ हैं, पर गरीब पीड़ित को दिलाए गए न्याय के अमल के लिए नहीं।

    बता दें, इससे पहले भी दोनों जजों के बीच तनाव की स्थिति सामने आ चुकी है। सितंबर में पारित एक आदेश में न्यायाधीश सिंह ने यह उल्लेख किया कि प्रिंसिपल जिला जज ने उन्हें अपने कक्ष में बुलाकर एसपी का संदेश दिया कि एसपी बहुत शक्तिशाली हैं और उनके ख़िलाफ़ प्रतिकूल आदेश से परहेज़ किया जाए, क्योंकि हाई कोर्ट भी कुछ नहीं कर सकेगा।

    जज सिंह ने उस समय भी इस दबाव को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा कि वे किसी भी तरह की दखलंदाज़ी बर्दाश्त नहीं करेंगे और स्वतंत्र व निर्भीक होकर न्यायिक कार्य करेंगे।

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