छात्र की आत्महत्या का मामला-इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्कूल के प्रिंसिपल, टीचर को डिस्चार्ज करने से इनकार करने वाले ट्रायल कोर्ट के ‘नॉन स्पीकिंग ऑर्डर’ को खारिज किया
Manisha Khatri
9 Jan 2023 7:30 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते ट्रायल कोर्ट के उस ‘नॉन स्पीकिंग’ ऑर्डर को रद्द कर दिया, जिसमें लखनऊ के एक स्कूल के प्रिंसिपल और पीटी शिक्षक को एक छात्र को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में डिस्चार्ज करने से इनकार कर दिया था। इनके खिलाफ 12वीं के एक छात्र को शारीरिक दंड देकर उसे कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 305 के तहत एक मामला दर्ज किया गया था।
अपने 6 जनवरी के आदेश में, जस्टिस बृज राज सिंह की पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने डिस्चार्ज याचिका को खारिज करते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 107 (किसी चीज के लिए उकसाना), 305 (बच्चे या पागल व्यक्ति की आत्महत्या के लिए उकसाना) और सीआरपीसी की धारा 227 (डिस्चार्ज) के तहत अपराधों की आवश्यकता के साथ जुड़े मामले के तथ्यों की जांच नहीं की थी।
हाईकोर्ट ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश-प्रथम, लखनऊ के 2019 के आदेश में दोष पाया और कहा,
‘‘न्यायालय (ट्रायल कोर्ट का हवाला देते हुए) को यह देखना है कि क्या पुनरीक्षणवादियों के खिलाफ एकत्र की गई पूरी सामग्री अपराध का खुलासा करती है? न्यायालय ने सामग्री पर कोई चर्चा नहीं की और कोई निष्कर्ष दर्ज नहीं किया, यहां तक कि पुनरीक्षणवादियों के वकील द्वारा उद्धृत विभिन्न निर्णयों का भी उल्लेख किया गया है,लेकिन इन फैसलों में किस कानून का उल्लेख किया गया है और वे मामले कैसे लागू होते हैं या लागू नहीं होते हैं, इस पर विचार नहीं किया गया है और न ही निर्णय लिया गया।’’
न्यायालय ने यह भी नोट किया कि मामले के तथ्यों को बताते हुए, निर्णय पारित करते समय न्यायालय ने रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों के बारे में कोई चर्चा नहीं की और न ही यह बताया कि क्या साक्ष्य और सामग्री पुनरीक्षणकर्ताओं के खिलाफ अपराध का खुलासा करते हैं या नहीं। न्यायालय ने यह भी कहा कि निचली अदालत के आदेश का ऑपरेटिव हिस्सा नॉन-स्पीकिंग था और आवेदन रद्द करने का कोई कारण नहीं बताया गया है।
नतीजतन, आदेश को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने तीन महीने की अवधि के भीतर कानून के अनुसार हाईकोर्ट के आदेश में की गई टिप्पणियों के आलोक में एक नया निर्णय लेने के लिए मामले को वापस संबंधित अदालत में भेज दिया।
मामला संक्षेप में
मामला वर्ष 2016 का है, जब लखनऊ के कैथेड्रल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ने वाले 12 वीं कक्षा के एक छात्र ने अपने पिता की लाइसेंसी पिस्तौल से खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी।
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, मृतक को उसके दोस्त के साथ स्कूल के बाहर घूमते हुए पकड़ा गया था और उसने एक रिक्शा में अपनी मोटरसाइकिल से टक्कर भी मार दी थी। इस घटना के बाद स्कूल के प्रिंसिपल और पीटी शिक्षक (आरोपी) द्वारा दिए गए शारीरिक दंड के कारण वह अपमानित महसूस कर रहा था और उसने आत्महत्या करने का कदम उठा लिया।
मामले में एफआईआर मृतक छात्र के पिता द्वारा दर्ज कराई गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपी उसके बेटे को लगातार परेशान करता था और पीटता था। 3 दिसंबर 2016 को दोनों ने उसके साथ मारपीट की थी और उसे स्कूल से बाहर निकालने की धमकी दी थी।
एफआईआर में आगे कहा गया कि पुनरीक्षणवादी नंबर 2 (पीटी शिक्षक) ने शिकायतकर्ता को उसके बेटे को स्कूल से ले जाने के लिए बुलाया और इस प्रकार, उसने अपनी पत्नी को स्कूल जाने के लिए कहा। हालांकि, जब वह स्कूल पहुंची तो उसे बताया गया कि पीटी शिक्षक ने मृतक को उसके घर छोड़ दिया है। इसके बाद वह अपने घर गई, जहां उसने पाया कि उसके बेटे ने लाइसेंसी रिवॉल्वर से आत्महत्या कर ली है। जांच के बाद मामले में आरोप पत्र दाखिल किया गया।
दोनों आरोपियों ने चार्जशीट को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया और उनकी याचिका को डिस्चार्ज आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता के साथ निपटा दिया गया। उन्होंने ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक डिस्चार्ज आवेदन दायर किया, जिसे मार्च 2019 में खारिज कर दिया गया था, उसी आदेश को चुनौती देते हुए उन्होंने वर्तमान याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी।
उनका प्राथमिक तर्क था कि मृतक को पुनरीक्षणवादियों द्वारा केवल बाइक चलाते समय सड़क दुर्घटना में शामिल होने के लिए डांटा गया था। वह बिना हेलमेट और वैध ड्राइविंग लाइसेंस बाइक चला रहा था जो कि कैथेड्रल सीनियर सेकेंडरी स्कूल की आचार संहिता के खिलाफ था। वहीं स्कूल परिसर के अंदर और बाहर छात्रों के उचित अनुशासन को सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य था।
यह भी तर्क दिया गया कि ऐसा कोई चश्मदीद गवाह नहीं है जो इस बात की पुष्टि कर सके कि मृतक को पुनरीक्षणवादियों द्वारा बेरहमी से पीटा गया था। अंत में, ट्रायल कोर्ट के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी गई कि संबंधित न्यायाधीश ने उनकी याचिका को खारिज करते समय सीआरपीसी की धारा 227 के शासनादेश का पालन नहीं किया था।
इस संबंध में, पुनरीक्षणवादियों के वकील ने कर्नाटक लोकायुक्त, पुलिस स्टेशन, बेंगलुरु बनाम एमआर हिरेमथ, (2019) 7 एससीसी 515 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश सहित सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का उल्लेख किया , जहां यह माना गया है कि डिस्चार्ज कार्यवाही में निर्णय लेते समय, न्यायालय को इस धारणा पर आगे बढ़ना चाहिए कि अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड में लाई गई सामग्री सही है और यह निर्धारित करने के लिए सामग्री का मूल्यांकन करें कि क्या अंकित मूल्य पर ली गई सामग्री से उभरने वाले तथ्य अपराध करने के लिए आवश्यक सामग्री के अस्तित्व का खुलासा करते हैं?
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
शुरुआत में, अदालत ने शिकायतकर्ता के इस तर्क को खारिज कर दिया कि आरोप तय करने के चरण में, अदालत को रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री पर केवल यह पता लगाने के लिए विचार करना होगा कि क्या यह मानने का कोई आधार है कि अभियुक्त ने अपराध किया है?
हाईकोर्ट ने कहा, ‘‘न्यायालय को रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री और दस्तावेजों का मूल्यांकन यह पता लगाने के लिए करना चाहिए कि अंकित मूल्य पर ली गई सामग्री से उभरने वाले तथ्य कथित अपराध या अपराधों को बनाने वाले सभी अवयवों के अस्तित्व का खुलासा करते हैं।’’
इसके अलावा मामले में साक्ष्यों, गवाहों के बयानों और आक्षेपित आदेश पर विचार करते हुए, पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में यह देखने की आवश्यकता थी कि आईपीसी की धारा 305 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध कैसे बनता है और अपराध करने के लिए उकसाने के लिए कितने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष साक्ष्य हैं?
न्यायालय ने आगे कहा कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों के मद्देनजर विचार करने की आवश्यकता है। कोर्ट ने कहा
‘‘क्या अभियुक्तों ने मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया था और क्या वे किसी भी तरह से शामिल थे जिससे मृतक ने आत्महत्या की हो। न्यायालय को यह देखना होगा कि क्या मृतक द्वारा कोई अनुशासनहीनता की गई थी, क्या पुनरीक्षणकर्ता प्रिंसिपल और शिक्षक होने के नाते स्कूल में अनुशासन बनाए रखने के लिए उचित कार्रवाई करने के कर्तव्य के तहत थे?’’
नतीजतन, उपरोक्त आदेश को रद्द कर दिया गया और मामले को 3 महीने के भीतर इस मामले में दायर डिस्चार्ज याचिका पर अदालत द्वारा नया फैसला लेने के लिए वापस निचली अदालत में भेज दिया गया है।
केस टाइटल-मेल्विन सल्दान्हा व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य,आपराधिक पुनरीक्षण संख्या - 604/2019
साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (एबी) 7
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