"गवाहों का परीक्षण होने तक अभियोजक, जांच अधिकारी का वेतन रोकें": पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने POCSO मामले में अभियोजन के 'कैजुअल' रवैये की आलोचना की

Avanish Pathak

19 Sep 2022 10:26 AM GMT

  • P&H High Court Dismisses Protection Plea Of Married Woman Residing With Another Man

    Punjab & Haryana High Court

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक लोक अभियोजक और एक जांच अधिकारी के वेतन को रोकने का निर्देश जारी किया। कोर्ट ने यह नोट करने के बाद कि पोक्सो के एक मामले में अभियोजन पक्ष ने मुकदमे का संचालन 'कैजुअल' होकर ‌किया था, उक्त निर्देश दिए।

    जस्टिस राजबीर सहरावत ने कहा,

    "चूंकि लोक अभियोजक और मामले के जांच अधिकारी ने उचित तत्परता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया है, इसलिए उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए ताकि उन्हें मुकदमे की प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए मजबूर किया जा सके।

    तदनुसार, यह आदेश दिया जाता है कि इस मामले का संचालन कर रहे लोक अभियोजक और जांच अधिकारी के वेतन को तब तक रोक दिया जाए, जब तक कि मामले में अदालत के समक्ष अभियोजन पक्ष के सभी गवाहों का परीक्षण नहीं किया जाता है।"

    कोर्ट ने उक्त निर्देश के साथ अभियुक्तों को जमानत भी दे दी।

    अदालत दरअसल बंटी नामक एक आरोपी द्वारा दायर एक नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366-ए, और 34 और पोक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों को इस तथ्य के बावजूद पेश नहीं किया जा रहा था कि एफआईआर दर्ज किए लगभग चार साल बीत चुके हैं।

    अदालत को यह भी बताया गया कि मामले की सुनवाई के दरमियान अभियोक्ता से मुख्य परीक्षा में आंशिक रूप से पूछताछ की गई थी और अभियोजन पक्ष द्वारा किसी अन्य गवाह से पूछताछ नहीं की गई थी। इसके बाद, लोक अभियोजक ने धारा 319 सीआरपीसी के तहत एक आवेदन पेश करने में अपनी रुचि दिखाई थी, ताकि अतिरिक्त आरोपी को गिरफ्तार किया जा सके।

    यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता/अभियुक्त पहले ही इस मामले में चार साल से अधिक समय से हिरासत में है और इसके बावजूद, अभियोजन द्वारा अब तक एक भी गवाह का परीक्षण नहीं किया गया है, अदालत ने जोर देकर कहा कि अदालत याचिकाकर्ता को अभियोजन की लापरवाही से जोखिम में नहीं डाल सकती है, खासकर, जब आरोप यह है कि अभियोक्ता याचिकाकर्ता के साथ गई थी और पूरे एक सप्ताह तक उसके साथ रही थी; इस दौरान वह कई जगहों पर गई और होटलों में रुकी।

    कोर्ट ने कहा,

    "भले ही याचिकाकर्ता दोषी है, लेकिन इसे अदालत द्वारा सही बयान और उचित तत्परता से सुनवाई करके तय किया जाना चाहिए। हालांकि, अभियोजन पक्ष कार्यवाही को उचित रूप से संचालित करने में पूरी तरह से विफल रहा है। इस स्तर पर, याचिकाकर्ता को किसी भी जांच के उद्देश्य की आवश्यकता नहीं है। अदालत द्वारा उसके खिलाफ कोई प्रभावी कार्यवाही किए बिना उसे कैद करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।"

    इसके अलावा, इस बात पर जोर देते हुए कि मामले के लोक अभियोजक और जांच अधिकारी ने उचित तत्परता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया है, अदालत ने आदेश दिया कि आईओ और पीपी का वेतन तब तक रोक दिया जाए, जब तक कि मामले में अभियोजन पक्ष के सभी गवाहों से अदालत के समक्ष पूछताछ नहीं हो जाती।

    इस संबंध में, निदेशक (अभियोजन), पंजाब और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, होशियारपुर को 15 अक्टूबर, 2022 को या उससे पहले इन दोनों अधिकारियों के वेतन को रोकने के लिए एक रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया गया था।

    केस टाइटल: बंटी बनाम पंजाब राज्य

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story