मीडिया को हिजाब पहनी छात्राओं और टीचरों का पीछा करने से रोकें: कर्नाटक हाईकोर्ट में जनहित याचिका

LiveLaw News Network

23 Feb 2022 6:30 AM GMT

  • मीडिया को हिजाब पहनी छात्राओं और टीचरों का पीछा करने से रोकें: कर्नाटक हाईकोर्ट में जनहित याचिका

    कर्नाटक हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर मीडिया हाउसों को उन छात्राओं और टीचरों का पीछा करने से रोकने की मांग की गई है जो हिजाब / बुर्का पहनकर अपने स्कूलों और कॉलेजों की ओर जा रही हैं। याचिका में कहा गया कि मीडिया स्कूलों के पास छात्राओं और टीचरों की वीडियोग्राफी और फोटो खींच रही है।

    याचिकाकर्ता अब्दुल मंसूर और अन्य की ओर से पेश अधिवक्ता एस बालकृष्णन ने मामले की तत्काल सुनवाई की मांग की।

    याचिका के अनुसार, उसने लगभग 70 मीडिया संगठनों को पार्टी प्रतिवादी बनाया है। याचिका में कहा गया है,

    "मीडिया हाउस और चैनल्स 10 फरवरी के आदेश का घोर उल्लंघन करते हुए इस माननीय न्यायालय की अवमानना ​​​​में प्रतिवादी छात्राओं और शिक्षकों को नीचा दिखा रहे हैं। उन्हें अपराधी बना रहे हैं।"

    यह दावा किया गया,

    "प्रतिवादी इन असहाय महिलाओं और छात्राओं की प्रतिष्ठा की कीमत पर लड़कियों, महिला शिक्षकों, उनके प्रसार, टीआरपी को बढ़ाने के लिए दृश्यों को प्रिंट और टेलीकास्ट कर रहे हैं। इससे उनके परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, दोस्तों और आम जनता के बीच प्रतिष्ठा के लिए गंभीर और अपूरणीय क्षति होगी।"

    याचिका में कहा गया,

    "कल तक सभी समुदायों, जातियों, धर्मों के बच्चों को स्कूल परिसरों में जाते समय कक्षाओं में एक साथ बैठकर अपने विचारों, नोट्स और किताबों का आदान-प्रदान करते हुए और दोपहर में अपना भोजन साझा करते हुए एक साथ घूमते देखा जाता था। अब मीडिया का प्रयास इंगित करता है कि एक धर्म के स्टूडेंट एक साथ चलते हैं और दूसरे धर्म के स्टूडेंट गुंडों द्वारा प्रोत्साहित और समर्थित नारे लगा रहे हैं, गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दे रहे हैं।"

    याचिका में आगे कहा गया,

    "पूरे शैक्षिक माहौल का ध्रुवीकरण कर दिया गया और छात्राओं के एक समूह का अपराधी बना दिया गया है। इन परिस्थितियों में अगर मीडिया को अपनी गतिविधियों को जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो इससे न केवल छात्राओं की प्रतिष्ठा खराब होगी बल्कि उनका भविष्य भी खराब होगा।"

    याचिका में कहा गया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत परिकल्पित प्रेस की स्वतंत्रता पूर्ण अधिकार नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत प्रदान किए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन है।

    केस शीर्षक: अब्दुल मंसूर बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: WP 3942/2022

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